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छत्तीसगढ़ी भाखा

समय मांगथे सुधार,छत्तीसगढ़ी वर्णमाला एक बहस

एक डहर हम चाहथन के छत्तीसगढ़ी ल चारों मुड़ा विस्तार मिलय, अउ दूसर डहर लकीर के फकीर बने रहना चाहथन। कुआं के मेचका बने रहना चाहथन, त बात कइसे बनही?
आज ले सौ-पचास साल पहिली हमर पुरखा मन नानकुन पटका पहिर के किंजरय, आज अइसना पहिरइया मन ला अशिक्षित अउ पिछड़ा कहे जाही। वइसने आज भासा के दर्जा प्राप्त छत्तीसगढ़ी ल ‘बोली’ के मापदण्ड म लिखबो तभो पिछड़ा अउ अशिक्षित माने जाबो।
कोनो भी मनखे ह अपन अंतस के भाव ल कोनो दूसर मनखे ल समझाय खातिर जेन भासा के उपयोग करथे, उही ल हम भासा कहिथन। अउ जब उहीच भासा ल माध्यम बना के बहुत झन मनखे अपन भाव ल परकट करथें त फेर वोला एक निश्चित रूप दे खातिर लिपि के, वोकर मानक रूप के अउ आने जम्मो जरूरी जिनीस मन के बेवस्था करथन। छत्तीसगढ़ी खातिर घलोक अइसन किसम के बुता कतको बछर ले चलत हे। जिहां तक व्याकरन अउ लिपि के बात हे त एमा तो सबो एकमत दिखथे, फेर वर्णमाला के उपयोग खातिर नवा अउ पुराना पीढ़ी म मतभेद दिखथे। खासकर कुछ अक्षर मन के उपयोग खातिर।
छत्तीसगढ़ी लेखन के शुरुआत के बेरा म हिन्दी भासा अस्तित्व म नइ आ पाए रिहिसे, एकरे सेती वो समय छत्तीसगढ़ी सहित अउ कतको लोकभासा म श, व, क्ष, त्र, ज्ञ, ऋ जइसन अक्षर मन के उपयोग नइ होवत रिहिसे। फेर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब हिन्दी ल ये देश के राजभासा बना दिए गीस, एकर माध्यम ले चारों खुंट लिखई-पढ़ई होए लागिस, तब लोकभासा ले परिष्कृत करे हिन्दी म नागरी लिपि के जम्मो वर्ण मन के उपयोग होए लागिस। एकर संगे संग छत्तीसगढ़ी सहित अउ आने लोकभासा होए लागिस। एकरे सेती आज नवा अउ पुराना पीढ़ी के लेखन म अइसन किसम के अंतर देखे जावत हे। मोला लागथे के अब अइसन किसम के अंतर दिखना जरूरी घलोक होगे हावय।
हिन्दी अब विश्व भासा बनगे हवय, एकरे संग येला लिखे जाने वाला लिपि, ‘नागरी’ घलोक ल अब पूरा दुनिया भर म जाने अउ पहचाने जावत हे। अइसन म हम छत्तीसगढ़ी ल जुन्ना लोकभासा के मापदण्ड म लिखबो त निश्चित रूप ले येला हमर कमजोरी अउ अशुध्दता माने जाही।
हां, आज कहूं हम छत्तीसगढ़ी ल अपन खुद के लिपि म लिखतेन त बात आने रिहीसे। फेर जब हम एकर खातिर ‘नागरी’ लिपि ल स्वीकार करे हावय त ये जरूरी हो जाथे के हम वोकर जम्मो वर्ण ल घलोक स्वीकार करन।
दुनिया के ये रिवाज आय के जब कोनो ल बड़का बनना होथे त वो बड़े सोचथे, चारों खुंट के अच्छाई अउ बड़ाई ल धरथे, सकेलथे अउ संगे-संग अपन कमजोरी, अपन कमी मन म सुधार करथे। हमूं मन छत्तीसगढ़ी के संबंध म अइसन काबर नइ सोचन? एक डहर हम चाहथन के छत्तीसगढ़ी ल चाराें मुड़ा विस्तार मिलय, अउ दूसर डहर लकीर के फकीर बने रहना चाहथन, कुआं के मेचका बने रहना चाहथन, त बात कइसे बनही? आज ले सौ-पचास साल पहिली हमर पुरखा मन नानकुन पटका पहिर के किंजरय, आज अइसना पहिरइया मन ला अशिक्षित अउ पिछड़ा कहे जाही। वइसने आज भासा के दर्जा प्राप्त छत्तीसगढ़ी ल ‘बोली’ के मापदण्ड म लिखबो तभो पिछड़ा अउ अशिक्षित माने जाबो। एकर खातिर जरूरी हे, के छत्तीसगढ़ी लेखन म अब गुणात्मक सुधार होवय, जेन नागरीलिपि ल हम आत्मसात करे हवन वोकर जम्मो वर्ण के शुध्द रूप म प्रयोग करे जाय। तभे दूसर मन घलोक हमला, हमर भासा ल स्वीकार करहीं। उहू मन एमा लिखे-पढ़े के उदिम करहीं। ये बात तो निश्चित हे, के कोनो भी मनखे ह अपन भासा ल बिगाड़ के दूसर के भासा ल न सीखे न धरय।
सुशील भोले

3 replies on “समय मांगथे सुधार,छत्तीसगढ़ी वर्णमाला एक बहस”

बावन आखर ल परघाबो तभे अपन लक्ष्य ल पाबो ।

भोले भइया आप बने बात ला कहथ हंव,ये काम ला एक कलमकार ह आघू बढा सकत हे, शंकुनतला दीदी कस महू ह कहत हंव-

बात कही पूरा पूरा, जम्मो अक्षर के धरे धुरा

सही मा बने बात ल क़हत हाव गुरुजी

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