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कविता

श्यामू विश्वकर्मा के कबिता : मन के आंसू मन म पोंछ ले

मन के पीरा
कर देथे तन ल खोखला
चाहे होवय जवान
नई छोड़य लईका-डोकरा।
घुट-घुट के बेंगवा
जइसे येती-ओती तलमलाथे
निकाल देबे कुंआ ले ये बेंगवा
बिन पानी के फड़फड़ाथे॥
तस मन के पीरा
बन के भाला तन ला कोचय
मने हर बिमार पड़े हे
त तन के पिरा कोन सोचय।
ये मन के पिरा हर,
मरत ले नई छुटय
खाले चाहे कतको किरिया
मया हर नई टुटय॥
नइये चिनहारी मया के
सब मया एके म समाय हे
मया म मया हर
मन के पिरा हर बंधाय हे॥
कोन रइगे सुध लेवइया।
काकर करा गोहराबे
सब जान-अन्जान होगे
ये मन के पिरा ले के काकर करा जाबे॥
कर ले सुध अपन तन के ।
बनके तै मोती-हीरा
मन के आसूं मन म पोंछ ले
अउ निकाल फेंक ‘मन के पीरा’॥

श्यामू विश्वकर्मा
ग्राम नयापारा डमरू
बलौदाबाजार

आरंभ मा पढव : –
स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्‍मण प्रसाद दुबे 
पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’

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