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कहानी

लाली चूरी

तुलसी अंगना के धुर्रा रपोट रपोट के परदा रुंधे। पारा भर के लोग लइका सेकला के घरघुfधंया खेले। एक झन नोनी के दाइ बने एक झन बाबू के दाई। सुघ्घर पुतरी पुतरा के बिहाव रचै। लइकुसहा उमर के लइकुसहा नेंग जोग। उही बरतीया उही घरतीयाए उही लोकड़हीन उही बजनीया। नान नान पोरा चुकिया साग भात चुरय। कमचिल के मड़वा तेल हरदी चड़हय अउ भांवर परय। टूरा मन कनिहा नंगारा बांधे। रोंगो बती अउ पानवाला बाबू गाना गा गा के गुदंग गुदंग नाचे। ये ठट्ठा दिल्लगी के बिहाव देख के तुलसी दाई हा चावंरा बइठे बइठे हांसे।
तुलसी के दाई ओतके बेरा बाहिर कोत काकरो हुत पारे के आरो पाइस। तुलसी किथे. जा बेटी कपाट खेल देए कोन चिल्लावथे। ठुकुर ठुकुर बाहिर कोती ले अवाज आवथे।
तुलसी काहा सुनय वोतो लइका के टिकावन मगन हे।
अपने हा कपाट खोलिस। दुवारी पटइल अउ दू झन अनगइहा सगा ठाढ़हे राहय। पटइल कका अउ सगा भितर बलाइस।
तुलसी के दाई पुछिस.कइसे आय हव कका घ्
पटइल किथे.आय बर तो रेंगत आय हन अउ कारन फुछबे मे हा तोर नोनी बर सगा लानेहव।
सगा के नाव सुन के तुलसी के दाई हा लकर धकर मुड़ी ठांकिस। लोटा पानी दिस अउ पालगी करके खटिया बइठारिस। तुरते आगी सुलगा के चाहा डपका डरिस। तुलसी के दाई तुलसी किथे . जात नोनी तोर ददा बला के आबे। घर सगा आहे कीबे ताहन जल्दी आही। नइ जाव नइ जाव काहत रिहीस तेला जोजिया के भेजीस।
अगुन छगुन करत तुलसी खेत गीस अउ अपन ददा किथे. ददा हमर घर सगा आहेए दाई तोला बलावथे।
वोकर ददा दिल्लगी करत किथे. तोर दाई के पेट तो काहि नइ रिहीस कंाहा के अउ नवा सगा जही।
तुलसी किथे. ओइसना सगा नही ददा पटइल बबा हे तेकरे संग दू झन सगा आहे। दाइ काहत रिहीस हे मोला देखे बर आहे किके। वोतका बात सुन के वोकर ददा के मुह लाड़ू हमागे खुसी के मारे काम बुता छोड़ के घर आगे।
पटइल कका सगा संग भेट करईस। घर दुवार देख के सगा कर तुलसी हारिस। पुरोहित करा लगन पतरी धरा के बिहाव के मड़वा गाड़िस। अनबुद्धि लइका का जानयए जेन अंगना पुतरी बिहाव के खेल खेलय उहा सिरतोन के मड़वा गड़े हे। दाई के कोरा बइठे चार बच्छर के तुलसी बिन मु के गरवा बरोबरए ददा पांच साल के दुलहा के टोटा आरे दिस। तुलसी के  दाई ददा दूनो कनियादान के धरम करके पुन कमा डरिस। लइका मन नान नान रिहीस ते पाय के गवन नई कराइस।
तुलसी बर तो ओकर बिहाव घला खेलवना रिहीस। अपन उही अंगना के घरघुधिया बाहा भर चुरी पहिरे सोहागिन के fसंगार सजाए रिहीस। दु चार दिन बिहतरा लाड़ू सिरागेए सगा सोधर अधियागे। बर बिहाव बने रकम ले निपटगे।
फेर तुलसी के अंगना कभु सुन्ना रइबे नइ करय। रोज इसकुल ले आवे ताहन सबो सहेली सकलाके फुगड़ीए गोटाए बिल्लस रमे राहय। धीरे धीरे तुलसी सगियान होत गिसए खेलइ कुदई छुटत गीस अउ पढ़ई लिखई मन रमत गीस। तुलसी चंचल अउ पढ़ई गजब होसियार रिहीस।
पांचवी अउवल आईस तभो ओकर ददा छटवी भरती नई करईस। नानी जात मन कतेक पढ़ही लिखही किके ओकर दाई घला किदीस। अब तो तुलसी के पढ़ई छुटगे। चलचला तुलसी थोर बहुत अपन दाई संग काम बुता करन लागे।
