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व्यंग्य

येदे पटवारी ला फेर मार परे हे काबर कि रावन नई जरे हे

संगी हो जोहार लेहु,

हमर पटवारी भईया के गोठ ला आघू बतावत हवं, पटवारी भईया ला समाज सेवा करे के बिमारी ता हवय, कईसनो भी बुता हो ही वो हा नई करवं कहिके नई कहय, सरलग १० दिन भले लग जाये फेर बुता सामाजिक होना चाही, बिना खाए पिए लंघन भूखन रही के, करही।  अभी का होईस के टूरा मन दुर्गा पक्ष में ओला देवी माई मडहाबो कहिके समिति के सियान बना दिस, काबर के चंदा मांगे मा पटवारी ला काही शरम नई लगे।  चंदा मांगे बर एक से एक दोहा तैयार कर डरे हवय।  “मांगन से मरनो भलो जो मांगू अपने तन के काज – परमारथ के कारने आवे ना मोहि लाज,” अईसने दोहा मन ला पढ़ – पढ़ के चंदा मांगिस।  चंदा के मांगत तक ले समिति के टूरा मन हा संगे मा रिहिस, पईसा सकला गे। समारू के छोटे टूरा बाठुल ला खजांची बनाये रिहिस जम्मो पईसा ला उही ला धरावे, जऊन दिन दुर्गा के मूर्ति लाना रिहिसे तउन दिन बिहनियाच -बिहनिया बाठुल ला खोजिस,  त बठुल ला नई पाईस।  पटवारी संसो मा परगे, जम्मो चदा ला में मांगे हवं गिंजर -गिंजर के अऊ ये दे ठउका बेरा मा टूरा हा फरार होगे-मूर्ति वाला ला, गाड़ी वाला ला, पूजा के सामान- जम्मो के पईसा ला देना हवय। टूरा हा खोजे मा नई मिलत हवय, पटवारी हाँ माथ ला धर के बईठगे।
संसो मा परगे कईसे होही कहिके, तभिचे ओखर मितान हा अमरगे। पुछिस कईसे माथ ला धरे बईठे हस गा, पटवारी ह अपन पीरा ला बतईस, त मितान हा तुरते ५ हजार हेर के दे दिस, ले जा रे भाई पहिले बूता ला कर टूरा ला पाछु खोजबो, त पटवारी भईया हा, उही पईसा में सबो जिनिस ला बिसईस अऊ पूजा पष्ट ला चालू करईस। पाछु पता चलिस के समारू के टूरा बाठुल हा पईसाच ला जोंगत रिहिसे अऊ पईसा पाईस ता चन्द्रिका टुरी ला धर के उड़रिहा भाग गे, पटवारी भईया हा चुचुआत रहिगे, वो दे मितान हा ओखर मरजाद ला बचा दिस नहीं ते फेर गावं भर के मिर जुर के बने ठठाए के उदिम लगा ले रिहिस।
ये दे दुर्गा नवमी के पाछु दसेला आथे, हमर गावं के रावन भाठा मा लीला के आयोजन करके रावन मारे जाथे, जम्मो गावं वाला मन ये तिहार ला बने साल भर ले अगोरथे, फेर पटवारी भईया हा रावन मारे के जिम्मा पर गे, नवमी के रात भर माई पिला भीड़ के बने रावन ला बनाईस, बने सनपना के कागज लगा के पैरा ला भर के रंग पेंट ला बने रचाईस,  हंडिया के १० ठक मुडी बनाये रहाय,  तरी के गोड मान ला बना के मूड ला चढाहूँ कही के मुडी मन ला अलगा के रखे रिहिस,  तम्भिचे एक ठक गोल्लर हा गईया ला कुदावत आईसे, अऊ गाय हा रावन के मुडी मा आके भदाक ले गिर गे रावन के ४ ठीक मुडी हा फुट गे, फेर रोवत -गावत मुडी ला बनाईस, रावन के ठाठ मा मुडी ला चढा के खड़े करिस, बने सुभीता होगे चल बनगे कहिके घर भीतरी खुसर गे, नहा खोर के निकलिस ता रावन के गोड डाहर के पैरा ला गरुआ मन खा दे रिहिस, पटवारी हा माथ ला धर के बईठ गे, घेरी -बेरी इही बूता हो गे साले हा कहिके।
रावन हा एसो त मोला बने पेर डारिस गा-कहत हे, फेर ले दे रात के रावन ला बने ठेस जाच के सुधारिस, रात के एक बज गे रहय, जा के सूत गे, बिहान्चा उठ के देखिस ता रावण महाराज हा बने खड़े रिहिस, पटवारी सोचिस ले बने होगे, संझा के रावण के दहन हो जाही ता मोर परान हा बाँच जाही, अईसे कहिके रावन ला रावन भांठा में बने बीचों -बीच लेग के गाडिया दिस अऊ मझानिया जा के सूत गे काबर के रात भर के जागरण रिहिस, पटवारी हा जईसने सुतिसे, तईसने पानी हा चालू होगे कस के पानी दमोरिस, रावन हा जम्मो फिंज गे, संझा के बेरा मा जम्मो गावं वाला मन आईस ता देखिस रावन हा फिंज गे हवय, अब कईसे लिल्ला हो ही? रावन हा फिंज गे हवय कईसे जरही,  त एक झन किहिस पटवारी के गलती हवय, रावन ला भाठा मा खड़े करके जा के सूत गे बने परसार मा रखे रहितिस ता नई फिंजतिस, अईसने सब गोठ बात चालू होगे, त संगी हो हमर गावं के रावण हा जरे नई ये अऊ जम्मो झन टूरा मान ह दारू पीके पटवारी ला खोजत हवय अब आप मन अपने जान डारो के पटवारी संग आज का होवईया हे, रावण हा जरे नई ये जम्मो गंवईहा मन रावन भांठा मा जुरिआये हवय, मोला दशा अऊ दिशा ठीक नई दिखत हे, महू हा घर डाहर मसकत हौं आपो मन हा मौका के फयदा बने उठाओ अऊ आपन घर डाहर रेंगो, अऊ पटवारी के काय होही तेला काली के पेपर मा पढ़हु।

आपके
गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा