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गोठ बात

संस्कार अउ संस्कृति : गोठ बात

जब काकरो सन गुठियावन त हम का बोलतहन तेकर ऊपर धियान रहय वो हमर कर्म बनथे। अपन करनी ल जांचन वो ह हमर आदत बनथे। अपन आदत ल परखना चाही वो हमर चरित्र के निरमान करथे।
आज के समे म ये देखे बर मिलत हे, के हमार विचार म आधुनिकता समाधन हे अउ हमर संस्कार अउ संस्कृति ह भागत जात हे। अइसन म नवा पीढ़ी ल अपन करतब के गियान कइसे होवय? बिचार करे म अइसे लागथे के आज के पढ़ई-लिखई सदाचरन या अइसे कहन के संस्कारी बनाय म उपयुक्त नइये। दूसर कारन लगथे के बिदेसी संस्कृति के नता जोरइय्या मनसे। एकर ले घला हमर संस्कार अउ संस्कृति मेटावत हे। संस्कारित होयच्च म मनसे के सम्मान बाढ़थे। एखरे सेती हमर इहां संस्कार के महत्तम हे। ये ह एक ठन पबरित काम आय जेन अद्भुत रीति से काम करथे। (एबर्ट एम कलार्क पृ. 156)
आज ये जान तान के संस्कार अऊ संस्कृति का आय? संस्कार 16 हावय। गर्भाधान ले के मरन तक लइका के गरभजनित दोष ल टारे खातिर संस्कार होथे। जेखर ले वो ह जिनगी भर संस्कारित हो के सु-करम करत रहय। (मनु. 2126)
मनसे के वो काम जेन सुग्घर होथे, जेखर ले सबके कल्यान होथे, वोकरनाव हे ‘संस्कृति’ लइका के पहिली गुरू होथे वोकर दाई। दाई ह कहुं सु-संस्कारित हे लइका म घला वो सुग्घर गुन ह आथे। काबर के लइका के संस्कार गरभ म ही परना सुरू हो जाथे। ये बात सास्तर-पुरान म दिखे हे। मदालसा, सीता, सुनीति, जीजाबाई, पुतवीबाई मन एकर जीवंत जागत उदाहरन हे। जेकर गरभ ले सु-संस्कारित अउ कालजयी लइका होइन।
हमर देस के एक झन दाई ह अपन लइका ल बड़ सुग्घर संस्कार दे रहिस। वो लइका के अपन दाई म कतका सरधा रहिस ते ला पढ़व। कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चान्सलर अउ उचहा न्यायालय के जज आसुतोष मुखर्जी बड़ अक्कल वाला (बहुमुखी प्रतिभा के धनी) रहिस। वोला बिलायत जाय के कई बेर मउका मिलिस फेर दाई के हुकुम नइ मिले के कारन वो कभु बिलायत नइ जा पाइस।
हमर देस के वो समे के गवरनर जनरल लॉर्ड कर्जन जब सुनिस के मुखर्जी के दाई के राजी नइ होय के कारन म मुखर्जी बिलायत नइ जा पावत हे। त वो ह सत्ता के घमंड म कहिस- ‘जा, जा के अपन दाई ल बता के भारत के गवरनर जनरल तोला बिलायत जाय के हुकुम देवत हे। मुखर्जी हिम्मत सकेल के ठोस बानी म कहिस- मैं माननीय गवरनर जनरल ल कहत हंव के मैं अपन दाई के आज्ञा के निरादर नइ कर सकंव। आप कोनो होवय उंकर बात ल मानना मोर धरम ये। लॉर्ड कर्जन वोकर निधरक बोली ल सुन के दंग रहिगे। वो अंगरेज ह मुखर्जी के भारतीय संस्कार ल देख के तारीफ करिस। ठीके तो कहिस मुखर्जी साहेब ह हमर उपनिषद में घला तो बताये जहे। मातृदेवो भव महतारी ल बहुत उचहा दर्जा दे गे हे।’
