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व्यंग्य

व्‍यंग्‍य : नावा खोज






डोकरी दई के छोटे बेटा ला परदेस मे रहत बड़ दिन होगे। चिट्ठी पतरी कमतियागे। बेटा ल बलाये खातिर, खाये, पहिरे अऊ रेहे के निये कही के सोरियावय, डोकरी दई। को जनी काये मजबूरी म फंसे रहय, बेटा नी आवय। तभे मोबाइल जुग आगे, बेटा ओकर बर, मोबाइल पठो दीस। दई पूछीस ये काबर? बेटा बतइस ‌‌- तोर खाये पिये अऊ रेहे के, सबो समसिया येकरे आगू म गोहनाये कर, समाधान हो जही। दई समझीस के अतेक काम के आय, त येला जतन के राखना चाही। फुला म मढ़हाहूं त, नाती टूरा मन दिन भर बटन ला चपकही, रंधनी खोली म राखहूं, त बड़की मजा मारही। येती ओती मढ़हा पारहूं अऊ कनहो लेगगे या हाथ ले कनहो नंगालीन तब …… मोला खाये बर कोन दिही, मोर बर कपड़ा कोन बिसाही, मोर घर कइसे बनही। मोबाइल ल पेट म, किड़किड़ ले फरिया बांध के लपेट डरीस।
पेट म मोबाइल जइसे छुवाइस, डोकरी दई के भूख पियास अपने अपन हरागे। एती ले ओती मटमटावत किंजरत रहय। अपने अपन कभू गाना गाये कस करतीस, कभू नाचे कस। माटी के कुरिया ल टोर के बिलडिंग के सपना सनजोये लगीस। निरमामूल अन्न तियाग दीस, फेर न बिमार परीस, न कनहो दवई दारू इलाज पानी के आवसकता। नाती मन सोंचे – डोकरी दई ला का होगे? काकरो संग बने गोठियावव निही, दिन भर अपन पेट मा काला काला टमरत, येती वोती चपकत रिथे, कहीं खाये न पिये, कहूं बिमारी तो नी सचरगे। गांव के बईगा करा देखना सुनना होगे। बईगा किथे – मसान पदोवत हे, मोर तीर एकर काट निये। बिगियान कहां मानही गा, भूत परेत टोनही टमानही मरी मसान ला। डाकटर मन करा जांच करइस, कहींच बिमारी नी निकलीस। डाकटर मन, पेट ला जइसे छुवय, दई नाचे कूदे कस करय, अपने अपन हांसय, काकरो संग गोठियाय कस करय, कहीं पढ़हे के परयास करय। एकसरा सोनोगराफी म घला कहींच नी पइन।
डाकटर अऊ बिग्यानिक मन बर खोज के बिसे बनगे। बहुतेच तलासीन। ओकर पेट ला अपरेसन करके चिर डरीन। कहींच नी अमरईस। सरकार के सल्लाहकार मन तक बात पहुंचगे। एक कोती सरकार के मुखिया, परदेस के जनता के, रोटी कपड़ा अऊ मकान के समसिया के समाधान करत करत दुबरागे रहय। दूसर कोती ओकर सल्लाहकार मन, मोबाइल ले भूख मेटाये के नावा खोज म लागगे।
सरकार के सल्लाहकार बिगियानिक मन, कलेचुप डोकरी दई करा पहुंच, पूछे लगीन। दई बतइस – जबले पेट म मोबाइल बानधे हंव, तबले मोर पेट म भूख के रिंगटोन बंद होगे। पेट ला चपकथंव, तब रंग रंग के गाना सुरू हो जथे, तहन कपड़ा लत्ता के खियाल नी रहय, बिधुन होके नाचथंव। इही म, कभू कभू देस के सबले बड़े मनखे के मन के बात सुनथंव, कभू परदेस के मुखिया के गोठ, इंकर मनके बात मोला चुटकीला सुने कस लागथे। वाजिम म, डोकरी दई सुनत सुनत हांसय अऊ हांसत हांसत कहय – बड़े आदमी मन घला बड़ मजाक करथे दई……। कभू कभू मोबाइल म सनदेस आतीस के, तोर खाता म पइसा जमा करे जावथे, तंहंले, अपन खाता ला जांचय अऊ कहय “वहादे, मोला फेर अपरेल फूल बना दींन”। येती ले, अपन समसिया के इजहार करतीस, त ओती ले जबाव आतीस – पचास बछर म जेकर निदान समभव नी होइस डोकरी दई, अभू ले कइसे हो जही, हमूमन ला दस बीस बछर तो बितावन दव। बेटा ला भुलागे, दिन भर उहीच म लगे रहय, नाता रिसतेदारी धीरे धीरे छूटे लगीस।
बपरा सरकार, जनता के चिनता म हाड़ा होगे रहय। ओहा सोंचय के, रोटी कपड़ा अऊ मकान के समसिया के कन्हो इसथायी निरवार समभव हे? समाधान बर पारटी के भवन म बिचार सिविर चलथे। सल्लाहकार मन सोधपरक सुनदर समाधान सुझइस क, जनता ला फोकट म मोबाइल बितरन करदे जाय। सरकार के मुखिया पूछीस के, येकर ले का होही ? तब ओमन बतइन के, मोबाइल हा जनता के भूख मेटा सकत हे। कुछ बिघ्न सनतोसीमन आपत्ती करीन के, मोबाइल हा कनहो के मूलभूत समसिया ला थोरहे निरवार सकत हे। सल्लाहकार मन किहीन, हमन सोध करे हाबन, डोकरी दई के पूरा किस्सा सुनइन। मुखिया किथे – तुंहर सोध फेल होगे तब ? सल्लाहकार मन किथे – फेल होइच नी सकय। उइसनेच मोबाइल बितरन करबो, जइसने मोबाइल, डोकरी दई के भूख मेटावत रिहीस। मानलो कनहो कारन ले, मोबाइल म वाइरस खुसरगे, तब भी, मोबाइल बेचइया अऊ बितरन करइया मनके पेट के अगनी तो सांत होबे करही………..। कोन जनी अऊ मउका मिलही नी मिलही, तेकर ले कमसे कम अपन मनखे के पेट के चिनता म, बात जम्मो झिन ला जंचगे।
केबीनेट म परसताव पारित होगे। जनता के भूख मेटाये बर, कपड़ा अऊ मकान के समसिया ला निरवारे बर, जनता ल मोबाइल बितरन करे जाही। दूसर दिन, देस परदेस के जम्मो पत्र पतरिका मन म, बड़े बड़े अकछर म छपे रहय के, “ सरकार ने रोटी कपड़ा और मकान की समस्या का समाधान खोजा “। परदेस के सल्लाहकार मन, अपन ये खोज ल पेटेंट करवा डरीन। एक कोती, मोबाइल बंटावत हे, दुकानवाला के पेट भरत हे, बितरन करइया घला तरत हे, फेर मोबाइल पवइया के काये होइस पता नी चलीस …… । दूसर कोती, पता चले हे के, अतेक बड़ समसिया के समाधान ल चुटकी म खोजइया बिगियानिक सल्लाहकार मनला इनाम देबर, नोबल समिति हा छत्तीसगढ़ ले नाव मांगे हे।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा