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कविता

सुरता आथे रहि-रहिके

सुरता आथे रहि-रहिके
ननपन जिनगानी के,
सुरता आथे ना
दाई के रांधे सिल-बट्टा के,
कुंदरू-करेला चानी के,
सुरता आथे ना
कहॉं गंवागे वो बेरा ह
कका के गोठ,
ददा के बानी के,
सुरता आथे ना

काकी लिपे गोबर पानी,
गोकुल लागे अंगना
तुलसी चांवरा म दीया बारे,
खोपा म धारे देवना
चरर-चरर दुहनी बाजे,
महर-महर मेहरी
सियान दाई दही बिलोए,
बबा चुरोए लेवना

खाके चटनी-चीला,
बीनन सीला
वो भर्री के झाला,
बतावंव काला
वो मया बर मन सुरर जाथे ना
बेलन चले,
दंउरी चले,
माते उलान बांटी
जिनगी के गाड़ी बढ़गे,
ओरमे हे लाहंगर-घांटी
कहॉं छुटगे वो ननपन ना !
सुरता आथे रहि-रहिके
ननपन जिनगानी के,
सुरता आथे ना

लोकनाथ साहू ललकार
बालकोनगर, कोरबा (छ.ग.)
मोबाइल – 9981442332
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