Categories
व्यंग्य

सुंदरी बन गे भंइसी मेंछरावत हे, संसो म ठेठवार के परान सुखावत हे

हमर राम जी ठेठवार बइहाय हवे, बिहनिया ले तेंदुंसार के लौड़ी धर के किंजरत हे। मैं हां टेसन कोती जात रहेवं त भेंट पाएंव। सोचेंव के बिहनियाच ले मिल गे साले हां पेरे बर। महुं कलेचुप रेंगत रहेंव, झन देखे कहिके, फ़ेर देख डारिस बु्जा हां।
“महाराज! पाय लागी, रुक देंवता रुक, गोड़ ला धरन दे।” अइसने कहिके गोड़ ला धर लिस लुवाठ हा।
“खुस राह, जय हो, राम जी, कैसे बिहनियाच-बिहनिया ले भट्ठी डहार आगे”
“का बताओं महाराज! हमर घर मेरन एक झिन मास्टर रेहे बर आए हवे, बने पढे लिखे होशियार हे, ओखरे चक्कर मा पर गेंव, अलहन होगे महाराज-तिंही कुछु कर त मोर संसो हां हेरावे”
“अरे गोड़ ला त छोड, जम्मो हां देखत हे साले, बिहनिया ले दारु पी के फ़जीता करत हस”
“नई छोडवं गोड़ ला, पहिली मोर गोठ ला सुन, अउ मोर समस्या ला दूर कर”
“छोड साले गोड़ ला, तमासा लगाए हस टेसन मा, गोड़ ला छोडबे त सुनहुं मे हां” अइसे कहेवं त मानिस बुजा अउ गोड़ ला छोडिस।”
“का बताओं महाराज! पंदराही पहिले मास्टर हां पेपर पढत रहिसे त मैं पुछ डारेव काय पढत हस गुरुजी कहिके। त गुरुजी किहिस-“राम जी तोरे लायक बुता हवे, तोर डेरी मा एक ले एक बने सुंदर भैंसी हवे अउ बने बम्बई मा भैंसी मन के ब्रह्माण्ड सुंदरी प्रतियोगिता होवत हवे, तहुं अपन एको ठिक भैंसी ल साज संवार के भेज दे, जीत जाही त बने इनाम मिलही, पेपर मा तोर अउ भैंसी के फ़ोटो छपही, बने डेरी के गिराहकी बढ जही, तोला चंडी बांटे ला नइ लागे जम्मों हां इंहच्चे ले आ के दुध ले जाही।”
“त फ़ेर काय होइस गा-आघु बता मोला तुरते जाना हे, गोठ ला लमा झन जजमान अवैइया हे।”
“मास्टर ला पुछेंव त उहां जाए बर काय करे ला लागही, त ओहां बताईस तोर भैंसी ला बने धो मांज के रखे कर 10-15 दिन मा एकदमें चिकना जाही, मोर जमना मुर्रा भैंसी हवे, बने कर्रु-कर्रु आंखी के, कटारी नैना, देखथे तौने हां दीवाना हो जाथे, बने रोज बिहनिया अउ संझनिया फ़ेयर अन्ड लवली चुपरंव, बने गोरियागे रहिस। तहां ओ ला बम्बई पठोएं बरातु संग। कहिथे के ब्रह्माण्ड सुंदरी बने बर जाथे तेखर संग एक ठिक मनेजर घला पठोए ला लागथे, ओखर देख रेख जतन करे बर। बरातु हां ओखर पानी कांजी के बेवस्था करही, अउ एक ठिक झोलंगा पेंट, काय कहिथे टुरा मन, बरमुड़ा, हां! बरमुड़ा तैसने घला सिलाए हवे। कांहि स्टेजे मा छर्रा मार के पुंछी ला हला दिस त हो गे सत्यानाश । अब भैंसी हां त चल दिस महाराज ।
“ले बने होगे, इनाम झोंक के आही त उही पैसा दु-चार ठिक भैंसी अउ बिसा लेबे। त एमा काय संसो होगे तोला।”
“तैंहा संसो कहत हस, मोर जीव परान छुटत हे, हमर नाती हां पढैया हवे, ओ हां बताइस के जौन हां ए सुंदरी प्रतियोगिता मा चल देथे तौन हा, लहुट के नइ आवै, मनेजरे संग मसक दे थे। अउ उंहा त रंग-रंग के पड़वा अउ भैंसा आथे, कहीं काखरो संग मसक दिस त मोर काय होही। अउ लहुट के आगे त दुहाय नहीं, फ़िगर खराब हो जाही कहिथे। अब बता काला फ़िगर कहि्थे तेला मैं काय जानवं। जब ले सुने हंव अइसने तब ले बुध हां काम नई करत हे पी-पी के गिंजरत हंव अउ तोला खोजत रहेंव।
“त एमा मै काय कर सकथौं?”
“तैंहा महाराज बम्बई आत-जात रहिथस, मोर भैंसी ला लहुटा देतेस, मोला नई बनाना हे ब्रह्माण्ड सुंदरी, हाय मोर जमना! तोर जाए ला कोठा पर गे हे सुन्ना। ला दे महाराज मोर जमना ला, आही त ओखर बर 10किलो फ़ेयर एन्ड लवली अउ 5किलो लिपिस्टिक बिसाहुं, भले कर्जा हो जाही फ़ेर ओखर गोल्डन फ़ेसियल करवाहुं,
बने आई ब्रो ला कमान कस बनवाहूँ, एक दम सजाहुं भगवान, एक दम सजाहुं।
“ले सुन डरेवं तोर गोठ ला, जा घर जा, मैं हां तोर जमना ला लाए के उदिम करत हंव, अउ बिहनिया ले पी-पी के झन किंजर, बने जा के सुत। तोर जमना हां आ जाही।”
“ले मैं जात हंव महाराज, फ़ेर मोर जमना हां दुहाय नहीं कहिथे, इंहा रिहिस त दु टैम के 15 किलो दुहात रहिसे, एकदमे नुकसान हो जाही गा।”
“भैंसी चाहे कोठा के होय या ब्रह्माण्ड सुंदरी, ओ हां जिहां रही उहां ओला दुहायच ला परही। इंहा त तैं एके झन दुहैया हस, बाहिर मा त नाहना डोरी धर के अड़बड़ पहाटिया मन गिंजरत रहिथे, कौनो भैंसी पातेन त दुहतेन, ले तैं जा महुं जात हवं, मोरो जजमान के आए के बेरा होगे हे।” अइसे कहीके महुं रेंग देंव।—
ललित शर्मा
अभनपुर

