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व्यंग्य

सबके अपन रंग

पेड़ पौधा मन अपन रंग बदलथे लोग अपन सुवारथ बर खाये पीये के जीनिस ला रंगा के बेचत है। जीव जंतु मन अपन रंग बदलथे। टेटका मेचका मन अपन दुसमन ला चकमा देबर रंग बदलके वाला होथे। बिगर बुध्दिवाला मन अपन रंग बदल सकत हे, त बुध्दि वाला मनखे अपन रंग ला बदले बर काबर छोड़ही।
मनखे ला जेती देखले वोती रंगे-रंग के गोठ ला गोठियात मिलहीं। नीरस कोनों अपन जिनगी ला देखना नी चाहे। माई लोगिन के काय पूछना। उंकर तो रंगे अलग रिथे। बेरा संग सबो मन अपन रहन-सहन खानपान मा मा बदलाव करत हें। काबर सबो मन दुनिया के रंग मा अपन ला रंगात आघू बढ़ना चाहत हें। येमा कोनो पीछू नी होना चाहत हें। फेर अभिन आघु बढ़े के फेरा मा रंग के कमी नईहे। जेने ला देखबे तेने हा अपन रंग देखाथे, अइसने पता चलत हे रंग कतका लोगन कर हावे तेनहा। तेमा कतक के रंग ला देख डारबे। हर कोई के अपन अलग रंग हे। तेकरे सेती रंग मा रंगे मन के चिंहारी घलो नी होय। अउ रंग के चिन्हारी येकरे सेती घलो नी होय, काबर कि जेन रंग ला कभू देखे-सुने नी रहान तहूं हमर आघु मा देखे बर मिलथे। तेकरे सेती आंखी घलो चौंधिया जथे।
रंगीला मन के रंगे अलग रिथे। इंकर तो तन अउ मन चौबीस घंटा रंगाय रिथे। तेकरे सेती येमन ला रंगीला केहे जाथे। येमन अपन रंग मा अतक डूबे रथें के दूसर रंग हा ये मन ला दिखबे नी करे। हमर देश के जादा नौजवान मन रंगीला रिथे। येमन ला काकरो दुख-सुख ले कोनो लेना-देना नी रहाय। आजकाल बाचे-खोचे रथे तेनला सिनिमा टेलीविजन के सीरियल मन पुरा कर देथें। ईकर ला देखके हमर नान-नान लोग-लईका मन सिखथें, जिंकर हाथ में हमर देस के भविस हा जाना हे। इही हाल रही त फेर कोनजनी।
अइसने पीने वाला मन के रंग का पूछना पीये के बाद उकर रंग जईसे तो कोनो रंग नी रहाय। सरकार घलो येमन ला रंगाये बर नी छोड़े तेकर सेती जगा-जगा दारू दुकान खुलत जात हे। सरकार ला घलो येमा जादा आमदनी होथे। सरकार ला घलो अपन आमदनी ले मतलब हे येकर ले काकरो घर उजरे ते बांचे वोमन ला काय करना हे। पीने वाला मन ला बाटल के आघु मा दाई-ददा लोग लईका सबके रंग फीका रिथे। येमा बरबादी के छोड़ कुछु दिखवे नी करे।
पेड़ पौधा मन अपन रंग बदलथे लोग अपन सुवारथ बर खाये पीये के जीनिस ला रंगा के बेचत है। जीव जंतु मन अपन रंग बदलथे। टेटका मेचका मन अपन दुसमन ला चकमा देबर रंग बदलके वाला होथे। बिगर बुध्दिवाला मन अपन रंग बदल सकत हे, त बुध्दि वाला मनखे अपन रंग ला बदले बर काबर छोड़हीं। जइसने राजा वइसने परजा। सरकार अपन सुवारथ बर बेरा-बेरा मां रंग बदलत रिथें। तेकरे सेती सब अपन रंग ला देखाय बर घलो नी छोड़े। येकरे सेती रंग बदलैय्या मन ला सरकार रंगे हाथ पकड़ना चाहिथे। येकर बर बेचारी लक्ष्मी ला आघु आय बर परथे। तब कहीं जाके रंगे हाथ पकड़ाथें। मोर बिचार में तो भई हमर बिधाता इंद्र देव हा हमन ला बछर मा अपन एक ठन सतरंगी रंग (इंद्रधनुष) ला देखाथे। तिही हमन ला अतेक सुख देथे तेकरे अंदाजा इही मा लगा सकत हन के, येकर क्षण मात्र के परभाव हा बछर भर हमर आघु मा झुलत रिथे। पहिली एके ठन रंग के परभाव अतका दे कि उतरे मा कतको दिन लग जाय। असल रंग के परभाव हा धीर-धीर नंदात जात हे। तेकरे सेती ये आनी-बानी के नकली रंग के परभाव हा बाढ़त जात हे। मनखे के असल रंग हा येकरे सेती खोवात जात हे। तेकरे मनखे हा मनखे ला नी चिंहत हे। हमर भारतीय संस्कृति मा अलग-अलग राज के अलग-अलग बोली वेश-भूषा के होय के बाद घलो सबे के रंग एके रहाय। दूसर देश के मनखे इही रंग-भेद के सेती लड़ई-झगरा, मार-काट होवय। वो बेरा हमर भारत देश एकर अच्छा मिसाल बनत रिहिस हे। फेर येहा अपन असल ला खोवत जात हे। नक्सलवाद-आतंकवाद के जर हा मनखे ला हला के रख देखवत हे। अउ येकर परभाव कमती होय के बजाय बाढ़ते जात हे। पानी ले सस्ता लहू होगे तईसे जगा-जगा, गोठ-गोठ मा लहू बोहात हे। मनखे अपन-अपन ले छरियात जावत हे। भाई-भाई बैरी होवत जात हे। ये खाई ला बेरा रहात पाटे बर परही। सबला एके रंग मा रंगे बर परही। हमर संस्कृति में होरी तियार के महत्ता हावे। ये तिहार हा परेम बेवहार भाईचारा बगराय बर होथे। भेदभाव ला मेटाके दुसमन ला अपन बनाय बर होरा तिहार मनाय जाथे। हमन ला सबो ला अपन मानत एके रंग म रंगन। जेहा सबो बर बने होही।
दीनदयाल साहू

आरंभ में पढ़व मोर लिखे एक ठन हिन्‍दी कहिनी : अपनी अपनी संतुष्टि

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