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गुड़ी के गोठ

‘रखवार’ समिति बनना चाही – गुड़ी के गोठ

कोनो भी भाखा, संस्कृति अउ वो क्षेत्र के अस्मिता के विकास अउ संवर्धन-संरक्षण म उहां के कला अउ साहित्य ले जुड़े मनखे मनके सबले बड़का योगदान होथे। ए मनला भाखा अउ संस्कृति के संवाहक घलो कहे जा सकथे। फेर अइसने मनखे मनके सेती जब कहूं के भाखा अउ संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन ह मुसकुल हो जाय त एला वो क्षेत्र के दुर्भाग्य अउ ओकर सपूत मनके बंटवारी कहे जाही।
छत्‍तीसगढ़ी के नांव म आज जतका फिलिम अउ वीडियो एलबम बनत हे वोमन ल देख सुनके प्रचार तंत्र के ए सबले बड़का तंत्र ऊपर रिस लाग जाथे। काबर ते अभी पानी के उड़ेरा पूरा कस जतका भी फिलिम अउ वीडियो एलबम बनते हे जम्मो के भाखा अउ शैली बम्बईया फिलिम कोती रेंगे लेवत हे। एको ठक म इहां के संस्कृति अउ अस्मिता के आरो नई मिल पावत हे। एकर कारन चाहे जेन हो फेर एकर खातिर ए क्षेत्र म जुड़े लोगन मन सबले जादा दोषी हवयं। खास करके लेखक, गीतकार, गायक-गायिका अउ निर्देशक मन।
अइसन लोगन मनला जब कहूं अइसन बात ऊपर हुदरबे-कोचकबे त उन झट कहि देथें के समय के मांग के अनुसार लिखे-बनाए जावत हे। कोनो-कोनो इहू कहि देथे के फिलिम के निर्माता के मांग हवय अइसन लिखे-देखाए बर। ए बात ल तो सबो जानथें के अभी एक क्षेत्र म जतका झन सक्रिय हें, वोमा बहुत कम आदमी बौद्धिक क्षेत्र ले संबंध राखथें, एक दू गीतकार जरूर ए क्षेत्र के हवयं फेर उंकर दृष्टिïकोण अपन स्तर अउ गरिमा के रक्षा ले जादा पइसा के चमक ऊपर जादा लगे रहिथे। नवा-नेवरिया लेखक अउ कलाकार मन तो अभी ए स्तर के सोचे च नइ पावयं के का अच्छा आय अउ का गलत? तेकर सेती अइसन नेवरिया मनला जादा दोष नइ दिए जा सकय। फेर जे मन इही रद्दा म बूढ़ागें वोकर मन कोती अंगरी उठाना कोनो किसम के गलत नई हो सकय।
ए मेर फिलिम क्षेत्र म सक्रिय लोगन के चारी करे के मतलब इहू नइए के सबो झन भेडिय़ा धसान रेंगत हें। एक-दू थोक-मोक बने घलोक करते हें, जेला हम सिरिफ अपवाद के रूप म ले सकथन। फेर जादा संख्या वाला मन बुता बीगाड़ेच के करत हें। जुन्ना बखत म बने ‘कहि देबे संदेश’ अउ ‘घर-द्वार’ के गोठ ला छोड़ देवन त अभी राज निर्माण के बाद जतका फिलिम अउ वीडियो एलबम आवते हे वोकर एको ठन के भाखा के स्तर ह संहराय के लायक नइये। ए बीच मोर छइंयां भुइयां, मया दे दे मया ले ले, मया, भांवर, बंधना, गुरांवट, पशुराम जइसन कतको फिलिम आइन, लोगन ल अपन डहर बलाइन हीट अऊ सुपरहीट होइन, फेर भाखा अउ संस्कृति के स्तर म कोनोच ह मन ल संतुष्टिï नइ दे पाइस।
आज हिन्दी ह विश्वभाषा बनगे हवय त एमा भारतीय फिलिम मन के बड़का योगदान हे। एकरे सेती अब जब छत्‍तीसगढ़ी ह राज्य शासन द्वारा राजभाषा के पदवी पा गे हवय त मन म एक गुनान आथे के जइसे हिन्दी खातिर बालीवुड ह बड़का योगदान देइस, तइसने छत्‍तीसगढ़ी खातिर छालीवुड ह देही कहिके, त अभी तक तो अइसन नइ दिखत हे। हम ये बात ल ठउका जानथन के लिखित साहित्य ले जादा चलित साहित्य ह आम आदमी ल जादा प्रभावित करथे। फेर जब चलित साहित्य ह नवा-नवरिया अउ अनपढ़ मनखे मनके हाथ म रइही त फेर वो ह जन अपेक्षा के मापदण्ड म कइसे दिख पाही?
प्रदेश सरकार के संगे संग इहां के जम्मो बुद्धिजीवी अउ भाखा-संस्कृति के हितवा मनला ए डहर ठउका चेत करना चाही अउ हो सकय त अइसन फिलिम अउ वीडियो एलबम मनला देखे-परखे अउ पास करे खातिर ‘सेंसर बोर्ड’ के तरज म एकोठन संस्था या समिति बनाना चाही, अउ जब तक वो समिति ह अपन स्वीकृति नइ देही तब तक अइसन कोनो भी फिलिम या वीडियो एलबम ल प्रदेश के अन्दर देखाए या बेचे के अनुमति नइ देना चाही।
सुशील भोले
41191, डॉ. बघेल गली
संजय नगर, टिकरापारा, रायपुर

One reply on “‘रखवार’ समिति बनना चाही – गुड़ी के गोठ”

Chhattisgarhi gana ke to satyanash hoge he .. chikamik kapadha la pahin ke turi man jhama-jham nachat he te me kaun se chhattisgarhi sabhyata dikhana chahat he samajh nai aay ..

lekin yekar bar censor board ha koi kaam ke nohe .. ihan ke aadami man khude cesor board ke kaam kar darathe .. je film ma chhattisgarh ke thodha bahunt jhalak milathe uhi filim ha chalathe ..
lekin hamar asan darshak ke majboori bhi hare ki kuchhu nai mile ta thodha-bahunt je bhi mil jathe tihi la dekhathan ..

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