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लोक कथा : सुरहीन गैया

Birendra Saralएक गांव में एक झन डोकरी रिहिस, ओखर एक झन बेटा रिहस जउन ह निचट लेड़गा अउ कोड़िहा रहय। डोकरी ह गांव में बनी-भूती करके दु पइसा कमावय उही आमदनी में दुनों महतारी बेटा के गुजारा होवय। उपरहा में लेड़गा ह अपन-संगी जहुंरिया मन ला बने खई-खजाना खावत देख के वइसनेच जिनिस के मांग अपन दाई ले करे। अब बिचारी गरीबिन डोकरी ह लेड़गा के मांग ला कहां पूरोय बर सकतिस। एक दिन लेड़गा ह पान-रोटी खाहूं कहिके अड़बड़ जिद करिस। बिचारी गरीबिन काय करे, एक डहर दुलरवा बेटा के मया अउ दूसर डहर बैरी गरीबी । फेर महतारी के मया तो मया होथे। कहुं कर ले मांग-जांच के डोकरी ह चुनी-भूसी लानिस अउ लेड़गा के खाय बर पान रोटी रांध डारिस। रोटी ह एकदम गाड़ी के चक्का बरोबर गोल बने रहय। ओला देख के लेड़गा हा गजब खुश होगे । रोटी ला खाय बर छोड़ दिस अउ खेलउना असन खेले बर धर लिस। पान रोटी ला चक्का असन अपन अंगना में ढुलोय लगिस।

रोटी ह उही मेर ढुले अउ चुप ले माढ़ जाय फेर एक बेर अइसे ढुलिस कि घर के मोहाटी के ओ पार निकलगे। लेड़गा ह पाछू-पाछू दौड़िस। रोटी ह ढुलत-ढुलत गांव ले बाहिर निकलगे अउ जंगल डहर ढुले बर लगगे। लेड़गा ह ओला पकड़े के उदिम करिस फेर रोटी पकड़ाबे नइ करिस । रोटी ह ढुलत-ढुलत अइसे घनघोर जंगल में पहुंचगे जिहां सुरहीन गैया मन के कोठा रहय। रोटी ह उही कोठा में खुसरगे। लेड़गा घला पाछु-पाछु दउड़त कोठा में पहुंचिस तब देखिस। कोठा में मनमाने गंदगी रहय। गोबर ह दलदली बरोबर होगे रहय। नान-नान बछरू मन गोबर में छड़बडाय रहय।

लेड़गा उहां अपन पान रोटी ला खोजे लगिस फेर रोटी ह मिलबे नइ करिस। अब वोहा रोटी के लालच में सब गोबर ला साफ करिस । तीर-तखार के गोबर कचरा,कांटा-खुटी सबला बने रपोट के साफ करिस अउ कोठा ला खल्हार-बहार दिस। तीरेच के नदिया मे सब बछरू मन ला लेगके बने चिक्कन धो दिस अउ लान के कोठा में ओइला दिस। बेरा कतका बेर निकलगे लेड़गा ला पता नइ चलिस जब भूख लागिस तब फेर वोहा अपन पान रोटी ला खोजे लगिस। अइसे -तइसे करके सांझ होगे अब लेड़गा ला अपन घर जाय के सुध लागिस। वोहा आधा डर आधा बल करके घर जाय बर कोठा ले निकले बर लगिस।

तब बछरू मन किहिन-ममा! तैहा हमर अड़बड़ सेवा जतन करे हस। हमर दाई मन ला आवन दे तहन चल देबे। बछरू मन के गोठ ह लेड़गा ला गजब नीक लागिस। काबर कि ओखर एको झन बहिनी तो रिहिस नइहे । आज तक कोन्हो ओला ममा तक नइ कहे रहिस। लेड़गा ह उहींचे गाय मन के अगोरा करत रूकगे।

संझाती होइस तहन सब सुरहीन गैया मन जंगल ले चारा चरके अपन कोठा में पहुंचिन। कोठा ला एकदम साफ-सुथरा अउ बछरू मन ला चिक्कन देख के गाय मन अचरज में पड़गे । ओमन बछरू मन ला पूछिन-इहां के साफ-सफाई ला कोन करे हे? बछरू मन किहिन- दाई हमर ममा आय हावे ,उही ये सब बुता ला करे हावे। बछरू मन लेड़गा डहर इशारा करके सब बात ला बता दिन।

