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कविता

सावन

व्याकुलता छाए हे तन मन मा
अकुलित हम सब यौवन मा
जम्मो कति बादर आ गे
नाचत हे मजूर अब वन मा
आकुल मन शांत हो गे हे
बुढवा के चौपाल खो गे हे
गावत हे डाल मा सुअन
धरती के पियास बुझाय बर
आ गे हे सावन
मरूस्थल मा छाए हे हरियाली
थक हार के बइठे तपन महाबली
माटी के खुषबू मनभावन
पियास बुझाए बर धरती के
आ गे हे सावन
चिखला फइले हे चहुॅंओर
आवत हावय घटा घनघोर
आंखि खोल उठ गे हे सुमन
पियास बुझाए बर धरती के
आ गे हे सावन
सावन अब तैं चुप्पी तोड
काबर रिसाय हस गुस्सा छोड
खुष खबरी ले भर गे दामन
पियास बुझाए बर धरती के
आ गे हे सावन

कोमल यादव
मदनपुर खरसिया
9977562133