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कविता

वेलनटाइन अकारथ मनावत हव

उम्मर असन उम्मर नही अउ “लब” फरमावत हव
बगइचा कोनटा म मुड़ी जोरे आशिकी गोठियावत हव
अरे कुछ तो फिकर करव दाई- ददा के मरजाद के
काबर बिदेशी बेलेंटाइन ला अकारथ मनावत हव

चार दिन पाछु ले मौसम बनावत हव
कोनो लाली गुलाब,कोनो आनी-बानी गिफ्ट बिसावत हव
मोबाइल-व्हाट्सप के जमाना में छिन नइ लगत हे
कोन मेर मिलना हे ते ठउर ल बतावत हव

मुहु-कान बांधे टुरा-टुरी लॉन्ग डराइव म जावत हव
दाई-ददा ल फोन करके एस्टरा किलास बतावत हव
पंदरहि होगे कापी-किताब ल अलमारी म धराय
का बिलवा ,का गोरिया जम्मो मोहब्बत ल इझरावत हव

छत्तीसगड़ही संसकिरति के मरम ल जानव
बिदेशी काजर म छत्तीसगढ़िया हो झन कजरावव
नवा भारत के तुही मनहा तो ताकत आवव
संस्कारी हीरा बनव , जुच्छा कांच बनके झन चिकमिकावव|

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कवि सुनिल शर्मा
थान खमरिया,जिला-बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
9755554470