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वृत्तांत (10) : जिनगी ह पानी के, फोटका ये फोटका

Kosariyaपुनिया दादी अउ सफुरा आज असनान्दे बर पुन्नी घाट गेहे।पुन्नी घाट ल कोन नइ जानही ? राज-राज के मन इंहा सिरपुर मेला देखे बर आथे। महानदी के खड म बने हे ,बडे-बडे मंदिर हे,घंटा घुमर बाजत रइथे, पूजा- पाठ करइया मन के जमघट लगे रहिथे।दरस करइया मन के रेम लगे रहिथे ।मंदिर म हार-फूल,पान-परसाद,मेवा-मिष्ठान अउ पइसा-कउडी,नरियर के बडे-बडे भेला चढे रहिथे । पुन्नी घाट म तो पंडा पुजारी मन कोरी खइरखा ल भरे पडे रहिथे । कोनो करत हे असनान, ध्यान कोनो करत हे , पाठ, पूजा, कोनो करत हे, दान पून, अउ तुरते तरंत हो जा कोनो बइठे हे, पांव परवावत कोनो करत हे,हूम, धूप, आरत त कोनो सुनावत हे ,ज्ञान-बात।
कोनो लगावत हे टीका माथ नदिया के पारे-पार म मंदिर बने हे ,अउ खडे-खड म, नहाय धोय बर, ये बांही से लेके ,ओ बांही तक चर-चर ल पचरीे-घाट बने हे ।बडे मंदिर के आघू म बाबू पिला घाट, मंझोत म पुजारी घाट अउ खालहे म माईलोगिन घाट बने हे।इही मेर, हर बच्छर मेला भराथे ।सब पुन्नी नहाथे,तेकरे सेती येला पुन्नी घाट कहे जाथे ।बर ,पीपर अउ लीम के जंगबड-जंगबड रूख हे । सब असनान करके पानी म मूड सुद्धा बूड- बूड के ,सरधंग ल निकल के , पानी चुचवात ,इही रूख म पानी रूतोवत रहिथे ,मौली सूंत लपेटत रहिथे ,पियंर पियंर चाउर अउ हार-फूल चढावत रहिथे।पंडा-पुजारी मन इंकर माथा म तिलक लगावत रहिथे । मुरवा म येन बद्धो बलिराजा सत्यवादी दानेंद्रो महाबला,तेनात्वां प्रीत बंधनामी रक्षेति माचल: माचल: कहि-कहि के मौली सूंत बांधत रहिथे ।, पान- परसात देवत, दान-पून, चढौत्री बर गरियावत रहिथे।जइसे जइसे पूजा-पाठ कराथे ,सबके अलग-अलग दाम बताथे ।पाच हजार, दस हजार ,एक सौ एक ,जादा नही ते थोरहे , इंक्यावन,इक्कीस या ग्यारह तो चढाय ल पढही ,नही ते झंझेटही,काबर आय हच, कहि के गुडेरही।छोटे बडे सब इंहा अइसने मुडावत रहिथे। इही घाट म, आमा अमरइया हे ,जामुन ,बिही ,छिता फर के बगइचा हे ।फर ,फरहरी खाय बर कोइली ,मैना ,पडकी ,सुआ ,परेवना सब आथे ।किसिम किसिम के सूर ताल म गीद गाथे ,आनी बानी के आवाज सुनाथे ।मनखे कस बोली बतरस घलो निकालथे । कान दे के सुने म ,गजब नीक लागथे ।कोइली के कुहू- कुहू बोली अब्बड सुहाथे।कान म गघरा भर शरबद ल ढरका देहे कस लागथे ।
पुनिया दादी अउ सफुरा नाहवत हे ,धोवत हे ,नतनीन बुढीन दूनो गुठियावत हे।नदिया भर पानी छल-छल ल दिखत हे ।सूरूज उये बर ,अभी ललियाय हे ।त नदिया म पानी ह अइसे लगत हे ,जइसे लाली लुगरा म ढकाय हे ।ऊपर घठौंदा म नाहवत ,नवा दुलहिन के गंवना के लाली लुगरा ह ,बोहाय हे ।बिहनिया, फुरहुर-फुरहूर पुरवइया चलय ,त नदिया के उठत लाहरा,हाथ भर ओरमा के मुंड ढांके ,सधे पांव ,लहसत रेंगत लाली बिजुरिया के उडत अचरा कस लागय ।मछरी उछल-उछल के जब कूदय अउ पानी म छल्ल ……….. छल्ल…….के आवाज आवै ,तो कोनो बेल बेलहा ,गोटी मार के इशारा करत कस लागय। लाहरा के उडत फउव्वारा, ह जब तन ,बदन म छिटकय, त अंग- अंग म सरसरी आ जाय । दिन-दुखिया के मन घलो ,इंहा पल भर म दुख बिसरा के मन भौरा कस गुनगुनाय लग जाय। लइका ,सियान सब नाहवत हे ।कोनो हाथ ,गोड लगरत हे ,कोनो कपडा-लत्ता कांचत हे,कोनो धोवत हे, पानी म खलहारत हे ,झटकारत हे , कोनो झुखोवत हे ।कतनो ,दुरिहा-दूरिहा म जा जा के तउरत हे।कतेक गहिरा हे ,कहिके बूड-बूड के अपन गोड म थाह लेवत हे,हाथ उपर उठा उठा के पानी ल टटोवत हे ।कोनो मेर पोरिस भर ,कोनो मेर टोंटा भर, कोनो मेर थाह घलो नइ मिलत हे ।ये सब ल देख-देख के सफुरा घलो अपन लइकई पन के दिन ल सुरता करत हे अउ अपन दादी संग असनानदत- असनानदत मुहा-चाही गुठियावत हे । सफुरा ह कहिथे … दादी हमन, सब जवंरिहा जवंरिहा इही बगइचा म छुवउल खेलन। आमा,चिरईजाम के फिलिंग फिलिंग म चढ-चढ के कांचा-पाका फर ल टोरन।नदिया खड कुती ओरमे डारा मन म चढ – चढ के सब जझरंग-जझरंग पानी म कुदन।अउ चित्ता बोहावत- बोहावत खालहे घडौंधा म उतरन। अउ पानी म तउर-तउर के एक दूसर ल छुवन।
इही बीच ,बचाव-बचाव कही के कोनो चिहोर पारत हे।आघू घठौंदा ल एक लइका, नदिया के धारे धार म बोहावत हे । धंय बूडत हे , धंय उफलत हे,उबूक-चुबूक होवत हे , बस ! सब, बचाव- बचाव चिल्लावत हे ।जा के निकालन कहिके ,ककरो दम नइ होवत हे। लइका बोहावत हे -बोहावत हे ,पुजारी घाट आगे।सब पुजारी ,पानी तीर घाट म आ के,बेर उत्ती नदिया पूजा करत हे । बचाव-बचाव के आवाज ल घलो अनसुना करत हे ।
सफुरा के हिरदे म ,ये आवाज ह रही नइ गिस। लुगरा ल कछोरा भीरथे अउ कस के बांधथे, चभरंग ल कूद के एक बुडाना तउरथे ,त ओ लईकेच मेर अभरथे ।लइका के चुंदी ल ,एक हाथ म पकड के अउ एक हाथ म तउरत, खींचत घठौंदा मेर लाथे। त देखथे, बिरजू पुजारी के बेटा, ये तो सिचरण ये, कान म बात परन नइ पाय, ये सब दउड के आगे।पुजारी के बेटा ये, पुजारी के बेटा ये ,कहि कहि के घाट अउ पारा ,मोहल्ला तक बात फैल गेे । दूझन ,चिंगी चांगा उठा के ऊपर मंदिर म,ला के सोवाथे।सिचरण बिसुद्ध पडे हे ,कोनो हाथ ल हिलावत हे , कोनो गोड ल ,कोनो गाल ल थपकियावत हे ,कोनो चिमोटत हे, अंगरी खोटत हे । चिट-पोट नइ करत ये ,सब हिलाथे-डोलाथे ,ओ तो बद परे हे।का करन ? का नइ करन ? ककरो समझ नइ आवाते ।बडे-बडे पंडा पुजारी अउ इंहा बने हे ज्ञानी ,ध्यानी ककरो मगज ह नइ पूरत ये। कोनो काहत हे , भगवान रिसाय हे। कोनो काहत हे , नदिया खिसियाय हे। कोनो काहत हे , जरूर इंहा पाप ह समाय हे ।कांही न कांही अधरम काम होय हे ।तेकरे सती एक बाम्भण के लइका ऊपर संकट आय हे ।बिरजू पुजारी अउ पुजारिन अपन बेटा ल मूर्छा परे देख के ,छाती पीट-पीट के रोवत हे । मोर….. शिचरण बेटा….. ……मोला छोड के कइसे चल देयच रे ………. । बने नहाय बर आय रहे बेटा …….आवत हंव कहिके काबर मोला ठग देयच…….. रे……।मोर बाढे पोढे राजा बेटा ……..काबर गुठियावत नइयच …………रे ……..।रोटी दे…. कहिके काबर काहत नइयच रे ।यें ….हें….हें……हें …….।कथ कथ के पुजरनीन रोवत हे।बिरझू पुजारी घलो घोघ पार पार के रोवत हे ,मोर छोटकन दुलरवा बेटा रे…।अभी अभी जनेऊ संस्कार कराये रहेंव बेटा …..। मंदिर के पूजा करही काहंव बेटा, तेंह मोला छोड के चल देयच रे……. ।मै का करंव बेटा ……..।पुजारी घलो पढ पढ के रोवत हे ।मने मन म कंदरत हे।
सफुरा ह देखथे…. शिचरण ओइसनेच परे हे।महतारी , बाप रोवत धोवत हे।सब जुरियाय हे , ककरो आंसू धर-धर चुहत हे ,कोनो सुस्कत हे ,।मत रो ,पुजारी मत रो कहिके, कतको धीरज बंधवत हे । सब पंडा,पुजारी मन पूजा , पाठ ,यज्ञ ,हवन के तियारी करत हे । सब गांव भर के ल,नदिया आरती बर बुलावा भेजे हे।सबआरती धर-धर के पुन्नी घाट म,सकला गेहे । सफुरा ह सोचथे…. अइसना म ,तो एकर जाने ह ,चले जाही ।घुंचौ घुचौं ….मै जात हंव, हमर यहां के अमरू के ददा ल बुला के लाहू , कहिके कपडा-लत्ता चुंदी-मुडी फिले के फिले हे, झरफर- झरफर ,दउडत-दउडत घर जाथे । घासी ह ,अपन मयारू हीरा मोती बइला ल दाना-पानी खिलावत हे। हिरण के भी सेवा-जतन करत हे । हफरत-दउडत आवत सफुरा ल, देख के घासी ह कहिथे ….. का होगे ओ सफुरा ? का होगे ?अतेक काबर हफरत आवत हच ओ ?सफुरा के हफरई म ,बक्का घलो नइ फूटत ये ……नदिया …..ओ नदिया ….म , मै हा ,…एक झन बूढे लइका ल….. निकाले हंव ।घासी कहिथे ……आंय ? पानी म बूड गे रहिस हे ।सफुरा ह कहिथे …. हां , चिट-पोट नइ करत ये ,चित्त परे हे ।अतना सुनत घासी चल- चल,चल-चल, मै जात हंव कहिके… जइसने के ओइसने छोड देथे ।घासी के संगे संग सफुरा उही पांव लहुट जथे ।त देखथे…… उंहा पुन्नी घाट म अब्बड भीड लगे हे ।ओकर महतारी, बाप ,पूरा परवार रोवत हे ।देखइया मन के जीव ह ,घलो कलपत हे । कतनो पथरा के थाती होही ओकरो आंसू बोहावत हे अउ फफकत हे। मंदिर म ,पुजारी मन यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ करत हे ।