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वृत्तांत- (1) इंहे सरग हे : भुवनदास कोशरिया

Guru Ghansidasसंतरू के अंगना म पारा भर के लइका मन सकलाय हे। आज अकती ये। पुतरी, पुतरा के बिहाव करे बर, आमा डारा के छोटे कन ढेखरा ल मढवा बना के आधा लइका मन पुतरा अउ आधा लइका मन पुतरी के सगा सोदर, ढेडहीन, सुवासिन अउ पगरइत, पगरइतिन बन के बिहाव के नेंग जोग करिस। अब्बड उच्छाह रीहिस लइका मन के मन म। संतरु ह घलो लइका म लइका मिल के लाडू रोटी के बेवसथा कर दीच। कलबल कलबल करत लइका मन के आरो ल पा के अपन दुलौरिन बेटी ल खोजत घासी ह संतरू के घर म पहुंच जथे। बेरा ह ठढिया गे हे, खवई पियई ल तियाग के इंहा जीव ल दे हच कहि के पुतरी के दाई बने अपन बेटी सहोदरा ल कहिथे।लइका मन सब लजा जथे। अउ लाडू रोटी ल पा के अपन अपन घर जाय लगथे।
बडेज्जान अंगना, चौफेर परछी ल लइका मन गजबज गजबज करत निकलत राहय। बाजवट म चादर बिछावत संतरू ह घलो गदगदा के हंसत घासी ल बइठाइस। अउ लाडू रोटी देवत कहिथे …..कका !मे ह पुतरी पुतरा के बिहाव करे हंव गा। ये बछर सरग देवता ह अब्बड बरसा कर ही।
हत रे भकला संतरू ! पुतरी पुतरा के बिहाव करे ल कोनो पानी गिरही रे। संतरू के हंसई ल देख के घासी ह कहिथे ….पानी गिराना हे त ये धरती के सेवा अउ सिंगार कर, पेड अउ पौधा लगा, जंगल ल बचा।
एक टुकना धान ल संतरू के हाथ म धरावत नान्हे ह कहिथे……. का तेंह लइका मन संग लगे हच। आज ले हमर किसानी बारी के दिन ह आगे हे। जा तेंह गांव के ठाकुर देंवता, साहडा देंवता, डीह डोंगर म बिजहा चढा के आजा। जब तक मे हं बढबइला ल दाना भूसा खवा पिया के रखत हंव। फेर गरउसा खेत म हूम जग दे के, बिजहा छिच के एक हरियर नांगर जोत के नेंग कर देबे।
तहूं ह भकली हच ओ बहुरिया नान्हे ! पथरा के देवता म धान चढाय ल, बिजहा हे, के अबिजहा हे, तेला का ओ ह बता दिही ओ। घासी ह कहिथे ……तोला पता करे भर हे, त अलग अलग धान के छोटे छोटे मोटरी बना के पानी म भिंजो के रख दे। चार छै दिन म खोल के देख ले। के ठो बीजा जामे हे तेला। संतरू ह नान्हे के बात परत हाहा….हीही…करत लाइका मन के बिदाई करके अपन किसानी के नेंग म लग जथे।
एक अठुरिया पहाय नइ पाय रीहिस पुतरी पुतरा के बिहाव ह, उमड घुमड के बरसा होय लगिस। चारो कुती हुहेल्ला कर दीच। झुक्खा नदियां नरवां भरगे, सांयफो सांयफो करे लग गे। मेचका टर राय लगगे, झिंगुर गीत गाय लगगे ,बतर किरा उडियाय लगगे ।सब किसान के हिरदे जुडियाय लगगे, भुइंया के पियास बुझाय लगगे। अब आगे आगे, बतर बोवई के पाग आगे। सब किसान मन गुठियाय लगगे।
