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वृत्तांत- (2) पंग पंगावत हे रथिया : भुवनदास कोशरिया

Bhuvan Das Kosariyaपंग पंगावत हे, रथिया के चंउथा पहर ह पहावत हे ।सुकवा उगे हे, खालहे खलस गे हे । चिर ई चिरगुन मन चिव चांव ,चिंव चांव करत हे। कुकरा ह बास डरे हे। ये संत महुरत के बेरा ये । ये बेरा म योगी जोगी ,ज्ञानी ध्यानी ,विज्ञानी सियानी अऊ जाग जथे कर इया खेती किसानी । जे ह ये बेरा म, जाग के अपन कछु पाये के उदिम करथे ओ ह अपन मंतब म जरूर पूरा होथे ।
घासी म ज्ञानी हे , ध्यानी हे , मानवता के ऊपर होवत अनियाव ,अत्याचार अऊ अंध विश्वास दूर करइया सियानी हे , धरती म किसिम किसिम के उपज करइया ,ये फसल पैदावर के चिभिक जनइया किसानी हे ।इहू ह जाग गे हे , ध्यान लगाय हे ,गुनत हे ,ब इठे हे , अपन धुन म “कि क इसे मनखे मनखे के भेद मिटावन कि मया पिरीत के गठरी बंध जाही ।कइसे धरती म फसल उपजावन कि अन्न धन्न कोठी भर जाही ” ।
थोरकुन बाद रेंहची रेंहची के शोर घलो आय लागिस ।अपन धुन म बिधुन ,घासी के धुन ह, टूट जथे अऊ देखथे,ये शोर ह गोपाल बारी ले आवत हे ,कुंआ बारी म टेडा लगे हे , टेड टेड के भाटा मिर्ची म पानी पलोवत हे ।अब येकर ध्यान ह , भाटा अऊ मिर्ची म लग जथे ।अउ सोचथे …अइसे का चिभिक करे जाय कि एक्के ठो पेड म भाटा अऊ मिर्ची दोनो फर जाय ।
बुढवा मरार ह अथक होगे हे ।अपन रउती के राहत ले सब चाक चौबंद राखे रहिस हे । एक ठो तिनका घलो न इ खरके रहिस हे । बुढवा मरार के एक झन नोहर छोहर बेटा ये। आडी के काडी न इ करवाय रहिस हे ।जब्बर हे , किसानी ह गोपाल तो जानै नही । किसानी के राग पाग ल तभे तो घासी के पांव तरि गिरे रहिस हे ,ये बछर घर के सियानी मुखत्यारी करे बर ।
घासी के रोज के काम राहय एक नजर गोपाल घर के बारी बखरी,खेती खार ,गाय गरूआ ,बैला भैसा सब के जानकारी ले लै ,नौकर चाकर ल हिले के हिले लगा लै , तब अपन घर के काम काज म लगय । एकरो तो लम्बा चौडा कारो बार हे, खुद एक जमीदार हे।गाय, भैस , नस्ल सुधार अऊ घोडा पाले के एक अच्छा घोडसार हे ।पशुधन इलाज के एक जाने माने बैद्यराज है ।
आज गोपाल बारी म बाजा बाजत हे ।गीत गावत हे , जय कारा होवत हे ।घासी ह अचंभित होगे , आजेच तो मै ह ,संतरू अउ नानहे ल भाटा बारी म काम म भेजे रेहेंव ।फेर , का होगे ,ते म बाजा बाजत हे । रटपटा के उठिस अउ गोपाल बारी द उडत जाय लगिस ।देखथे ,उहां तो जमघट लगे हे । लइका सियान सब बाजा गाजा म गावत बजावत हे । नरियर फाटा , हूम धूप चढावत हे।
घुंचौ घुंचौ कहिके सब ल तिरियावत भीड के अंदर जाके घासी ह जोर से डपट के बोलथे …..अरे संतरू ! का होगे रे । का करत हव सब ।कोनो तो मोला बताव ।गाना बजना बंद हो जथे ।घासी ह देखथे ..सब थारी म नरियर ,पान सुपारी ले के खडे हे ।नान्हे के बिहाव होय बारा बछर होगे हे । सबके कोरा म ,नान नान नोनी बाबू खेलत हे । मोरो सुन्ना अंगना म लइका के किलकारी आ जाही , कहिके भाटा के संग म फरे मिर्ची ल देख के अउ सब अपन अपन दुख दरद अउ मन्नत पूरा होय के आस म इंहा आय हे ।