आज के जमाना म हमर घर-परिवार समाज के का दसा होवत हे, एला पढ़ के धरंय मन म, के महतारी बाप अपन लइका खातिर जेन तियाग अउ दुख सहिथे वोला ये धरती म कोनो नइ कर सकंय। बाप महतारी ह लइका मन खातिर अइसना बैंक ये कि उंकर जियत भर तोला जतका चाबी निकालत रह, बेटा ह ब्याज ल तो छांड़ के मूलधन का घला वापिस नइ कर सकय। एखरे सेती महतारी बाप के आदर अउ उंकर हुकुम ल मानना बेटा मन के फर्ज आय। आज के घुटना टेक परनाम ह सबे ल चौपट कर दे हे। बडे बुजुर्ग ल नइ परनाम करे म का होथे तेला श्री रामायन के लंकाकांड के दोहा 52 से दोहा 53 के आघू चो. 4 तक देखव।
जब मेघनाथ रनभूमि म सबे वानर सेना ल अपन पराक्रम ले बेहाल कर दिस। जब लछमनजी ह घुसिया के राम जी करा हुकुम ले के लड़ेबर चलिस। हुकुम मानिस फेर परनाम नइ करिस।
घुस्सा करे म बुध (बुध्दि) नास हो जाथे। लछमन जी के घुस्सा ह वोकर स्मृति म भरम डार दिस अउ भगवान ल परनाम करे बर भुलागे। परिनाम का होईस? लछमन जी मेघनाथ के चढ़ाय बान के कारन मुरछित होगे। ‘मुरछा भई शक्ति के लागे।’
संकट मोचन श्री हनुमान जी ह दवई नानिस अउ लछमन जी उठ बइठिन अउ फेर मेघनाथ संग लड़े बर चले लगिस। ये पइत वोला अपन गलती हा मालूम परिस अउ भगवान राम के आज्ञा पाके- ‘जब रघुबीर दीन्ह अनुसासन’ उनला परनाम करके संग म अंगद, नील, मयंद न ल संग सुभट हनुमंत …. ल ले के चलिन।
रघुपति चरन प्रनाम करि चलेउ तुरंत अनंत।
अंगद नीछ, मयंद नल संग सुभट हनुमंत॥
मानस दो. 65
परिनाम ये दारी अच्छा निकरिस। लछमन जी मेघनाथ के बध करके वापिस लहुरिन।
श्री रामायण म कतको जगह बड़े के निरादर करे म का दसा होथे पढ़व अउ गुनव समझदारी संग।
कहे के मतलब हमला अपन परम्परा रीति रिवाज ल अपन जिनगी म निभाना चाही। लइका मन म घला अपन संस्कार के बीज रोपन करना चाही। अपन कुल परम्परा के घला मान्यता हे वहु ल मानना चाही।
गृहसूत्र
अपन कुल म जइसे चलागत हे वोकर पालन करना चाही। भगवान राम के जेन संस्कार होवय वोला बेद-विधि के संग-संग कुलरीति ल घला करे के बात पढ़े बर मिलथे। (बा.350-51 के आगू) इही बात धर्मसिन्धु पृ. 369 म कहे गे हे।
जब काकरों सन गुठियावन त हमका बोलत हन तेकर ऊपर धियान रहय वो हमर कर्म बनथे। अपन करनी ल जांचन वो ह हमर आदत बनथे। अपन आदत ल परखना चाही वो हमर चरित्र के निरमान करथे।
-प्रमोद बत्रा
तात्पर्य अच्छा विचार मस्तिक म डारबो त अच्छा विचार निकरही। कचरा डारबोन त कचरा निकरही। कहे घला हे- जहइसे बोहा तइसे काटिहा।
पहिली संस्कार और संस्कृति के भाव भरय मन म अइसन पाठ पढ़ावंय आज तो मां ह ममी होगे अउ बाप डेड हो गे जिय महतारी बाप….
इही बात ल रमायन म गोस्वामी जी घला कहे हे
अनुचित उचित विचारू तजि के पालहि पितु बैन।
ते भाजन सुरय सुजस के बसहिं अमर पति ऐन॥
(रा.च.भा. 264)
वृध्द पूजा हमर संस्कृति के बिसेसता आय। हमला अपन सियान मन के पांव परना चाही अउ उंकर खंगे बढ़े के खियाल राख के उंकर सेवा करना चाही। काबर के लइका मन खातिर महतारी बाप ले बढ़के दूसर कोनो तीरथ नइये। वोमन ए लोक अउ परलोक म घला नरायन के समान हे।
अत: हमला अपन संस्कार अउ संस्कृति ल जान के अपन चरित्र ल सुग्घर बनाना चाही। कहुं चरित्र बिगड़गे त हजार जनम बिगड़गे अइस संत महात्मा मन के कहना हे-
ऊंचे गिरि से जो गिरै, मरै एकही बार।
जो चरित्र गिरि से गिरै बिगरै जन्म हजार॥
राघवेन्द्र अग्रवाल
खैरघटावाले
बलौदाबाजार