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कहानी

रूख लगाय के डाढ़ – कहिनी

एक झन पुराना बाबू कहिस रूख के बदला हमन ला रूख लगा के दिही। अब तुंहर काय विचार हे अब तुमन बतावव। गांव के पंच, सरपंच, मिलजुल के कहे लागिस। तुमन अपन अपन हाथ म बीस-बीस पेड़ तरिया के जात ले लगाहू, जेमा गांव हर पेड़ पौधा ले भरे-भरे लागय, रूख लगाय के डाढ़ हर तुहर मन के डांढ ये जान डरव।
पुराना सियान मन के भाखा हर संत बानी कस होथे। इकर मन के कहे हर कभू बेकार नई होवय। कोई मनखे ल कुछु कही त सोच समझ के कइथे। एक दिन गांव के सब सियान पंच सरपंच कोटवार पटइल महामाई चौक मेरा बइठे चिलिल बुलिल होत रहिस। मैं काय ओमेर चिलिल बुलिल होथे कइके चल देंव। एक झन पारा के कका भिथी तिर म ओध के बइठे रहीस। ओला पूछेंव कस कोदू कका, ये मेर गांव भरके मनखे कइसे सकलाय हें। कोदू कका हा कइथे जाने बेटा, हमर पुरखा मन के संगवारी ल काट डारिस। मैं डर्रा के दुसरइया फेर पूछेंव कोन ल काट डारिस कका। कका हा कुछु नई बताइस अउ चुपचाप अन्ते बिड़ी पिये बर चल दीस।
मोर मन नई माढ़िस त एक झन अउ ल पूछेंव, कस भइया घनश्याम, कोन ल काट डारिस। घनश्याम भइया मोला बताथे- कोनो ल नई काटे हे रे तोला कोन बताईस ते। मैं घनश्याम भईया ल कहेंव- मोला अभिच्चे कोदू कका हा हर बताइस हे कोन ल काट डारिस। मैं येती गोठ बात करत हांवव ओती एक झन सियान कका जेठराम माला देख डाारिस अउ अपन तीर म बला लिस। मैं उई सियान कका जेठराम ल पूछेंव कस कका, येमेर कोन काट डारिस। कका बताथे- कुछु नोहय बेटा दू झन मनखे एक ठन पेड़ ल काट दिस अच्छा तैं बता के फागू अउ टाहलु दुनो झन मिलके हमर पुरखा मन जेमा पानी रिताते आइस तेन पीपर पेड़ ल काट डारिस येला काय डाढ़ देबो अब तैं बता ते बढ़िया पढ़े-लिखे आच। मैं सब गांव वाला मनखे पंच-सरपंच गांव के सियान के बीच म खड़ा होके कहेंव- देखव कका भइया, बबा आप सब झन पुराना सियान आव मैं तो ओ दीन के लइका मैं येला काय डाढ़ देवा सकत हंव। हां, फेर ये मन ल डाढ़ जरूर मिलना चाही। दू झन गोठ कार मन खड़ा होगे अउ कहे बर धर लिस ये दूनो झन बिन बताय रूख ल काट डारिस। बिन बताय उहू म एक ठन पउव्व के लालच म येकरे सेती ये दूनो झन ल गांव ले बाहर निकाल देथन। सब के मन आत होही त।
इकर मन के गोठ ल सुनके सब झन गांव वाला ये दूनो झन ल गांव ले निकाल देवव कहे लागिस। येमन हमर पुरखा जेमा पानी रिताते आत हे। जेकर छांव म हमन खेलेन-कूदेन बड़े बाढ़ेन तेन रूख ल काट दिस। का ये दूनो झन हमन ल अइसने रूख ला के दे दीही। तेकर ले अइसना मनखे मन ल गांव ले निकाल देव। इंकर मन के कांव-कांव ल सुन के मैं खड़ा होके कहे- मन आतिस त मोरो एक ठन गोठ ल सुन लेवव जी, सब झन पूछे लागिस काय गोठ ये जी, मैं कहेंव- देखव जी, लइका मन जांघ म हागथे त जांघ ला काट के नई फेंकय। कुछु न कुछु करके पोछथे, सब सियान पंच सरपंच मोर गोठ ल सुन के कइथे त येमन ल काय डाढ़ दीन, मैं कहेंव- भइया हो, फागु अऊ राहलु गांव के मनखे ये फेर पिये पियाय म एक ठन गलती कर डारिस त येकर डाढ़ ले बाहर निकाले के देथव। ये दूनो झन तो गलती कर डारे हे तेकर ले ये मन अपन हाथ म बीस-बीस ठन रूख लगा के दीही जब तक रूख मन हमर पोरिस भर नई हो जाही तब तक ये राख के बढ़ा के हमन ल दीही। भले ये मन ल तीन-चार साल लग जाय, कइसे फागु कइसे राहलु मैं कहत हांवव तेमा तुमन राजी हव धन नहीं। त का होही भाई हमन राजी हन.. फागु अउ राहलु दूनो झन मोला कहीस। उई मेर एक झन पुराना डोकरा बइठे रहिस तेन हर कइथे तैं ठीक कहत हच बाबू रूख के बदला हमन ला रूख लगा के दिही। अब तुंहर काय विचार हे अब तुमन बतावव। गांव के पंच, सरपंच, मिलजुल के कहे लागिस।
सियान हर हमर संत बराबर ये येखर बात ल हमन एको बेर नई काटे हन अब सुनवजी तुंहर डाढ़ तुमन अपन-अपन हाथ म बीस-बीस पेड़ तरिया के जात ले लगाहू, जेमा गांव हर पेड़ पौधा ले भरे-भरे लागय, रूख लगाय के डाढ़ हर तुहर मन के डांढ ये जान डरव अउ गांव वाला मन तको सुनव इंकर संगे-संग 2-2 ठन पेड़ तहूं मन लगाहू अउ सुनव जेन हर आज काल रूख राई ल काटही तेन ल अब गांव ले बाहर हुक्का-पानी बंद कर देबो।
श्यामू विश्वकर्मा
नयापारा डमरू
बलौदाबाजार