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व्यंग्य

ररुहा सपनाये …….





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सरग म बरम्हा जी के पांच बछर के कारकाल पुरा होगे । नावा बरम्हा चुने बर मनथन चलत रहय । सत्ताधारी इंद्र अपन पारटी अऊ सहयोगी मन के बीच घोसना कर दीस के , ये दारी दलित ला बरम्हा बनाना हे । जबले बरम्हा चुनई के घोसना होये रहय , हमर गांव के मनखेमन मरे बर मरत रहय । जलदी मरबो सोंचके , खेती किसानी के समे , काम बूता खाये पिये ला घला तियाग दीन अऊ दसना म परे परे जमदूत के अगोरा करे लागीन । कतको झिन बिन पारी के अइसन घुट घुट मरे के बजाय , एके घांव म मर जाये के तरीका अखतियारे लागीन । कुछ मन मरे बर , घेरी बेरी सरकारी असपताल के चक्कर लगाये लागीन । एक झिन महराज के पूछ परख बढ़गे । उही टिकिस दिही कस , ओकर घर मनखे के रेम लगे रहय । परोसी ला पूछ पारेंव – काबर रोज महराज घर के चक्कर लगाथव ? वो किथे – तैं नी जानस जी , महराज बताये हे के , ये दारी सरग म दलित मनखे ला बरम्हा बनाये जाही । उही दिन ले , बरम्हा बने के टिकिस पाये बर , महराज करा अनुसठान करवावत हंव । जे दिन अनुसठान पूरा हो जही ते दिन खत्ता म टिकिस मुहीच ला मिलही । मे केहेंव – अरे भइया , चुनई सरग म हे , तैं पिरथी म रहिथस , तोला कइसे टिकिस मिलही । परोसी किथे – सरग जाये बर छिन भर नी लागे , जतका बेर पाबो ततका बेर उठ अऊ रेंग , जे दिन टिकिस के गारनटी होही सरग बर निकल जहूं । मे केहेंव तुहींच ला टिकिस मिलही तेकर का गारनटी ? का तिहींच भर दलित आवस , हमर गांव म अऊ कतको दलित हे । वो किथे – देखत नियस का टिकिस के लालच म कतको झिन सरग मसकत हे तेला .. भलुक अऊ कतको दलित हमर गांव म हे , फेर बरम्ह सत्ता सबके भाग म निये । महराज के बिचार म मोर कस नाव वाला दलित मनखे ला टिकिस मिलही , तेकर सेती घेरी बेरी , महराज के आसीरबाद बर ओकर , एक चक्कर मार लेथन । अइसे भी मोला जे सपना आये हे , तेकर मतलब महराज बतइस के , मोरे चांस जादा हे …..।
महराज ला पूछेंव । महराज किथे – तैं मोर माली हालत ला जानत रेहे । खाये बर दाना अऊ पहिरे बर कपड़ा नी रिहीस , छानी के खपरा , जगा जगा ले टूटे फूटे रहय । का करंव , कइसे करंव , कतिन्हा मुड़ी ढांकंव । रोज के आवसकता ला कइसेच पूरा करंव ? को जनी काये बात के सजा देबर , भगवान हमन ला , बामहन घर जनम दीस होही । न मोर नाव के कारड म चऊंर मिलय , न चुनई म कपड़ा लत्ता , न घर बनाये बर सरकारी सहयता । परिवार चलाये बर , कुछ न कुछ काम बूता करेच बर लागही । मेहनत के बूता कर नी सकंव , सतनरायन के कथा पूजा म कतेक चढ़होत्तरी …..? तेकर सेती , अपन पुसतैनी धनधा ला सुरू करे हंव । में देखेंव , ओकर घर के खपरा खदर छानी ला टोर के , पक्का सिरमिट छड़ के छत बनाये बर , केऊ झिन मनखे लगे रहंय । बोरा बोरा