पता नइये
कखरो बिजहा ईमान के पता नइये
कखरो सोनहा बिहान के पता नइये।
घर-घर घपटे हे अँधियारी भैया गा
सुरुज हवे, किरन-बान के पता नइये।
पोथी पढ़इया-सुनइया पढ़थयँ-सुनथयँ
जिनगी जिये बर गियान के पता नइये।
करिस मसागत अउ खेती ला उजराइस
किसान के घर धन-धान के पता नइये।
अभागिन भुइयाँ
तैं हर झन खिसिया, मोर अभागिन भुइयाँ
निचट लहुटही दिन तोर अभागिन भुइयाँ।
मुँह जर जाही अँधियारी परलोकहिन के
मन ले माँग ले अँजोर अभागिन भुइयाँ।
पहाड़-कस रतिहा बैरी गरुआगे हे
बन जा तहूँ अब कठोर अभागिन भुइयाँ।
कखरो मन ला नइ टोरे तैं बनिहारिन
अपनो मन ला झन टोर अभागिन भुइयाँ।
आ गे हवे नवाँ जुग बदले के बेरा
नवाँ बिहान ला अगोर अभागिन भुइयाँ।
लाला जगदलपुरी
2 replies on “श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘पता नइये’ अउ ‘अभागिन भुइयाँ ‘”
गजब सुन्दर गज़ल लिखे हावस ग, कका । तोर अब्बड सुरता आथे ग ! मैं हर तोर मेरन भेंट करे बर गए रहे हावौं , तैं हर कतेक मया कर के मोर सँग गोठियाये रहे ग !
कका ग ! वो दिन छत्तीसगढी राजभाषा के प्रान्तीय सम्मेलन म तोर गज़ल – ” गॉव गॉव म गॉव गवोगे । खोजत-खोजत पॉव गवॉगे ।” ल पढ के आए हावौं ग । सब झन बहुत पसन्द करिन हावैं । कतका बढिया लिखथस ग ! तैं हर । तोर अडबड सुरता आथे ग !