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गीत

सहे नहीं मितान

घाम जाड़ असाड़ मा,सेहत के गरी लहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,अब सहे नहीं मितान।

बासी पेज चटनी मोर बर, अब नाम के होगे हे।
खाना मा दू ठन रोटी सुबे,अउ दू ठन साम के होंगे हे।
उँच नीच खाये पीये मा, हो जाथे अनपचक।
कूदई ल का कहँव,रेंगई मा जाथे हाथ गोड़ लचक।
जुड़ घाम मा जादा झन,जायेल केहे हे।
गरम गरम बने पके चीज,खायेल केहे हे।
धरे हौं डॉक्टर ,चलत हे रोज इलाज।
बस बीते बेरा ल,सोचत रहिथों आज।
एक कन रेंगे मा,जाँगर थक जाथे।
सुस्ती लगथे, अड़बड़ नींद आथे।
घर के सीढ़िया चौरा लटपट मा चढ़ाथे।
रुखराई चढ़े रेहेंव तेखर सुरता बड़ आथे।
मन तो कइथे तँउर नहा तरिया मा,
फेर तन कुछु कहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर बिही,
अब सहे नहीं मितान।
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गिर जाँवन कहूँ त,थपड़ी पीट हाँसन।
गावन बजावन ,देवन बड़ भाषण।
खोर्रा खटिया म,तको सुत जात रहेंन।
नहाये बर कुँआ म,घलो कूद जात रहेंन।
खार के मंदरस ल,झार के पी देत रहेंन।
आमा अमली खाये बर,जी देत रहेंन।
भागत रहेंन खारे खार, खोर्रा गोड़।
चिंता फिकर ल, बड़ दुरिहा छोड़।
उँच उँच गेंड़ी म ,चढ़के अड़बड़ नाचन।
काबा काबा कपड़ा ल,पटक पटक काँचन।
गड़गड़ी चक्का ढूलान,अउ पतंग धर भागन।
डोकरी दाई के कहानी सुने बर,बड़ रात जागन।
तन इँहे अँइठे बइठे हे,
फेर मन मोर तीर रहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,
अब सहे नहीं मितान।
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उलानबाँटी नदीपहाड़ गिल्ली डंडा भँवरा।
खेल अबड़ खेलत रेहेंन, खाय बिन कँवरा।
चाब देत रेहेंन,चेम्मर अँगाकर रोटी।
चना गहूँ होरा संग चबा जाय गोंटी।
लगे नहीं एको गुरुजी के लउड़ी।
नाचन कूदन छोड़ पइसा कउड़ी।
मूड़ मा डोहारत रहेंन,पानी काँदी भारा।
बिन बइला के तीर देत रहेंन,खाँसर गाड़ा।
गाचन कूदन थके नहीं गतर।
टोड़ देन डोरी ल, दाँत म कतर।
अब एककन गिरे म,हाड़ा गोड़ा टूट जाथे।
कारनामा ल सोंच अपन,पछीना छूट जाथे।
लड़ जात रहेंन,बइला गोल्लर ले।
खेले बर भागन पल्ला घर ले।
शेर बन जात रेहेंन,कनिहा म बाँध पटको।
गुर्री गुर्री देखन,तेमा डर्रा जाये कतको।
फेर अब तन म, गरम खून बहे नहीं मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,सहे नहीं मितान।

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बालको(कोरबा)
9981441795