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कविता

सुमिरव तोर जवानी ल

पहिली सुमिरव मोर घर के मइयां,
माथ नवावव धन धन मोर भुइयां I
नदियाँ, नरवा, तरिया ल सुमिरव,
मैना के गुरतुर बोली हे I
मिश्री कस तोर हँसी ठिठोली ल,
महर महर माहकत निक बोली हे I
डीह,डोगरी,पहार ल सुमिरव,
गावव करमा ददरिया I
सुवा,पंथी सन ताल मिलालव,
जुर मिर के सबो खरतरिहा I
जंगल झाड़ी बन ल सुमिरव,
पंछी परेवना के मन ल सुमिरव I
पुरखा के बनाय रद्दा मा चलबो
नवा नवा फेर कहानी ल गढ़बो I
पानी ल सुमिरव, दानी ल सुमिरव,
बलिदानी तोर कहानी ल सुमिरव
माटी के मान बढ़ईया
अन्नदाता तोर जवानी ल सुमिरव I

विजेन्द्र वर्मा अनजान
नगरगाँव(जिला –रायपुर)