संतरू अउ नान्हे दूनो परानी आरती के थारी ल पकडे हे ।कस रे संतरू !तुमन सब ये का करत हव रे । मै तो तुमन ल ये भाटा बारी म निंदाई कोडाई बर भेजे रेहेंव रे । संतरू ह बोलथे … हाँ ! कका हमन निंदत निंदत देखेन कि ये भाटा के सातेच पेड म भाटा अउ मिर्ची दोनो फर लगे हे ।भगवान ह संउहत इंहे उतर गेहे । अइसना अचरूत कहिच न इ देखे रेहेन ।हमरो कोरा म आमा अमली के फर मिल जही । कहिके सब गांव के मन ल बुला के भाव भजन करत हन । तहूँ ह देख ले कका ! ये सातेच पेड म कइसे भाटा मिरचा फरे हे तेला ।
गोपाल मरार अउ मरारिन आरती के थारी ल पकडे घासी के पास आ जथे । अउ आरती उतार के पांव तरि गिर के कहिथे ।जब ले तोला हमर घर के सि यानी मुखत्यारी सौपे हन तब ल हमर घर म कुछ न कुछ अचरूत घटना होवत हे ,ये सब तोरेच कृपा आय । अब सब के सब घासी के ही आरती करे लगे ।बाजा बजे लगे गीत गाए लगे ।घासी बाबा की जय ,घासी बाबा की जय ……जय जयकारा होय लगिस ।
साहेब सतनाम ,साहेब सतनाम अभिवादन के बाद घासी बोले लगिस ……कइसे रे संतरू !ये भाटा के पेड ह तोला बच्चा दे दीही रे ।भीड तरफ देखत बोलथे …..तुहू मन बताव ये जड पौधा ह तुंहर मन के दुख दरद ल दूर कर दीही , तुंहर मन्नत ल पूरा कर दी ही ।कोई बोल न्इ सकत ये ,एको झन हिल डोल न्इ सकत ये । जे मन संउहत भगवान समझ के पूजा पाठ करत रहिस ,घासी के गोठ ल सुन के सब ठाढहे सुखा गे हे ।
घासी ह कहिथे ….ये दुनिया म दो चीज हे , एक जड दूसरा चेतन ।चेतन याने जो चेत सके , देख ,सुन ,सूंघ चख अउ छू के जान सके ।जेकर पास पांच ज्ञान इंद्रीय हे उही ह चेतन आय अउ जेकर पास न्इये ओ ह जड आय ।अउ ज्ञान के बिना सबे जड आय ।
ये भाटा के पौधा म मिरची के फर लगना कोनो भगवान के संउहत उतरना नोहय । ये तो एक प्रकार के ज्ञान आय ।पेड पौधा क्इसे जामथे ,बाढथे ,एक दूसर म संघरथे ,फूलथे अउ फलथे । ये सब जानना एक ज्ञान ये ।जेला वनस्पति ज्ञान कहे जाथे ।मै खुद किसिम किसिम के पौधा लगाय के चिभिक करे हंव । जेमा भाटा के पेड म मिरची संघार के एक्के ठो पेड म दूनो फर ल फरोय के उदिम करे हंव ।देक्खे लग्गे न ?
जिंहा जिंहा अज्ञान हे ,
उंहे संउहत ब्इ ठे भगवान हे
जिंहा जिंहा सदज्ञान हे,
सब दुख दरद के निदान हे ।
ये दुनिया म जो चार सत हे ,उही ह अखंड सत हे ।पहला जनम ,दूसरा मरण ,तीसरा ये दोनो जनम मरण के बीच म जो समय होथे ,जेला हमन जीथन वो हे जीवन । अउ च्उथा हे ये जीवन ल सुखमय जीये के जो ज्ञान हे ,जो रस्ता हे ,जो नाम हे , उही ह सतनाम हे ।जनम अउ मरण तो हमर बस म नइ हे ,जीना तो हमर बस म हे ।अनियाव अत्याचार ,ढोंग ,ढकोसला अउ अंधविश्वास से दूर प्रेम ,दया ,करूणा अउ क्षमा से जुड ,जिनगी जिये के रस्ता ,जेला पाए बर ,जेला जाने बर ,जेकर ज्योति जलाए बर हमन गुरू के शरण म जाथन । जेकर बिना सारा जिनगी घनघोर कुलूप अंधियार हो जथे ,मुह जोरे नइ दिखय । सतगुरू के ज्ञान ओ दीया के बराबर हे जे ह बरते ही उजियारा कर देथे ।कोई भेद न्इ करय ,न जात के ,न पात के ,न ऊपर, के न नीचे के सबले बराबर अंजोर करथे ।
गुरू बाबा की जय , गुरू बाबा की जय
जय कारा लगाय लगथे ।
इही बीच गोपाल मरार ह जन मानस ल कहिथे ….आज ले ये हमर गुरू ये , येकर बताए ज्ञान म,रस्ता म ,सबला चलना हे ।जिन्दगी ल सुखमय अउ गांव ल सरग बनाना हे । हमर सबके जिन्दगी म अज्ञान अउ अंधविश्वास के अंधियारी छाये रीहिस हे ।अब हमर बीच ज्ञान के सुरूज ह आ चुके हे । अब येकर प्रकाश से हमरो अंधियारी जिन्दगी म बिहनिया होय बर पंग पंगावत हे,रथिया पहावत हे , अब हमरो जिनगी उजियार होय बर आवत हे ।
” जय सतनाम “

भुवनदास कोशरिया
9926844437