दाँव गवाँ गे
गाँव-गाँव म गाँव गवाँ गे
खोजत-खोजत पाँव गवाँ गे।
अइसन लहँकिस घाम भितरहा
छाँव-छाँव म छाँव गवाँ गे।
अइसन चाल चलिस सकुनी हर
धरमराज के दाँव गवाँ गे।
झोप-झोप म झोप बाढ़ गे
कुरिया-कुरिया ठाँव गवाँ गे।
जब ले मूड़ चढ़े अगास हे
माँ भुइयाँ के नाँव गवाँ गे।
जहर नइये
कहूँ सिरतोन के कदर नइये
लबरा ला कखरो डर नइये।
कुआँ बने हे जब ले जिनगी
पानी तो हवे, लहर नइये।
एमा का कसूर दरपन के
देखइया जब सुघ्घर नइये।
बिहान मड़ियावत काहाँ चलिस
बूता ला कुछू फिकर नइये।
देंवता मन अमरित पी डारिन
हमर पिये बर जहर नइये।
लाला जगदलपुरी
श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गज़ल ला हल्बी-भथरी भाखा अउ संपूर्ण बस्तर के लोक संसार के बिद्वान बड़े भाई हरिहर वैष्णव जी ह हमला गुरतुर गोठ खातिर टाईप करके पठोये हावय. उंखर असीस अउ परेम हमला अइनेहे मिलत रहय. बड़े भाई हरिहर वैष्णव जी ल पइलगी – संजीव तिवारी
4 replies on “श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘दाँव गवाँ गे’ अउ ‘जहर नइये’”
Koop manduk ban jane se samsamyik gatiwidhiyo ki lahar se wanchit hona swabhawik hai, lala jee yahi samjha rahe hai, chhattisgarhiya lekhako ko. Sadhuwad.
कतका सुघ्धर रचना हे
पौर साल जगदलपुर गए रहेंव तव ” लाला जगदलपुरी ” संग भेंट होय रहिस हे । उँकरे घर के तीर म एक ठन दुकान हावय तिहें ले बिस्कुट अऊ चॉकलेट बिसा के लेगे रहेंव । ओकर गज़ल के तारीफ करे बर मैं हर अपन आप ल बहुत छोटे महसूस करत हौं । वोला विनम्र श्रध्दाञ्जलि देवत हौं ।
” लबरा ल ककरो डर नइये ” सही बात ए काका जी ! जिनगी के सच्चाई ल बौरे हावस अउ वोही ल लिखे हावस । तोर अब्बड सुरता आथे ग !