सुरहीन गैया मन लेड़गा ला किहिन-सिरतोन में भैया तैहा गजब मयारू हस। हमर लइका मन के सेवा जतन मन लगा के करे हस। हमर मन के देख-रेख करइया कोन्हो नइ हे । तैहा इहें हमर मन संग रहि जा। आज ले हमन भाई-बहिनी बन जथन। दुःख-सुख मे एक-दूसर के संग देबो। लेड़गा तियार होगे ।

अब रोज लेड़गा ह बिहनिया ले सुतके उठे अउ कोठा के साफ-सफाई करे। बछरू मन ला नदिया में लेगके धोय अउ चराय। गाय मन बर चारा पानी के बेवस्था करे । बदला में गाय मन के दूध पीये। अइसने -अइसने अड़बड़ दिन बीतगे। दूध-घी खाके लेड़गा के देहे ह सोन बरोबर दमके लगिस। केश ह घलो सुनहरा होगे। शरीर ह पहलवान मन कस बलवान होगे। एक दिन सुरहीन गैया मन किहिन-भैया लेड़गा तोला हमर सेवा-जतन करत गजब दिन होगे। आज ले तैहा कही नइ मांगे हस। हमन तोर सेवा जतन ले गजब खुश हन । तोला जउन बरदान मांगना हे मांग ले।

लेड़गा किहिस- बहिनी हो तुंहर मया ह मोला मिले हे एखर ले बड़े बरदान अउ का हो सकत हे। बस तुहर सेवा करत मोर पराण छूटे इही बरदान देवव। फेर गाय मन लेड़गा ला बरदान मांगे बर गजब जिद करे लगिन। आखिरी में लेड़गा सोचिस, येमन ला अइसे बरदान मांगना चाही जउन येमन दे बर झन सकय। लेड़गा किहिस-तुमन ला देनच हे तब मोला कोन्हो राज के राजा बने बरदान देवव। सुरहीन गाय मन लेड़गा ला राजा बने के बरदान दे दिन। बरदान सुनके लेड़गा ह मने मन हांसत रहय। वोहा सोचत रहय ले, मैहा जनम के लेड़गा कहां के राजा बन जहूं। अउ यहू बहिनी मन निचट लेड़गीच आय।

एक दिन के बात आय। लेड़गा ह बछरू मन ला नदिया में धोके चरे बर छोड़ दिस अउ अपन ह बने लगर-लगर के नहाय बर धरलिस। ओखर मुड़ के अड़बड़ अकन केश ह झड़गे। लेडगा ह सोचिस, मोर अतेक सुदंर केश ह पानी में बिरथा बोहा जाही। वोहा तुरते महुआ पान के दोना बना के अपन केश ला रख दिस फेर केश ह लहरा के सेती पानी में बोहागे।

केश ह बोहावत-बोहावत दूसर राज में पहुंचगे। उही बेरा में वो राज के राजकुमारी ह अपन संगी -सहेली मन सेग जलक्रीड़ा खेले बर नदिया में आके पानी में डफोरत रहय। तभे ओला बीच नदिया के धार में बोहावत दोना दिखिस। राजकुमारी ह अपन सखी-सहेली मन संग तउरत नदिया के बीच धार में जाके वो दोना ला पकड़ लिस अउ देखिस। दोना में सोन असन केश देख के राजकुमारी सोचे लगिस, जब केश ह अतेक सुंदर हे तब वोहा कतेक सुंदर होही जेखर ये केश आय। जरूर ये कोन्हो बड़े राजा-महराज नही ते राजकुमार के होही। राजकुमारी मने-मन उही मेर परण कर दिस अब मैहा कोन्हो संग बिहाव करहू तब बस इही सुनहरी केश वाला राजकुमार संग। राजकुमारी ह जल क्रीड़ा करके अपन राजमहल में लहुट के आगे। वोहा अपन सुध-बुध ला भुलागे अउ रात-दिन बस उही सुनहरी केश वाला राजकुमार के बारे में सोचत रहय। हंसना-खेलना, खानी-पीना सब भुलागे।