गांव भर धान बोवई म बदक गेहे। गोपाल मरार ह गांव के बडका किसान ये।चार जोडी नागर बइला संग म सउंजिया, बाहरा डोली जात हे। हुम धूप अउ एक बोकरा घलो ले जात हे। मुंधरहा ल घासी ह स्नान ध्यान करे बर तरिया गे हे। लहुटत रस्ता म गोपाल मरार से अभरेट्टा होगे। नांगर बाइला अउ बोकरा ल देखत घासी ह कहिथे…… कस गा गोपाल ! ये नागर बइला चार जोडी बराबर दिखत हे। त ये बोकरा ल काकर संग फांदबे गा। एक्के ठो दिखत हे। गोपाल ह खिसिया के कहिथे ……तोरेच संग फांदहू। देख ददा तेंहा! हांसी, ठठ्ठा मत कर। मोर बाहरा डोली ह बडा जिपरहा हे। बिना जीव देय, बोनी बक्खर नइ कर सकन।
घासी ह कहिथे ….सिरतोन कहिथच गा। जी देयेच ल पडही। गोपाल ह कहिथे …हमर पुरखा ह आवत हे बाबू! अइसने देवत। घासी ह कहिथे …. नइ देबे त का हो जही? देवता धामी के काम ये, लइका के खेल नो हय। गोपाल ह कहिथे …. अते कन हांसत खेलत मोर परवार हे, नांगर बइला, सउंजिया रबिया हे, कांही हो जही त ?
घासी ह घुडक के कहिथे….. कांहिच नइ होवय। ये तोर बोकरा ल छोड येकर बदला म मेहा जा हूं। अउ तोर बोनी बक्खर कर ल के दिखाहूं। घासी के घुडकइ ह गोपाल के छाती म खड बाण कस बेधागे। अउ तरमरा के कहिथे … अतेक खरबइता यच त ले। ये बोकरा ल ढील देथंव अउ तेंह ह अभीच चल, हमर संग, अउ अगवार नांगर ल जोत के बता। अउ कांही होही त तेंह जान। घासी ह बोकरा ल छोडवा के गोपाल के संगेसंग चल देथे, चारो सउंजिया मन नांगर ल बोहे, बइला चरवाहा बइला ल खेदत,  मरारिन समुंद ह, हूम धूप अउ बिजहा ल बोहे चलत हे बाहरा डोली खार…..घासी सतनाम सतनाम जपे बार बार।
बाहरा डोली म पहुंच के सउंजिया मन कहिथे …. मालिक जब तक इंहा हूम धूप अउ जीव के बली नइ देबे तब तक हमन ये नांगर ल नइ चलावन। गोपाल ह झुंझवा जथे। अउ घासी ल कहिथे …… देख! देख घासी अब तेंह एकेच झन ये नागर ल जोतबे। घासी ह नहाय के बाद रखे खांध म कच्चा धोती ल मेढ म झुखा देथे। सादा के धोती कुरता पहिरे हे, मुड म पागा बांध के, पहिली बिजहा ल खेत म छिचथे। तब तक सउंजिया मन सबसे गरियार बइला ल नांगर म फांद के दे देथे।घासी ह नांगर के मुठ ल पकडथे अउ बोलथे ………….चल सदगुरू साहेब जय सतनाम कहिके नांगर चलाय लगथे।
गोपाल मरार कांही अनहोनी घटना होय के डर म कांपत मने मन बोलत राहय ……. जय धरती माता, चांद, सूरूज, जगीन देव, जल देउती दाई, ठाकुर देवता, महाबीर, महा माई, रकत माई, कुलडीहीन,  कालिका, कांही होवय………. ते घासी के ऊपर होवय ….। घासी नांगर जोतत राहय। गरियार बइला घलो घासी के परेम अउ दुलार ल पा के एक मन आगर रेंगत राहय। समुंद अउ गोपाल ह एक भावर नांगर के जोतत ल कांपत दे खत राहय। कांहिच नइ होइच। अइसने देखत देखत एक हरिया, एक डोली,  दू डोली, जोतत सब खेत ल जोत डरिच।
मझनिया होगे राहय। मुंधरहा ल स्नान ध्यान करे बर गे हे। घासी ह घर नइ लहुटे ये। सफुरा ह कलबलावत राहय। का होगे ? अभीच ल, आय नइये तरिया ल। तरमर तरमर करत सफुरा ह तरिया कुती जात हे, जिही ल पाय तिही ल पूछय।कोनो देखे हावव का ….. ? कोनो देखे हावव का ……..? हमर इंहा अमरू के ददा ल।
