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कविता

सुघ्घर लागथे मड़ई

ओरी ओर सजथे , बजार भर दुकान ,
टिकली फीता फुंदरी , रंग रंग के समान ।
भीड़ भाड़ लेनदेन , करे लइका अऊ सियान ,
जोड़ी जांवर , चेलिक मोटियारी मितान ।
गुलगुल भजिया , मुरकू , बम्बई मिठई ,
खावत गंठियावत , अंचरा म खई ।
ललचा देथे मनला , चुनचुनावत कड़हई ,
उम्हिया जथे मनखे , देखे बर मड़ई ॥
धोवा चाऊंर नरियर , दूबी सुपारी ,
चड़हा के मनावथे , अपन माटी महतारी ।
दफड़ा किड़किड़ी अऊ घुमरत निसान ,
मनजीरा सुर मिलाथे , मोहरी संग तान ।
झूपत डंगोवत घोंडत , बइगा अऊ सिरहा ,
ठेंगा अटिंयाथे , कनहो धौंरा कनहो भिरहा ।
परघइया रऊत मन , पहिरे नाचे मंजुरई ,
नेवता म आये हाबे , बैरक मड़ई ॥
चक्कर रहिचुली के , मजा हे नियारा ,
मुचमुचावत झूलथे , ये दे सुकवारा ।
डोकरा के घला मन , तरी तरी फसफसा जथे ,
मार लेथे सवाद , देखे म लजा जथे ।
चुंहक लेथे चहा , अऊ खा लेथे बीरो पान ,
सऊंख के आगू काये , लइका अऊ सियान ।
मतवार धर के जोहथे , बोकरा – बरई ,
सकताहा रकताहा , छत्तीसगढ़ के मड़ई ॥
उदुप ले संघर जथे , बेटी अऊ महतारी ,
मया पलपला जथे , का कहंव संगवारी ।
अंतस ओगर जथे , बरस जथे आंखी ,
निसठुर चोला के घला , भींग जथे पांखी ।
धक्का के गुदगुदी , अऊ धुर्रा के चनदन ,
ले के लहुंट जथे , भिनसरहा कहूं मनझन ।
मनखे जिंहा लेथे , मन भर अंगड़ाई ,
अब्बड़ सुघ्घर लागथे , हमर गांव के मड़ई ॥

गजानंद प्रसाद देवांगन