चऊंर , महराज के घर म अमरावत देखेंव , ओकर घर म नावा कमपयूटर अऊ ओकर हाथ म बड़े जिनीस कमपनी के बड़े जिनीस मोबाइल …….। मे केहेंव – पुसतैनी धनधा तो ठीक हे महराज फेर , गरीब मनखे मनला काबर ठगथस ? महराज किथे – भगवान कसम , मे कन्हो ला नी ठगंव । में पूछेंव – तैं का केहेस येमन ला ? महराज किथे – अतके केहेंव के , ये दारी सरग म , दलित मनखे , बरम्हा चुने जाही । पता निही का समझिन , उही दिन ले सेवा करे लागिन । में झिड़केंव – गरीब के जिनगी काबर बिगाड़त हस महराज ? काबर ओमन ला अतेक बड़े सपना देखावथस ? काबर ओकर मनके भाग रचथस ? महराज के जी रोवासी होगे – जे अपन भाग नी रच सकय ते दूसर के का रचही । जे अपन भविस ला नी पढ़ सकय ते , दूसर के भविस के का गणना करही । महराज के आंखी ले टप टप बोहावत आंसू , मोला अऊ कुछु पूछे के आगिया नी दिस ।
वापिस घर निंगत , परोसी ला फेर देख पारेंव । में केहेंव – काबर काकरो बात म आथव जी तूमन ? महराज , वइसन थोरहे केहे हे ? वो किथे – महराज बिचार के केहे हे । ओकर पोथी पतरा लबारी हो सकत हे , फेर अखबार अऊ ओकर मोबाइल थोरहे लबारी मारही ? मे केहेंव – महराज तूमन ला बरगला के सुवारथ पुरती करत हे ? वो फेर किथे – महराज केहे हे के , दलित ला टिकिस मिलही , माने मिलहीच ? में फेर पूछेंव – महराज के अनुसार , बरम्हा चुनई म तोला टिकिस मिलही फेर , हमर गांव के एक झिन मई लोगिन ला घला , अपनेच पिछोत के परसार म , अनुसठान काबर करवावत हे महराज हा ……। परोसी किथे – तहूं कहींच नी जानस जी , सत्तापछ के मन एक झिन ला ठड़ा कराही , त विपछ के मन दूसर ला …..। महराज केहे हे , एक कोती बाबू जात त , दूसर कोती , मई लोगिन ला टिकिस मिलही । को जनी काकर भाग म , बरम्हा बने के जोग …..। मे फेर पूछेंव – कनहो मई लोगिन ला बरम्हा बनत देखे हव जी तूमन …..महराज तूमन ला लूटे बर ……मोर बात पूरा नी हो पइस , परोसी सुरू होगे – आज तक जे बरम्हा बनथे तेमन मई लोगिन कस तो रहिथे , इंद्र जे कहि दीस तिही ला , घर के मई लोगिन कस हां में हां मिला देथे …..एको बेर तो मना करतीस । अइसन म सहींच के मई लोगिन , जदि बरम्हा के खुरसी म बइठ जही त , कनहो ला काये फरक परही ।
परोसी किथे , तैं मोला बहुत पूछ डरे , अब तैं बता , हमर गांव छोंड़ , हमर देस म , दलित मनखे अऊ कतिंहा हे ? ओकर एके सवाल म , चक्कर आये बर धर लीस । मुड़ी म पानी थोपिस त जवाब देंवत केहेंव – केवल हमरेच गांव म दलित मनखे रहितीस त ओ मन ला , जित्ते जियत हमरेच देस म , कतको राज्य के मुखमनतरी बने के चानस नी मिलतीस जी…… ।
