Categories
व्यंग्य

व्‍यंग्‍य : चुनाव के बेरा आवत हे

अवईया समे मा चुनाव होवईया हे, त राजनीतिक दाँव-पेंच अउ चुनाव के जम्मों डहर गोठ-बात अभी ले घुसमुस-घुसमुस चालू होगे हे। अउ होही काबर नही, हर बखत चुनाव हा परे-डरे मनखे ला हीरो बना देथे अउ जबर साख-धाख वाला मनखे ला भुइयाँ मा पटक देखे। फेर कतको नेता हा बर रुख सरीख अपन जर ला लमा के कई पीढ़ी ले एके जगा ठाड़े हे। अउ कतको छुटभईया नेता मन पेपर मा फोटू छपवा-छपवा के बड़े नेता बने के उदीम करथे। फेर चुनाव हा लोकतंत्र के अइसन तिहार आय जेमा लोगन ला जम्मों नेता मन के हार अउ जीत तय करे अधिकार मिले रथे। ये हार-जीत ले नेता मन के जिनगी घलो बदल जथे, कोनो लबरा अपराधी किसम के मनखे चुनाव मा जीत जथे त ओखर जम्मों करनी ढँका जथे। त कतको भला मनखे राजनीति मा आके बिगड़ जथे, या ओमन हा अपन असली रंग चुनाव जीत के बादे मा देखावत होही। अब कान ला कोनो डाहर ले धर, धराही तो कानेच हा। केहे के मतलब नेता मन के कोनो बूता ले आम जनता के भला होगे अइसन बहुते कम देखे बर मिलथे, अउ देखे बर मिलही तहू हा सुवारथ के सेतन आय। हाँ पाँच बछर मा सारा संगवारी अउ परवार वाला मन भले पोट्ठा जथे।
चुनाव मा अपन रुपिया-पईसा मिहनत अउ सरबस ला दाँव में लगा के नेता मन अपन भाग ला जागही के बुड़ही कइके अगोरा मा डर्रावत रइथे। ते पाय के जम्मों दल अउ नेता मन, लोगन ला रिझाय के उदीम घलो करथे। कोनो हा जगा-जगा जाके नइते पोंगा बाँध के अभीच ले चिचयावत हे, त कोनो हा लोगन तिर मा जाके लुड़हारत हवय। अब जनता के बीच मा घलो गोठ बात होना अचरज के बात नो हे।
अइसने एक दिन बड़ झन मंधवा मन पी-खा के चाउँरा मा बइठ के गपियावत राहय, कइसे रे ये बछर ते कोन ला वोट देबे, त दूसर मंदू हा बड़ जानकार बनके कहिस, कोनो नेता जीते सबेच हा जीते के बाद अपने भला करथे, जनता बर तो कोनो सोचें तक नही, तेखर ले जेहा मोला ज्यादा पियाही अउ पईसा दिही तिही ला वोट दूंहूँ। त अउ बइठे रीहिन ते मन किहिन, जब तोला कोनो मन नइ आवत हे त तेहा नोटा ला काबर नइ चपकस। त वोहा फेर कथे, नोटा मा चपके ले का होही, फेर चुनाव होही, ताहन फेर कोनो ना कोनो नेता चुनाव लड़े बर आही, तेखर ले अपन भला ला देखबो जी। त जम्मों मनखे फेर दूसर ला पूछिन ते कोन ला वोट देबे जी। त येहा तो पहिली वाला ले ज्यादा समझदार निकलिस येहा कथे, अरे चुनाव के बेर एक घँव पियाही त कतका ल पी डरबे, ताहन पाँच बछर ले तो अपनेच पईसा मा पीये बर परही। तेखर ले मेहा अइसन नेता ला वोट दूहूँ, जेहा दारू के किमत ला कम करवा सके, अउ पाँच बछर ले ओखर नाव लेके दारू के किमत मा छूट (डिस्कांउट) मिल सके। त तिसर मनखे तुरते चिचयाथे, अउ कुकरा बोकरा कहाँ ले आही रे.., त अउ बइठे मनखे मन कथे, अभी चुनाव बर कोनो नेता हा कुकरा बोकरा दिही तेला खावन नही बलुक पोसे रइबो अउ ओमन पीला फोरही तेला पाँच बछर ले खावत रहिबो।
अब मंधवा मन के गोठ-बात हा बढ़ जथे, अउ झगरा होय ला धरथे, त ओतकी बेरा एक झन सियान ओ करा ले नाहकत रथे, वोहा ओमन ला देख के पूछथे का होगे तुमन झगरा काबर होवत हो, त वोमन सब गोठ बात ल बताथे अउ वो सियान ला पुछथे कइसे गा ते कोन नेता ला वोट देबे। सियान संसो करे सरीख लंबा साँस लेथे अउ कथे, जेन नेता हा देस-समाज के भला करही, जात-पात के नाव ले लड़ाये के बूता नइ करही, जनता ल बरोबर आँखी मा देखही, बिकास के काज ला बिना भ्रष्टाचार के करही, जम्मों जीव के मान-सम्मान अउ जतन करही, जुआँ-सट्टा अउ तस्करी ला रोकही, संस्कृति परंपरा अउ धरोहर मन ला सहेजही, लूट खसोट अउ लालच ले दूरिहा रही, जेखर आदत बेवहार बने रही अउ अपराध ले दूरिहा रही, तइसनेच नेता ल मेहा अपन वोट दूहूं। त जम्मों झन खलखला के हाँस डरिन, अउ कथे कइसे गा सियान तेहा जागत मा सपना देखथस का जी, नेता मन तो जम्मों झन, ते काहत हस तइसनेच गोठियाथे, फेर कभू कोनो नेता ला सिरतोन मा अइसन करत देखे हस का। अइसन सपना तो देस के जम्मों मनखे देखथे अउ सही में नेता मन अइसन हो जतिस ता देस मा अउ फिकरे का बात के रहितिस।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)