लीम चउरा म बीडी पियत बइठे पटइल ह कहिथे …… कोन ल पूछत हच बहुरिया। तरिया बिहंचे ल नहाय ल गे रहिस हे। अभी ल नइ लहुटे ये। हमर इंहा के हा।कहिके सफुरा ह कहिथे। सफुरा ल पटइल ह गोपाल संग घासी के होय बाता चिता के बारे बताइच। त सफुरा के मन ह नइ माढिस। धसर धसर गोपाल के बाहरा डोली कुती चले गिस। बेरा ह खिसल गे रहिस।भूख म गोपाल घलो अकुला गे रहिस। सउंजिया ल नांगर ढीले बर कहिथे। घासी ह बइला ल च.अ…..च..अ……च.अ….च..अ.करत परेम से पुचकारत दुलारत हो…रे…हो…रे….हो…रे…. कहिके नांगर ल खडा करथे। सफुरा घलो अरकट्टा आ के पोरिस भर मेढ ल नाहकिच। त देखथे ……दोनो परानी मरार मन घासी के पांव तरि गिरे रहिथे। अउ काहत रहिथे … धन हे तोर महिमा अपरंपार हे घासी। पुरखा ल होत आवत पाप ल हमन ल उबार देयच। सफुरा अउ घासी ह दोनो परानी ल उठावत अउ घेंच म लगावत कहिथे ….. आज ले भय भरम अउ अंधविश्वास म पड के बोकरा के पुजई मत करहू, नरबलि, पशुबलि के नांव म कोनो जीव ल झन मारहू। सबे जीव एके बरोबर आय। जीव हइता पाप आय। गाय अउ भइस ल नांगर झन फांदहू। ठाढे बेरा म नांगर मत जोतहू। हाथ जोडे दूनो परानी मन कहिथे …… आज ले हमन तोरेच रस्ता म रेंगबो। अउ एक ठो हमारो बिनती हे।आज ले हमर घर के सियानी मुख्तियारी तुंहींच ल करे ल पडही।
नौकर चाकर नांगर ढील के बईला ल खेदत सब घर जाय लगिस। घासी अउ गोपाल मरार, सफुरा अउ मरारिन समुंद संगे संगे घर जात हे डर मत हिम्मतकर हमन तो हन कही के धीरज बंधावत हे। अउ घर जावत हे।
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बोनी बक्खर होगे राहय। संझाउती के बेरा ये। पटइल के लीम चाउरा म कच कच ले आदमी मन सकलाय राहय। जगन्नाथ ले आय हे पंडा। दग दग ले घुठवा भर धोती, पूरा बांही बंगाली कुरता पहिरे, मुड म सादा के टोपी, माथा भर तिलक चंदन म पोताय हे। सब मुह फार के सुनत राहय। भगवान जगन्नाथ के किस्सा ल। भगवान के रथ झिके ल पुरखा ह तरथे।अउ लादिक पोटा होवत कहीं जी ह छूटगे त, तुरते सरग ह मिलथे। तीरथ धरम के परचार करत पंडा मन तीर तार इतराभ म घूमगे।
रात ह पंग पंगागे राहय। संतरू के नींद ह उमच जथे। आंखी ल रमजत रटपटा के उठथे। देखथे, सुकवा उगे हे। नान्हे ….ये नान्हे….उठ, उठ..। जलदी तियार हो। गिराउद म सब जगन्नाथपुरी जाय बर चार दिन ल जोरत जंगारत हे। पटइल ह येकर अगवाई करत हे। छै आगर छै कोरी आदमी मन मोटरा चोटरा जोर के लीम चिउरा म सकलइच। हफता भर के रद्दा हे जुडे जुड रेंगबो कहिके मुंधरहा ल निकल जथे। अउ गीत गावत रहिथे………भगवान बोलो ……….जगन्नाथ हे ………..।
तिरीथ जवईया मन के रेम लगे हे। सारंगढ के तरिया पार म ढार परे हे। राजा घलो पुण्य कमाये बर जात्रा भण्डारा खोले हे। दोनो हाथ जोडे दूनो राजा रानी सब अवईया मन ल जेवन पा लौ, जेवन पा लौ, हमरो कुती ल कहिके निवेदन करत हे। रेंगई म सब थके राहय। पेट म अन्न परिस। तरिया पार म परपट ल सोय हे। सबो के नीद ह चर्रस ल परगे। इही ढार म घासी ह घलो सोय हे। “सरग ह कइसना होही, अउ पुरखा ह कइसे तरत होही ” जेला पाये भर सब उम्हियाय हे। इही सोच म रात ह पहागे। कतनो उदिम करिस तभो ल नींद ह नइ परिस। संतरू, गोपाल, पटइल सब उठौ, उठौ रात ह पहागे हे। कहत घासी ह कमंडल पकडे स्नान ध्यान बर निकलगे। घाठ घठौंदा अउ चारो कुती तरिया भर मइनखेच मइनखेच बोज्जाय हे नहाय धोय बर।