बीते चुनई के सुरता आगे ओला । मुहुं के पानी थोकिन उतरे लगीस । समझायेंव – देस के कतको जगा म दलित मन रहिथे । परोसी किथे – रहत होही……, फेर हमर कस कतिंहा हे तिहीं बता …? सरलग केहे लागीस – हमर नाव के रासन कारड बनथे जरूर , फेर पारी पारी ले चऊंर ला सरपंच अऊ मुखिया लेग जथे । हमर लइका के इसकालरसिप म , गुरूजी के बेटा पढ़थे अऊ साहेब बन जथे । हमर नाव के भुइंया म , गऊंटिया खेती करथे । पेटरोल पम्प हमर नाव ले खुलथे फेर , मालिक हमर बिधायक होथे । हमर बर इनदिरा अवास के आये पइसा म , सब इनजीनियर के घर सहर म खड़ा हो जथे । हमर बर कागज म केऊ बेर सुक्खा कुआं खनाथे , हमर सरकारी पम्प , दाऊ के खेत म सिचई करथे । हमर लइका जे इसकूल म पढ़थे तिंहा , गुरूजी नी रहय , रहिथे तेमन , सरकार ला जानकारी देबर बियस्त या हरताल म …..। हसपताल म गाय गरू कस हमर इलाज होथे ..। मनदीर अऊ मसजिद हमर पराथना के जगा नोहे , हमर लहू म इरखा दुवेस भरे के जगा आय । धान हमन उपजाथन , बोनस कोचिया पाथे । तैं सुन नी सकस ….., बलातकार करके बड़े मनखे निकल जथे , जेल म हमर लइका सरथे । डाका पुलिस डरवाथे , चोरी म हमन फंसथन । हमर पढ़हे लिखे होसियार लइका मजदूरी करे बर मजबूर हे , बड़का मनके गदहा पिला मन , बड़े जिनीस अफसर बन जथे ……। अब बता , हमर गांव के मनखे , दलित आवय के निही अऊ महराज मुताबिक सरग के परथम नागरिक बने के अधिकार हे के निही ……?
ओकर बात म बहुत दम रिहीस , फेर ओकर भरम ला टोरना रिहीस । में केहेंव – ये तोर दलित होये के परमान नोहे बाबू । ये लकछन तो जनता के आय । दलित बने बर बहुत योग्यता चाही ……? वो सुकुरदुम होके किथे – का ..? ओकरो बर पढ़हे लिखे लागथे जी ….? मे केहेंव – ओतके ले काम नी चलय , जेकर तीर , बंगला , मोटर गाड़ी अऊ हाली मोहाली हालत डोलत रहिथे अऊ जे कतको पइसा के असामी होथे , ते मनखे सरग म दलित बनथे । दलित बने बर भारी तपसिया करे बर लागथे । कतको पीढ़ही ला कुरबानी देबर लागथे । समझिस निही , फोर के बतायेंव – सरग म जाये के पहिली , लबारी मारे म उसतादी हासिल होना चाही । जब पाये तब , जात धरम देस बदले के काबिलियत होना चाही । बइमानी करके मीठ मीठ बानी म , देवता ला रिझाये के गुन होना चाही । तब जे दिन , इंद्र के डोंगा पार लगाये बर , तुंहर नाव पतवार बनही , उही दिन दलित होये के ठप्पा लगही तुंहर उप्पर । जब तक दलावत रहू , सरग म घला , देस कस आखिरी नागरिक रहू , जब दलइया के दल म सामिल हो जहू तब , सरग के परथम नागरिक बने के सपना देखे के काबिल हो जहू । ओ किथे – अतका करत ले हमर कतको पीढ़ही गुजर जही , जनता ले दलित बने बर अतका ढमढम करे बर लागही कहिके , हम नी जानत रेहे हाबन । अइसन म हमन ला बरम्हा बने के सपनाये के सोंचना भी नी चाही । लकर धकर घर म निंगीस । फेंटा मारिस , चोंगा धरिस , खुमरी ओढ़ , खेत डहर , सुआरी संग , बासी अथान धरके , अपन नानुक पेट के नानुक सपना ला पूरा करे बर ददरिया गावत मसक दीस । मे पूछेंव – कतिहां …..? परोसी किथे – ररुहा ला दार भात ले जादा सपनाये के बारे म नी सोंचना चाही ………।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा.