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कविता

मोर सोनहा बिहान

किरनकिरन के चरन पखारन
आरती उतारन, रे मोर सोनहा बिहान,
बगराये अँजोर, छत्तीसगढ़ मां
मोर बिहनिया तोला अगोरत, सइघो रात पहागे
छाती पोंठ करेन हम्मन ते, ठंड़का तैं अगुवागे
तोला परघाये बर आइन, जुरमिल सबो मितान
रे मोर सोनहा बिहान,
बगराये अँजोर, छत्तीसगढ़ मां
दाईददा लइकासियान सब, तोरेच गुन ला गाहीं
ललहूँपिंउरा मिंझरा सूरूज, कोन तोला टोनहाही
निकरे हस तैं कान मां खोंचे, हरियर दौना पान
रे मोर सोनहा बिहान,
बगराये अँजोर, छत्तीसगढ़ मां
तोर आए ले आज सिरागे, जिनगी के अँधियारी
आज हमर बर मयादया के, खुलगे गजब दुवारी
आज हो गयेन सकला संगी, जम्मो अपनबिरान
रे मोर सोनहा बिहान,
बगराये अँजोर, छत्तीसगढ़ मां
मुकुन्‍द कौशल