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कहानी

लालच के फल

एक गांव म एक झन मरार डोकरा अउ मरारिन डोकरी रिहिस। दूनों झन बखरी म साग-भाजी बोय अउ बेंचे। मरार डोकरा ह रोज बखरी ल राखे बर जाय। इन्द्र के घोड़ा ह डोकरा के बखरी म रात के बारा बजे रोज आय अउ साग-भाजी ल चर देय। मरार डोकरा अपन डोकरी ल बताथे काकर गरवा ह आथे वो अउ बखरी ल चर के चल देथे। मेहर पार नइ पावौ, डोकरी कथे- डोकरा तैंहर आज दिनभर अउ रात भर बखरी म रबे। डोकरा हव काहत बखरी म चल देथे। रात के बारा बजे इन्द्र के घोड़ा आइस अउ चरे लगिस, डोकरा उनिस न गुनिस अउ वोकर पूछी ल रब ले धरिस। घोड़ा उड़ावत डोकरा ल इन्द्र लोक ले जथे। इन्द्र लोक म बइठे डोकरा ल सैनिक मन पूछथे- ए डोकरा इहां ते काबर आय हस। तब डोकरा कथे- जा तोर मालिक ला बता देबे अन्नी लेय बिना मेहर इहां ले नइ जावव, काबर कि तोर मालिक के घोड़ा हर मोर बखरी ल चर देय हे।
सैनिक, इन्द्र भगवान ल जाके सब बात ल बताथे अउ कथे मृत्यु लोक ले एक झन डोकरा आय हे तेहर अन्नी लेय बिना नइ जावव काहत हे। इन्द्र भगवान कथे- अरे सैनिक, डोकरा ल एक काठा हीरा-मोती देके घोड़ा ल पहुंचाय बर भेज दे। घोड़ा डोकरा ल मृत्यु लोक पहुंचा के चल देथे। डोकरी ह डोकरा के रद्दा देखत रथे। ओतकी बेरा डोकरा घर पहुंचथे, अउ अपन खोली के कोनहा म काठा के हीरा मोती ल रख देथ। हीरा मोती चमके लागिस। मरार डोकरा, डोकरी नइ जानै कि येहर हीरा मोती आय। डोकरी कथे- ए तो चमकत हाबे डोकरा। डोकरी कथे जा दू ठन ल धर ले अउ साहूकार के दुकान म दे देबे कहूं खाये पिये के समान दे दिही ते। साहूकार के दुकान म डोकरा जाथे अउ देखाथे। साहूकार देख के चिन डारथे कि ये तो हीरा-मोती आय। साहूकार झट ले डोकरा ल पूछथे- काय-काय लागही ग। डोकरा खुश हो के खाय-पिये के समान ल मांग डारथे। सामान ल धरके डोकरा ह घर म आथै अउ डोकरी ल बताथे। डोकरी सुनके खुश हो जथे। अइसने-अइसने दिन बितत गिस।
एक दिन साहूकार डोकरा ल पूछथे- कस ग तेहा येला कहां पाय हस। डोकरा ह सब बात ल बता दिस। त साहूकार कथे महूं जातेंव जी तोर सन। डोकरा कथे चल न भइ मोला का हे। साहूकार ह अपन घरवाली ल बताथे कि में हा डोकरा सन जावत हंव, एक काठा हीरा-मोती हमरो घर आ जही। साहूकारिन कथे- साहूकार महूं तूंहर संग जातेंव ते दू काठा आ महूं जातेंव ते दू काठा आ जतिस। ये सब बात ल सुनके साहूकार के बेटा कथे- महूं जातेंव ग तीन काठा आ जाही। ओकर बहू कथे महूं जाहूं तुंहर मन संग, चार काठा आ जाही। हमन मंडल हो जाबो, पूरागांव ल बिसा डारबो। चारों झन डोकरा संग गइन। डोकरा कथे ठीक अधरतिया के बेरा घोड़ा ह आथे, मेहा आही तंह ले रब ले घोड़ा के पुछी ल धरहूं अउ साहूकार मोर गोड़ ल धरबे, तोर गोड़ ल तोर घरवाली धरही, तोर घरवाली के गोड़ तोर बोटा धरही, वोकर गोड़ ल तोर बहू धरही। अइसे तइसे करत रात के बारा बजिस अउ घोड़ा आइस तंह ले रब ले डोकरा ह पुछी ल धरिस। येती साहूकार, वोकर घरवाली, वोखर बेटा, वोकर बहू सब एक दूसर के गोड़ ल धरिन। अब घोड़ा ह उड़ास लगिस साहूकार पूछथे। तोला देय रिहिस ते काठा कतका बड़ रिहिस डोकरा। डोकरा साहूकार के बात ल सुन के कथे- अतका बड़ रिहिस साहूकार कहिके घोड़ा के पूछी ल छोंड़ पारिस। सबो के सबो भड़भड़ ले भुंइया म गिरिस। डोकरा ह साहूकार के ऊपर लदागे अउ सब झन खालहे म चपकागे। साहूकार के संग वोकर घरवाली, बेटा, बहू सबो झनप मर जथे, डोकरा भर बांच जथे।
येकरे सेती के हे गेय हे, फोकट के चीज बस के लालच नइ करना चाही। जादा लालच करई ह जिव के काल होथे।

भोलाराम सिन्हा ‘गुरुजी’
डाभा करेली छोटी धमतरी

One reply on “लालच के फल”

bahut hi sundar << लालच बुरी बाला , सहकर ने हेशा ही लालच को अपनाया जिसका फल उसे मिले<.शुभ हो मरार गोइटी का उपकार भरा व्यवहार ,शुभ हो ,>,जय जोहार<नवीन

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