बारा बछर के तुलसी दाई ददा बोझा लगे लागिस। सोचे लागिस सगा घर जाके गवन पठौनी मड़ा दतेन ते हमरो मुड़ ले बोझा उतर जतिस। तुलसी के ददा सगा घर जाय के सोचते रिहीस वोतके बेरा ठुक ले समघी गांव के संदेसिया आगे।
संदेसिया किथे. तुहर सगा उपर बिपदा आए हे तुमन खत्ताम बला हे। तुलसी के ददा संदेसिया सो पुछिस का होगे का बाते तेमा अतेक बिहनीया ले समधी के बलावा आगे। संदेसिया अपन तिर बला के सबे बात बताईस। तुलसी के ददा सुन के दंग रीगे।
सगधी के संदेस पाके तुरते संदेसिया संग रवाना होगे। माटी पानी के किरीया करम निपटा के संझाकुन धर लहुटिस।
रोनमुहा थोथना देख के तुलसी के दाई पुछिस. का होग होए कोनो अलहन आगे तइसे लागथे।
तुलसी के ददा किथे.हमर दमांद अब नइ रिहीस बेटी के घर बसे के पहिली उजरगे। दाई ददा दूनो अपन बेटी के बिगड़े भाग देख के मुड़ी धरे रोवथे। तुलसी घर अइस ओकर दाई हाथ धर के ओकर हांथ के लाली चुरी चर चिर ले कुचर दिस।
दाई दमांद बर रोवथेए ददा बेटी के भाग अउ तुलसी अपन हाथ के चुरी बर रोवथे।
तुलसी समझावत महतारी आज वोकर बिहाव के बात बतावत किथे. हमन तोर नानपन बिहाव कर दे रेहेनए मोर नानपन के सोहागिन बेटी आज तोर सुहाग उजरगे तै राड़ी होगेस। ददा धिरज धरोवत काहय.आज ले तै दूसर लइका मन कस चुरी चाकी टिकली माहुर झन लगाबे। सोलह fसंगार के सातो रंग तोर बर सादा कारी होगे।
तुलसी किथे जेन बिहाव जानव नही तेला मै मानव नही। बिहाव के सुख देखे नइहवं अउ राड़ी के पिरा धरावथव। तुलसी नई मानिस। अपन जिद अड़े दु दिन चुरी चाकी पहिर के गांव fकंजर दिस गांव भर हो हल्ला होगे। राड़ी टुरी मटमट ले संभर के fकंजरथे अउ दाई ददा के नाक कटावथे। फलानी के टुरी चुरी नई उतारे कइके गांव बइठका सकलागे।
तुलसी तो काकरो डर नइहे फेर दाइ ददा समाज के डर हे। गांव के बइठका तुलसी के ददा के मुड़ी नवे फेर तुलसी अपन उपर गरब हे। बेटी बाप के मजबुरी समझीस अउ चार गंगा ले जवाब मांगिस . काहा गे रिहीस तूहर समाज जब मोर नानपन बिहाव होइस घ् आज राड़ी होगेव मोर चुरी उतारे बर चार समाज जुरियागेव।
अतका सुन के सबो सियान के मुड़ी नवगे। तुलसी किहीस कहू तुहर थोरको सरम बांचे हे इही चार गंगा किरीय खाव कि अब ले काकरो नानपन बिहाव नई करन अउ करन देवन। अपन अपन बेटी मन घलो बेटा बरोबर पढ़ा लिखा के साकछर बनाहू। कहु तूमन अइसन किरीया खाइ बर तियार हव महू अपन हाथ के चुरी कुचरे बर तियार हवं।
दाई ददा अपन करनी के पहिलीच ले पछतावा रिहीस। अब गांव वाला के घला आंखी उघरगे। सबो झन मिल के लोटा गंगा जल धरके किरीया खाइन। तुलसी हा घलो खुसी के आसू छलकात अपन हांथ के चुरी कुचरे बर दूनो हांथ उठाइस। ओतके बेरा गांव के सियान मन चिल्ला उठीस. ठैर जा बेटी तै अपन हांथ के लाली चुरी झन कुचर। होनी तो कोनो नइ टारे सके। जवइहा तो चल दिसए तोर जिनगी रोवत काबर कटय नोनी। अब हम सब तोर संग हन। गावं भर के तै सियानीन बेटी अस। जा पढ़ लिख के अपन जिनगी बना हम सब तोर संग हन।         
                            
जयंत साहू 
ग्राम डुण्डा

पो. सेजबाहर रायपुर