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कहानी

लोक कहिनी : ठोली बोली

छकड़ा भर खार पीये के जिनिस देख के सबे गांव वाला मन पनछाय धर लिन कब चूरय त कब सपेटन।

ए क ठन गांव म नाऊ राहय। बड़ चतुरा अऊ चड़बांक। तइहा पइंत के कंथ ली आय। जाने ले तुंहरेच नी जाने ले तुंहरेच, गांव भर के हक-हुन्नर, मगनी, बरनी, छट्ठी, बरही अऊ कोनो घला चरझनियां बुता बर छड़ीदार राहय। घरो-घर नेवता जोहारे अऊ ओट्टिंट (आघात) ले झारे-झार जेवन सपेटे। अक तहा घला झोंकावय। घर लेगय। ओकरो घर एक झन टूरा पिला होइस। त कोनो-कोनो ओलियांय। ‘कइसे मर्दनिया तै सबके घर नेवता खाथस, तोर टूरा के जस बर कब मांदी बलावत हस?’
त नाऊ मेंछरा के ही-ही करय, नीते एती ओती बहका के बेंझा देवय। बहू कतेक दिन पूरही ओखी-खोखी सब बसनागे। ठोली-बोलीस से धे धर लिस। मने मन गुसियावय अऊ तरमरावत कुछु उदीम भंजावय। बियाकुल मन हा तौंरत राहय- ‘ठोली बोली कइसे रोके जाय? कभू बघिया के कुछू ठोसरा देवय, त ओमन जरे म नून डारे कस काहंय- अरे ठाकुर अइसने ठट्ठा करत रेहेंव’ बिध्रुन होके, उदीम करे के सेती, रद्दा पागीस।
दूसर दिन ले जौनों हर छट्ठी भात बर ठोलियावय, नाऊ काहय-भईगे ये दे ओदे नेवता खवाहूं एक दिन नेवता खवाय के दिन घला जोंग दीस। ओ दिन हर, तीन दिन बांचे राहय। तसने गांव के घरोघर ले रांधे पसाय के कराही, घघरा, हंउका, बटकी, भाड़ा थारी लोटा मांगिस। तुंही मन खाहू दऊ हो, दई मई हो। ताहन लान देहूं। नाऊ घ्ढार नेवता खाय के लालच म जौन मांगिस, धरोहर दीन।
रात होईस ताहन सबे बर्तन भांड़ा ला बोरा म भरके, छकड़ागाडी म लाद के सहर गीस। सब ला बेंचिस अऊ आनी बानी के साग-दार तेल, घी, सक्कर, गुर, बिसा के लानिस। छकड़ा भर खार पीये के जिनिस देख के सबे गांव वाला मन पनछाय धर लिन कब चूरय त कब सपेटन। दिन-रात जेहू-तेहू भिड़ गिन रांधे बर अइरसा, सुंहारी, करी लाड़ू, तसमई, जलेबी, लड्डू, जुर मिल रांधिन। दूसर दिन नेवता झारेझार रिहिस।
नाऊ घर के नेवता माहरे माहर हिोगे। सबे मगन राहंय। अपन थारी लोटा के चेत भुलागे। जुर मिलके पोरसिन अऊ मेंछरा-मेंछरा के मांदी पंगत खईन। दोना-पतरी अऊ ठेंकवा चुकिया म जेवन पानल देवत रांहय। नाऊ हर पंखा धर के ओरी-ओर बइठे पंगत मन ला हावा धूंकत राहय। खवइया मन नाऊ के जस-गुन गावत राहंय। जेन काहय वाह भई मर्र्दनिया, तगड़ा नेवता खवाय जी तेहा नाऊ काहय। तुंहरे अन्न, तुंहरे पुन्न, मोर तो हावा च हावा।
सुनइया मन ओकरो मजा लेंवय नेवता हिकारी निपट गीस। दूसर दिन सब झिन अपन थारी लोटा ला मांगिन त नाऊ कथे। तुंहला तो बता देय हो जी, उही मेर तुंहरे अन्न, तुंहरे पुन्न, मोर तो हावाच हावा (सुन्नेच सुन्न) कहिके सबे झन मूंड ठठाईन उही दिन ले झना बनगिस -तुंहरे अन्न, तुंहरे पुन्न, मोर तो सुन्नेच सुन्न उही दिन ले ये हर हाना बगे।

किसान दीवान 

नर्रा, बागबाहरा-महासमुन्द