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गोठ बात

सरद्धा अउ सराद्ध

पितर पाख मा पंदरा दिन पुरखा मन बर सरद्धा तन मन मा कोचकीच ले भर जाथे। दाढ़ी-मेछा हा अइसे बाढ़ जाथे जइसे सियान मन के सुरता मा सुध-बुध गवाँ गे हे। लिपे-पोते खुँटियाय अँगना-दुवाँर, चउँक पुराय मुहाँटी, तरोईपान अउ फूल ले हूम-जग देवाय घर हा चारों खूँट बरा-सोंहारी के माहक मा महर-महर करत रथे। सिरतोन मा अपन सियान अपन पुरखा के सरद्धा के परमान एखर ले बड़े अउ का होही।
आज नरवा मा सवनाही पूरा कस छकबक अपन पुरखा बर सरद्धा ला देख के मोर बया भुलागे। जब सियान हा जींयत रहीस हे ता एक मीठ बोली खातिर तरसय। बरा-सोंहारी तो छोड़ बाँचे सुख्खा खपरा अंगाकर रोटी हा माँगे मा नइ मिलत रहीस हे बपुरा ला। अब जब सियान हा सिरा गे ता सराद्ध के नाँव मा छप्पन भोग के भोग पुरखा के फोटू मा लगात हे अउ सरद्धा ला सरी संसार ला देखात हे। का सरद्धा हा सराद्ध के नाँव मा सरी संसार ला देखाय के जीनिस हरय? हमला सराद्ध के नहीं सियान के जीयत मा सरद्धा के जादा जरुरत हावय मरे के पाछू के हा तो सिरिफ नेंगहा हरय।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा
संपर्क-9200252055
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