राजकुमारी के अइसन दशा देखके राजा-रानी मन संशो में पड़गे। एक दिन राजा ह ओला पूछिस तब राजकुमारी ह अपन परण ला बता दिस। राजा ह ओला गजब समझाय के उदिम करिस कि अनचिन्हार मनखे ला बिना पता ठिकाना के खोजना भूसा में सूजी खोजे अस बहुत कठिन काम आय। फेर राजकुमारी अपन जिद में अड़ दिस।

बिहान दिन राजा ह राज भर में fढंढोरा पिटवा दिस कि जउन ह सुनहरी केश वाला राजकुमार के पता लगा के राजमहल में लाही तउन ला एक थारी सोन के मोहर इनाम दे जाही। राज भर के मनखे ओ राजकुमार के पता लगाय बर भिड़गे फेर ओखर पता नइ चलिस। आखिरी में ओ राज के एक झन मंत्री ला उपाय सूझिस। ओहा अपन सैनिक मन ला किहिस- ये सुनहरा केश ह नदिया में बोहावत आय हे, मतलब ओ राजकुमार कोन्हो नदिया तीर के राज के होही। तुमन नदिया के खड़े-खड़ तब तक आघू बढ़व जब तक ओखर पता नइ चल जाय।

सैनिक मन वइसनेच करिन। साल भर के राशन पानी धरके ओमन नदिया के खड़े-खड़ रेंगें लगिन। सात-आठ महिना के बाद में ओमन उही जंगल में पहुंविन fजंहा सुरहीन गाय मन के कोठा रहय। ओमन देखिन नदिया के खड़ में एक झन पहलवान असन मनखे नान-नान बछरू मन ला धोवत रहय। सैनिक मन तुरते ओखर तीर पहुंचगे। ओखर मुड़ के सोनहरी केश ला देख के चिन्ह डारिन। अउ राजकुमारी के जिद के बात ला बता के अपन संग चले बर किहिन। पहिली तो लेड़गा ह तियार नइ होइस । जब सैनिक मन गजब जिद करिन तब वोहा कहिस – जाय बर तो जाहूं फेर पहिली मोर भांचा अउ बहिनी मन ला पूछ लेथव। सैनिक मन समझिन कोन्हो मनखे ला पूछही फेर जब लेड़गा ह ओमन ला सुरहीन गैया के कोठा में लानिस तब ओमन अचरज में पड़गे।
संझाती बेरा जब सुरहीन गैया मन जंगल ले चर के लहुटिन तब लेड़गा ओमन ला सब बात ला बता के राय पूछिस। गाय मन किहिन-भैया तै भुलागेस, काय बरदान मांगे रेहेस। हमर दे बरदान अब पूरा होगे। हमर मन के जतन भाव करे हस । येहा ओखरे कीमत आय। जा कोन्हो राज के राजा बनके बने खाबे कमाबे। बछरू मन किहिन -ममा फेर हमर मन के सुरता ला झन भुलाबे। लेड़गा ह सैनिक मन संग चल दिस।

लेड़गा के गौ सेवा के बात ला सैनिक मन के मुंहु ले सुनके राजा ह गजब खुश होइस अउ किहिस- गउ ह तो हमर माता आय। जउन मनखे गउ माता के सेवा करथे वोहा जिनगी भर सुख-संपत्ति पाथे। राजा ह खुश होके लेड़गा संग अपन राजकुमारी के बिहाव कर दिस अउ अपन आधा राज ला देके राजा बना दिस। मोर कहिनी पुरगे, दार भात चुरगे।

वीरेन्‍द्र ‘सरल’
बोड़रा, मगरलोड
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

4 replies on “लोक कथा : सुरहीन गैया”

सरल जी आपके कहिनी सुघ्घर लागिस ,कहिनी के आख्रिरी म आपके हुंकारूं दार भात चुरगे मोर कहिनी पूर गे कहई ह सियानिन दाई अउ फुफु मन के सुरता देवा जाथे जउन मन हमला किस्सा सुनावय आपके अवईया कहिनी के अगोरा म …….

Gurtur goth ke madhyam le chhatisgarhi bhasha m kisam kisam ke sughar Kavita, Kahani, Upanyas parhe bar milathe | sabo rachanakar man l gada gada badhai . Yadi Gurtur goth ke madhyam ” Chhattisgarhi Vyakaran ” parhe bar miltis t au bane lagtis .

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