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कविता

सतनाम सार हे

झन काहा तोर मोर,
मतलभिया संसार हे।
भज ले रे सतनाम।
इहां सतनाम सार हे॥
झन बिसराव ठीहा ल,
जब तक हवे सांस ह।
सत के रद्दा म रेंगव,
कहि गे हे घासीदास ह॥
जे देखाथे रद्दा सबला
ऊंखरे जय जयकार हे।
भज ले रे सतनाम…
जाना हवय सबो ल
इहां ले ओसरी पारी।
दाई-ददा, भाई-बहिनी
बेटा-बेटी अउ नारी॥
करबे कारखर बर जोरा,
जिनगी दिन चार हे।
भज ले रे सतनाम…
सुनले संगवारी। अब तंय
अइसने मिटका झन।
मिले हवय मानुस तन,
तंय समे ल गंवा झन॥
हिरदे मा राखे सतनाम
जउन हूसियार हे
भज ले रे सतनाम….
यशपाल जंघेल
तेन्दूभांठा गण्डई
पो.दनिया, तह.छुईखदान
जिला-राजनांदगांव