उवत सूरूज ल पंडा पुजारी मन स्नान ध्यान करके चोवा चंदन लगावत राहय। शंख फूंक फूंक के तरिया म माडी भर भर पानी म उतर उतर के पसर भर भर पानी देवत राहय। घासी घलो कनिहा भर म उतर के सूरूज ल पानी देवत कहिथे। “ये सूरूज नरायेन, ये सूरूज नरायेन, ये धधकत आगी के गोला म कब तक समाय रहिबे। ये पसर पसर भर पानी म नइ जुडावतच। तंहू ह जगन्नाथ चल अउ भगवान के रथ ल झिक, अपन आत्म ल धधकत आगी से मुक्ती पा अउ सरग म जा।
अतना सुनत पंडा पुजारी मन रख मखा जथे। सब जुरिया के राजा के दरबा म जाथे अउ गुहार लगाथे। कि आपके राज म एक आदमी ह पंडा पुजारी के नकल करिस हे। सुरूज नरायेन ल हूत कराइस हे। जेकर से हमर भगवान जगन्नाथ के अपमान होइस है। राजा महराज येला कडी से कडी सजा देय जाय।
राजा के दरबान घासी ल पकड लेते। अउ राज दरबार म ले चलथेे। तरिया भर के मनखे मन घलो घासी के संगे संग राजा के दरबार म पहुँच गे। तीरथ जवइया सब जत्था के जत्था दरबार कती मुरकगे।
गजमोतिन के माला पहिरे, माथ मुकूट हीरा के, सोन सिहासन म बिराजे राजा सब तीरथ यात्री मन के माथ नवा के परनाम करके कहिथे ….. देखव आज हमर पंडा पुजारी मन के नकल अउ भगवान जगन्नाथ के अपमान करके घासी ह बहुत बडे अपराध करे हे। बतावव येला का सजा देय जाय ? सब यात्री सन्न रहिजथे, मुह ह खुलय नही, भाखा फुटय नहीं …….. ।
तब घासी ह कहिथे …… राजा महराज ! जो सजा देना हे। मोला मंजूर हे लेकिन मोरो एक फरियाद हे। आदेश होही ते मै रखत हंव। राजा बोलथे हां ..हां.. बोल का फरियाद हे तेला बता।
राजा के आदेश पा के घासी ह बोलथे। राजा महराज मोर पहिली फरियाद हे ……..
अगर पंडा के पसर पसर भर पानी ओतना दूर रहइया सूरूज ह पा जथे। तब तो मोर आवाज ह बहुत दूर तक जाथे सूरूज नरायेन जरूर मोर बात ल सुन के आ जाही।
मोर दूसरा फरियाद हे ……
जगन्नाथ के रथ झिके ल हमर पुरखा ह तर जही, त सूरूज के भी लाखो करोडो पुरखा, चंदैनी मन टंगाय हे, ते मन घलो तर जही।
मोर तीसरा फरियाद हे …..
हमन ल अगर सरग मिल जही त बिचारा सूरूज जे ह धधकत हे उहू जुडा के थिर हो जही। नरक के आगी के गोला म जरई से मुक्ती पा जही। अउ सुख के सरग मिल जही।
घासी के उदगार ल सुन के सब जन सइलाब से आवाज आय लगथे ……हां …..हां …. घासी सही कहत हे। हां ……हां….घासी सही बोलत हे। जनमानस के आवाज सुन राजा भी बोले लगथे ….हां..हां…. घासी सही बोलत हे, जनता के आवाज जनार्दन के आवाज ये। लेकिन मोर मन म गुंजत हे कि ये पुरखा के तरई ह काय ये ? सरग ह काय ये ? अउ ये ह कइसे मिलथे ? ये ल तोला बताय ल लगही। नही ते सजा तोला जरूर मिलही।
