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लोक भाखा के सामरथ : छत्तीासगढ़ी म प्रेमचंद के कहिनी

Premchand1हिन्दी कहिनी के दुनियां म प्रेमचंद ल ‘कथा सम्राट’ कहे जाथे, हम सब प्रेमचंद ल ओखर कहिनी ले जानथन। पंच परमेश्विर, बूढ़ी काकी, नमक के दरोगा जइसे कइयोन कहिनी मन हमला जीवन म सत के संस्कादर अउ समाज ल समझे के विवेक देहे हे। हमर अंतस के कोनो कोना म प्रेमचंद के कहिनी के पात्र मन आज तक ले जीयत हे। उंखर सुरता भले धुंधरा गए होही फेर जब भी प्रेमचंद के कहिनी ल दूबारा पढ़थन त उमन प्रेचंद के सबद संग उठ खड़े होथें। विचार म, सोंच म, जे ह समाज अउ जिनगी के अबूझ जनउला ल सहजेच हल कर देथें। दुख अउ चिंता ल हरके जिनगी म हिम्मचत के प्रकास भरथें, अकाशदीप बनके। अइसन ‘अगासदिया प्रेमचंद’ जउन भुसभुस के अंधियारी ल परखर करथे, तेखर बारा कहिनी के छत्ती सगढ़ी अनुवाद ये हप्तां पढ़े ल मिलिस।

Premchand2‘छत्ती सगढ़ी म प्रेमचंद के कहिनी’ के अनुवाद हिन्दीक अउ छत्तीबसगढ़ी के वरिष्ठ साहित्य़कार अउ विदवान डॉ.परदेशीराम वर्मा जी करे हवंय। लोक भाखा छत्तीदसगढ़ी म ये कहिनी मन ल पढ़े ले अइसे लागथे के ये ह, हमरे भाखा के मूल कहिनी आए। उमन अपन अनुवाद ले प्रेमचंद के कहिनी ल छत्तीगसगढ़ी धरती म साकार कर देहे हें। कहिनी म पात्र, सबद, बिम्ब के संगें संग छत्तीधसगढ़ी हाना-भांजरा के सटीक प्रयोग ले अइसे लागथे के, ये कहिनी मन, छत्ती सगढ़ीच के कहिनी आय। ये डॉ.परदेशीराम वर्मा जी के अनुवाद के कमाल आए, तेखरे सेती ‘छत्तीबसगढ़ी म प्रेमचंद के कहिनी’ के जम्मोश कहिनी अपनेच घरती म लिखे गए, हमर आस पास के कहिनी लागत हे। कहिनी मन ला पढ़त खानी अइसे लागथे के हम ये कहिनी के हिस्सा् आन। छत्तीेसगढ़ी म ये कहिनी मन ल पढ़ना एक नवा अनुभव आए। नवा कहिनी के रेलमपेल म अड़बड़ दिन बाद ये तरा के कहिनी पढ़े ल मिलिस। अइसे कस लागत रहिस के, ये कहिनी मन म प्रेमचंद के परभाव आए हे।

Premchand3ये किताब के हिन्दी़ म लिखे आलेख ‘आकाशदीप प्रेमचंद’ ह छत्तीचसगढ़ अउ प्रेमचंद के बीच सामजस्यत ल बहुत परखर ढंग ले फरियार के रखे हे। वर्मा जी के लेखन में छत्तीतसगढ़ कभू अछप नई होवय, वो कोनो ना कोनो रूप म घेरी बेरी परगट होथे इही उंखर माटी के संस्कादर ये। अपन चित परिचित अंदाज में समूचा छत्तीरसगढ़ ल अपन संग लेवत, उमन, ये दू पाना के आलेख म कहिनी संसार म आकाशदीप प्रेमचंद के महत्ताॉ ल सिद्ध कर देथें। अपन हरेक किताब म, कहिनी के दुनियां म अपन प्रेरक, कमलेश्वार अउ असीस देवईया, मयारू दाई, दूनों के प्रेरणा ल डॉ.परदेशीराम वर्मा जी कभू नई भूलय, येहू किताब म दूनों ल कोनो ना कोनो माध्य म ले उमन सोरियाये हें। उंखर ये सोरियई, बिना कहिनी के सबद धरे, रसदा बतवईया अउ जनम देवईया के जीवन म महत्वर के कहिनी तको कहत हे।

हिन्दी अउ छत्तीगसगढ़ी दूनों भाखा म निरंतर सबद सिरजावत, साहित्य के हरेक विधा म पारंगत, डॉ.परदेशीराम वर्मा जी प्रखर साहित्यखकार आंय। हिन्दीा साहित्यन में अंतर्राष्ट्रीरय स्तयर के साहित्यीकार डॉ.परदेशीराम वर्मा के रकम रकम के, सरलग लेखनी ल देख के अचरज होथे। प्रेमचंद के कहिनी के अनुवाद के माध्य.म ले डॉ.वर्मा जी हमर भाखा के सबद सामरथ ल सिद्ध कर दे हवय, ये उंखर कलम के कमाल आए। उमन दायित्वेपूर्ण कार्य करे हवंय, ये ह अनुवाद साहित्ये बर एक धरोहर आए अउ एक सिखौना आए के अनुवाद ये तरा ले होथे।

-संजीव तिवारी संपादक : गुरतुर गोठ डॉट कॉम