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कविता

राखि तिहार

बहिनी कोखरो नई हे ता
जीवन बेकार हे
अक्षुन्य विष्वास हावय जहां
ओखरे नाम राखि तिहार ए

मॉं के ममता अउ
पिता के दुलार हे
बहिनी के बकबक हे जहां
ओखरे नाम राखि तिहार ए
जीवन के कोनो मोड़ मा
अनुराग मिले बेषुमार हे
कृति में केंद्रित हावय मनुजत्व जहां
ओखरे नाम राखि तिहार ए
बहिनी के डोली के सपना
अब मोर उपर उधार हे
बिदाई के आषु हावय जहां
ओखरे नाम राखि तिहार ए
बुढवा मन के लउठी बनना
हम सबों के संस्कार हे
आंखि मां आतुरता हावय जहां
ओखरे नाम राखि तिहार ए

कोमल यादव
मदनपुर, खरसिया