जोर जोर से मंत्र पढत हे यज्ञ मे स्वा: ….स्वा:…. कहि के हवन करत हे ।नदिया पूजा म गांव भर के आदमी सकलाय हे । सबके हाथ म ,थारी नरियर पान सुपारी रख के दिया जलाय हे । पुजारी मन आरती गावत हे ,सब आरती घुमावत हे ।दूध ,दही ,घी अउ हार, फल, फूल, सोना ,चांदी के गहना ल घलो महानदी मइया के जलदेउती दाई म ,समर्पण करके बोहवावत हे ।
घासी अउ सफुरा ,थोरकुन घुंचौ घंचौ कहिके भीड के भीतरी म चल देथे अउ सब ल चुपव-चुपव ,मत रोवव, कांही नइ होवय, ये ,बने हो जही ,कहि के चुप कराथे ,धीरज बंधाते ।घासी अउ सफुरा मिल के सिचरण ल उबडी कर देथे ,मुंह कुती उतारु अउ गोड कुती चढाउ रख के पीठ ल मसक थे ।सिचरण के नाक, मुंह से घल-घल ,घल-घल पानी निकलत हे ।दू ,चार ,बार अइसने मसक-मसक के पेट म जतना पानी समाय रहिस ,सबे ल निकाल लेथे ।अब सिचरण ल, बराबर जगा म सोवा थे , चित्ता कर देथे अउ छाती ल थपथपाथे , थोरकुन मसकथे ,छोडथे ,मसकथे ,छोडथे, चार ,छै ,बार अइसने मसके छोडे से सिचरण के सांस चलना शुरू हो जथे । देखते ही देखते सिचरण के होंस आ जथे , आंखी खोल लेथे ,हाथ ,गोड हिलाय , डुलाय लग जथे ।सिचरण के दाई , चददा फेर अपन छाती म सपटार- सपटार के रोवत हे…….तेंह कइसे होगे रहे बेटा….,.।काबर चिटपोट नइ करत रहे …..। मोर राजा बेटा रे…. ……।अब खुशी के आंसु बोहावत हे । अउ दूनो, सिचरण के दाई-ददा, सफुरा अउ घासी के पांव तरी डंडाशरण गिर जथे अउ कहिथे ……मोर बेटा ला नवा जीवन देहच । तें ह हमर लिए संउहत भगवान अच । तेंह नइ रहिते ,त मोर बेटा ल ,कोनो नइ बचा सकतिच ।मोर बेटा के जीव ह ,निकल गे रहिस। ओ ला लहुटा के ला देयव, सच म ये रूप धर के भगवानेच ह आ गे हव । आवव सब मिल के आरती करव कहि के बिरझू ह सब ल बुला लेथे अउ घासी के ही पूजा, पाठ, आरती करे लग जथे । घासी अइसना मत करव….अइसना मत करव कहि के बहुत बरजथे, फेर ओ मन, नइ मानय, आरती करे लग जथे ।
सिचरण ल होस आगे , सुनते साट ,सब पंडा पुजारी दोर दीर ल इही मेर आ जथे ।अउ देखथे…… बिरजू महराज अउ सब काकर पूजा-पाठ, आरती करत हे ।सब पंडा-पुजारी मन “ये सब का होवत हे ,बंद करौ “कहि के जोर से ललकारथे तभो ल बंद नइ करय ।तब पंडा पुजारी मन बोलथे…. देख बिरझू महराज, हमन सब मंदिर म अउ जलदेउती दाई के अतेक पूजा, पाठ, यज्ञ ,हवन ,आरती करे हन ,दूध ,दही, घी ,फल ,फलहरी ,सोना ,चांदी के गहना घलो ये नदिया मइया ल समर्पित करे हन ,जेकर से खुश हो के तोर लइका ल नवा जीवन दीसे ।अउ तेंह ये कोन मइनखे के आरती करत हस।घोर कलजुग आगे, घोर कलजुग । महानदी मइया की जय, महानदी मइया की जय। जय ,जय जयकार करे लगथे ।