Bhuvan Das Kosariyaऊंचा पूरा पचहत्था, गोरा नारा, सादा के धोती कुरता गला म पहिरे चंदन के कंठी माला, अउ हाथ कमंडल, मुख म दमकत आभा मंडल, जब दबंग आवाज से बोले लगिस त हजारो हजारो के भीड ह शांत होगे। लोग एकटक देखे लग गे। मिलकी नइ झबकावत ये। खडे हे ते ह खडेच हे। बइठे हे तेह बइठेच हे। अउ सब सुने लगथे…… ।
घासी ह कहिथे ….राजा महराज अउ सब जनता जनार्दन ….
“जियत ल मां बाप के सेवा जतन कर इही ह पुरखा के तराई ये ” मरे के बाद पितर मनई ह मोला बइहा कस लागथे। गंगा स्नान अउ तिरीथ बरत जवई ह ढोंग आय। सबे तिरथ मां बाप के पांव म हे, ये धरती के सेवा अउ सिंगार कर, ठांव ठांव म हे, गांव गांव म हे।
“जिंहा परेम हे, उंहे सरग हे”, परेम के बिना सबे नरक हे। ये सरग बर सतनाम ही एक मारग हे, जेमा चले से सत्य, अहिंसा, दया, करूणा, क्षमा, समता के भाव आथे, मन के भय, भरम, अंविश्वास, रूढिवाद सब मिट जाथे। ये रस्ता म जे ह चलथे सतनामी कहाथे। आऔ सब मिल जुल के ये धरती ल ही सरग बनाबो। जन जन के हिरदे म परेम के बिरवा लगाबो।
घासी बाबा की जय …. घासी बाबा की जय …… जयकारा से राज दरबार गुंजायमान होय लगगे। राजा घलो जय जयकार करे लग गे।
राजा सब जन मानस से कहिथे…  देखव आज हमन ल घासी ह सब चीज बता दीच, पुरखा के तराई ह का ये ? ये सरग ह का ये ? अउ ये ह काइसे मिलथे ? येकर रस्ता बता दीच। आज ले ये हमर सब के गुरू ये। जे ह हम सब ल सत मारग दिखाइस। मै बहुत खुश हंव। आज से मै आदेश देवत हंव कि मोर सारंगढ राज म सब घासी के ही रस्ता म चलही। सब सतनामी बनही। आज ले कोई तिरथ बरत करे के जरूत नइ हे।हम ल ये धरती ल ही सरग बनाना हे, अउ सदमारग म चलना हे। आऔ हम सब ये अपन गुरू बाबा घासी के चरण वंदन करन, जय जय कार करन कहिके…. गुरू घासी के दणवत चरण वंदन करथे। सब जगन्नाथ पुरी के तिरथ यात्रा जवाइया मन गुरू घासी के चरण वंदन करके इंहे से ही सतनाम ..सतनाम उच्चारण करत अपन अपन गांव घर वापस लहुट जथे।

* जयसतनाम *

भुवनदास कोशरिया
भिलाई
9926844437

* रचनाकार परिचय *

नाम – भुवन दास कोशरिया
पिता – स्व० श्री जानू दास कोशरिया
शिक्षा- B Sc ll
व्यवसाय -भिलाई स्टील प्लांट
पद – सीनियर टेक्नीशियन
पता – प्लाट नं° 9/A
कैलाशनगर हाऊसिंगबोर्ड
भिलाई, जिला दुर्ग
ग्राम -खपरी , पोस्ट -बलौदी,
तह पलारी,जिला.बलौदाबाजार
( छत्तीसगढ़ )

2 replies on “वृत्तांत- (1) इंहे सरग हे : भुवनदास कोशरिया”

भुवन – भाई , बहुत सुन्दर लिखे हावस ग । मनखे हर कर्म के अनुसार सुख अऊ दुख ल पाथे । सरग – नरक सब इहे हावय । जिनगी के एही सच्चाई ए ।

भुवन भइया आपके ये परयास हमर छत्तीसगढी साहित्य बर एक धरोहर के रूप मा जाने जाही । गरू घासीदास के जीवन वृत्त ला आप रोच ढंग ले परोसे हंव । आप ला गाडा-गाडा बधाई

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