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गोठ बात

सावन के तिहार

फोटू : जयंत भाई के ब्‍लॉग चारी चुगली ले

सावन सोमवार- सावन महीना म भगवान संकर के पूजा करे के बिसेस महत्तम हे। रोज-रोज पूजा नई कर सके म मनसे मन ल हरेक सम्मार के सिवपूजा जरूर करना चाही।
बिधान- सम्मार के दिन सिवजी के माटी के मूर्ति बना के जेकर संख्या एक या ग्यारह रहय। कोपरा म पधरा के पंचामृत ले स्नान कराके फेर आरुग पानी ले नहवावय। बाद म चंदन, फूल, चाउंर, कपड़ा चढ़ा के मंत्रोपचार पूजा करके आरती करय अउ भगवान के स्तुति करय-कर्पूर गौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्र हारम्।
सदा वसतं हृदयारबिन्दे भवं भवानि सहितं नमामि॥
हो सकय त कोनो बाह्मन देवता ल बला के रुद्राभिष्टध्यायी पाठ कराना चाही।
पार्थिव मूर्ति नई बना सकय त घर म तुलसी चौरा म रखे संकर भगवान के पूजा, ऊपर लिखे मुताबिक करके दिन भर उपास रहना चाही अउ रात के भगवान के भोग लगा के पारण करना चाही। भगवान भोले नाना सोमवार वरत के करइया के इच्छा ल पूरा करथे अउ धन, जन ले भरपूर भंडार ल राखथे।
कजरी तीज
सावन महीना के अंजोरी पाख के तीज के दिन कजरी तीज ल मनाय जाथे। आज के दिन माईलोगिन मन पारबती जी के पूजा करथें। जेन कइना के बिहाव के बाद पहिली सावन आथे त वोला ससुरार म नई राखयं। आज के दिन सुघ्घर-सुघ्घर खाय-पिए के चीज बना के अउ पारबती जी के भोग लगाके वोकर पारण करथें।
माईलोगिन मन हाथ म कई किसिम के चित्रकारी करके मेंहदी रचाथें। पांव म माहुर लगाथें अउ सुघ्घर कपड़ा पहिन के झूलना झूलथें। कजरी गीत गाय के घला चलन हे। ये तिहार म तीन ठन बात ल छांड़े खातिर बिधान हे- 1. पति से छलकपट नई करना, 2. खराब बोली नई बोलना अउ 3. दूसर के चुगली चारी नई करना।
अपन ले बड़े के पांव छूना। उंकर आशीर्वाद लेना अउ उंकर संग बने बेवहार करे ले अपन जिनगी ल सुखमय बना सकत हें। अइसे कजरी तीज के वरत करे के फल मिलथे।
नागपंचमी
हमर धर्मग्रंथ म सावन महीना के अंजोरी पाख के पंचमी के दिन नागपूजा के बिधान हे। उपास रहना अउ एक बेर खाना ये बरत के नियम आय। पूजा म नाग के मूर्ति कागज, पीढ़ा नइते भुइंया म माटी के नाग बनाके फूल-पान अगरबत्ती, भोग-राग लगाके आरती करे जाथे। नाग मन के बिल म शक्कर डाल के दूध ल रितोय जाथे। वोकर से उनला ठंडक मिलथे अउ वोमन परसन्न होथें। कच्चा चाउर ल भिंजो के कचौना बनाथें अउ नाग देवता म चढ़ाथें फेर परसाद पाथें। वोकर बाद आरती करके प्रार्थना करथें-
सर्वेनागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्थायेऽन्तरे दिवि संस्थित:।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वति गामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:॥
(भविष्य पु., ब्रह्म पर्व 3233-34)
नागमन के पूजा करे ले नाग बिस अउ भय ले रक्षा होथे अउ जिनगी म कांही अनिष्ट के डर नि रहय।
‘तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।’
एक बेर के बात आय समुद्र मंथन में देवता अउ राक्षस मन उच्चै:श्रवा नाव के घोड़ा पाय रहिन। घोड़ा के रंग एकदम झक सफेद रहिस। वोला देख के नागमाता कदू्र अउ विमाता विनीता म घोड़ा के रंग ल लेके वाद-विवाद होगे। नाग-माता कद्रू ह कहिस के घोड़ा के रंग करिया हे अउ विनीता कहय घोड़ा के रंग सफेद हे। गुस्सिया के कदू्र ह कथे-‘नहीं घोड़ा करिया हे, कहूं मोर बात ह लबारी हो जाही त मैं जिनगी भर तोर नौकरानी बन जाहूं। नई ते तेंह मोर नौकरानी बनबे।’
अइसे कहिके कद्रू ह नागमन ल कहिस-‘बेटा हो! तुमन बाल के समान पातर होके घोड़ा के सरीर म लपट जावा। नाग मन अपन दाई के काहना ल नइ मानिन त कद्रू ह गुस्सा के वो मन ला सराप दे दिस के पांडव वंश के राजा जनमेजय नाग यज्ञ करही त तुमन वो जग मं जर के नष्ट हो जाहा।’
अपन दाई के सराप ले नागमन डर्रागें अउ वासुकी नाग ल अगुआ करके ब्रह्माजी करा जाके सबे हाल ल बताइन अउ सराप ह टर जाय तेकर उपाय पूछिन। ब्रह्माजी कहिन-‘तुमन डर्रावव झन। जरत्कास मुनि तुंहर बहनोई बनही। वोकर लइका आस्तिक तुंहर भांचा रक्षा करही।’ इही पंचमी तिथि के आस्तिक मुनि ह नागमन के बचाव करे रहिस। तेखरे सेती आज के दिन नागपंचमी के तिहार मनाय जाथे।

राघवेन्द्र अग्रवाल
खैरघटा

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