बिरझू पुजारी के छाती म इंकर बात ह अगिन बाण कस लग जथे ,आठो अंग म भर भरी चढ जथे। अपन आंखी ,कान ल पोछत खडा होथे अउ मुंह ल आगी उछरत कहिथे ……. तुंहर, पूजा पाठ से मोर बेटा ह ठीक होय हे ,? तुंहर आरती घुमाय से जिए हे ? दूध, दही ,घी ,ल ये पानी म रूतोय से मोर बेटा बने होय हे ? फल ,फूल ,हार अउ सोना ,चांदी बोहवाय से मोर बेटा ठीक होय हे ? हूम ,धूप ,यज्ञ ,हवन करके धूंगिया उडाय से मोर लइका बने होय हे ? नही …।मोर बेटा तो ठीक, ये तुंहर सब के आघु म ,खडे संउहत, जियत भगवान के परसादे होय हे।अगर तुंहरे आसरा म रहितेंव त मोर बेटा ल आज नइ पातेंव ।येकर जीव तो उडा गे रहिस । मोर बेटा ल बचाय बर सरग से ही मनखे रूप म उतरगे।अउ मोर बेटा के जीव ल लहुटा के ला दीस ।मरे आदमी ल जिया दीस । चमत्कार कर दीस ।मोर बेटा ल नवा जीवन दे दीस ।सब जय कारा लगाय लगथे …. बाबा घासीदास की जय , बाबा घासीदास की जय , बाबा घासी दास की जय घासी सब ल शांत करावत कहिथे …….ये लइका ल ,जो नवा जीवन दान मिले हे ,ओ ,ह ,न महानदी मइया के पूजा-पाठ से मिले हे, न आरती ,हूम ,धूप से ,न दूध ,दही, चढाए से मिले हे ,न फल ,फूल ,हार, पहनाए से ,न सोना ,चांदी के गहना अर्पित करे से ,न सरग से कोनो भगवान उतर के ठीक करे ये ,न दुनिया म ऐसे कोई चमत्कार हे ,जे ह मरे हुए प्राणी ल जिंदा कर सकय। बाम्भण भले ,दुनिया ल पथरा के मूरत म प्राण प्रातिष्ठा के नाव म, ढोंग पाखंड करथे ,अगर अइसना कोई मंत्रतंत्र होतिच, त बाम्भण मन अपन दाई ददा ल, मरतिच ,त प्राण प्रतिष्ठा करके फेर जिंदा कर लेतिच । ये लइका के जान तो ,एक शरीर के ज्ञान के बिधि से बचे हे । अगर थोरको बिलम हो जतिच,अउ मै जो ,ओ पेट म समाय पानी ल ,नइ निकाल पाय रहितेंव ,त तुमन लाख उदीम करतेव ,पूजा, पाठ ,यज्ञ, हवन दान, पुन ,चढावा देतेव ,कोनो काम नइ आतिच । अउ ये लइका के जान ह नइ बाचतिच ।हमर सब के जिंनगी ह पानी के फोटका,ये फोटका।हवा हे ,त फोटका फूले हे ,फोटका फूटगे ,हवा निकलगे ।हवा के ही खेला हे ।ये जिंनगी म ,हवा के ही खेला हे । पूजा ,पाठ ,ढोग ,पाखंड म मत बूडे राहव ।ज्ञान सीखव, ज्ञान।ज्ञान के बिना सब कुछ अंधियार हे । जिंनगी ल सुख से जिए बर ,सब जिनीस के जनकार होवव , जनकार …….।हर दुख ,सुख से ,तभे रही पाहु, खबरदार ……..! खबरदार ! सब जयकारा लगाय लग जाथे………
बाबा घासी दास की जय बाबा घासी दास की जय !

जय सतनाम!

भुवनदास कोशरिया
भिलाईनगर
9479059126

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