11 replies on “सुंदरी बन गे भंइसी मेंछरावत हे, संसो म ठेठवार के परान सुखावत हे”

कांहि स्टेजे मा छर्रा मार के पुंछी ला हला दिस त हो गे सत्यानाश ।
हा हा हा ….बोले तो मस्त एकदम !

और लाख टके की बात भी —
“भैंसी चाहे कोठा के होय या ब्रह्माण्ड सुंदरी, ओ हां जिहां रही उहां ओला दुहायच ला परही। इंहा त तैं एके झन दुहैया हस, बाहिर मा त नाहना डोरी धर के अड़बड़ पहाटिया मन गिंजरत रहिथे, कौनो भैंसी पातेन त दुहतेन

बहुत सटीक व्यंग्य …

“तैंहा महराज, बम्बई आत-जात रहिथस, मोर भैंसी ला लहुटा देतेस …”

देख के महराज, कहूँ तहुँ हा रद्दा में दुहे बर झन बइठ जाबे, अब्बड़ भरोसा कर के भेजत हे ठेठवार हा तोला।

“देख के महराज, कहूँ तहुँ हा रद्दा में दुहे बर झन बइठ जाबे, अब्बड़ भरोसा कर के भेजत हे ठेठवार हा तोला”। अवधिया जी के टिप्पणी के बाद अब काय कहौं कहिके सोचत हौं। अवधिया जी ल केहे बर परही महराज हा फ़ौजी आदमी आय। बिस्वास घात नई करय। जउन करही डंका के चोट मा करही।………तेक्खर …………।

महराज अउ सही बात लिखे हस आज के देस काल परिस्थिति ल देख के ये बिचार आबे करही। गाड़ा भर हांस लेंव। पोस्ट एक नंबर के हे जी। हमर छत्तिसगढ़िया मन बर।

पढ़े पर बहुत ज्यादा ग्रहण नहीं कर पाए ..
ऑनलाइन आपसे बतिया के समझने की कोशिश किये तो सहसा आप नदारद मिले ..
लेकिन भैस का विश्वसुन्दरी के स्टेज पर ले जाना मौलिक ख्याल है ..
और
अभनपुर के ललित जी कम चोख नहीं हैं . बवाल // आभार !

DHANYAWAD . MAHARAJ JI . AAP BAHOOT HI ACCCHA BYANGYA KAR HAWAW .AAPMAN KE VICHAR BAHOOT SUNDER HAWAY AESASANE DO CHAR AU SUNAWAW DHANYABAD.

Comments are closed.