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सुरता

सुरता : पद्मश्री डॉ. मुकुटधर पाण्डेय

30 सितम्बर 1895 के दिन, 113 बरिस पहिली हमर छत्‍तीसगढ के गंगा, महानदी के तीर बालापुर गांव म एक अइसे बालक के जनम होइस जउन हा बारा बरिस ले अपन गियान के पताका फहरावत पूरा भारत देस के हिन्‍दी परेमी पाठक मन के हिरदे मा छा गे । ये बालक के नाम रहिस मुकुटधर । बालक मुकुटधर अपन गांवें म संस्‍कृत, हिन्दी‍, बंगाली, उडिया संग अंग्रेजी भाखा के पढई करिस अउ आगे पढे बर प्रयाग महाविद्यालय चल दिस । फेर वोला सहराती जिनगी नइ भाइस अउ अपन गांव बालापुर म आके, आघू के पढई ला घरे म रहि के करे लागिस ।

बालक अपन गियानी बाप अउ भाई मन ला गुरू बना के बेद विगियान, व्यारकरन अउ भाखा के पढई म प्रवीन होगे । बालक मुकुटधर उपर गुरूदेव रविन्द्ररनाथ टैगोर के कबिता मन हा गहरा प्रभाव डारे रहिस, तेखर सेती उहू हा अपन भाई संग कबिता लिखे लागिस । बारा बरिस के उमर म ओखर पहिली कबिता देश के जाने माने पतरिका म छपिस, तेखर बाद ले सरलग देश के अलग अलग पतरिका मन म पं.मुकुटधर पाण्डेय जी के कबिता मन छपे लागिस । देखते देखते अपन भाखा अउ भाव गियान के कारन पं.मुकुटधर पाण्‍डेय ह हिन्दी कबिता के देस के जाने माने कबि बन के छा गे

पं.मुकुटधर पाण्डेय के कबिता कुकरी के प्रति ला हिन्दी साहित जगत म छायावादी पहिली कबिता माने जाथे, अउ पाण्‍डेय जी ला छायाबाद के जनक कहे जाथे । आज घलव पूरा देस इखर लेखनी के लोहा मानथे । इमन हिन्दी कबिता लेखन म एक नवां क्रांति ल जनम दीन अउ कबिता ल नवा सैली दीन । हिन्दी साहित जगत मा इखर योगदान ला पूरा देस कोटि कोटि कंठ ले सराहे हें । पं.मुकुटधर पाण्डेय जी के कबिता, कहिनी अउ निबंध देश के अलग अलग जघा ले अडबड अकन प्रकाशित होये हे । हिन्दी के सेवा के संगें संग इमन कालीदास के ‘मेधदूत’ के छत्‍तीसगढी अनुवाद करे हें

पं.मुकुटधर पाण्‍डेय ला देश म बहुत अकन सम्मादन अउ अलंकरन देहे गीस, हमर प्रदेश के दूनों बडे विश्‍वविद्यालय ह उखर लेखन के सम्‍मान करत डी लिट के मानद डिग्री प्रदान करिन । सरकार द्वारा उखर सम्मान म उनला पद्मश्री के अलंकरन प्रदान करे गीस । अपन पूरा उम्‍मर हिन्दी भाखा के सेवा करत देव स्‍वरूप हमर छत्तीसगढ के सपूत पं.मुकुटधर पाण्डेनय 6 नवम्ब र 1989 के दिन हमर बीच ले सरग सिधार गे । छत्तीसगढ के प्रसिद्ध कबि साहित्यकार डॉ.विमल कुमार पाठक जी हा पं.मुकुटधर पाण्डेय के संबंध में एक गीत सुनाथे –

मुकुटधर, तुंहर नाम हे भारी, तुम साहित्य-देवता अब जी हम अन तुंहर पुजारी ।
मुकुटधर, तुंहर नाम हे भारी ….

महानदी ले बोलेव तूमन, कुकरी के मूंह खोलेव तूमन
टेसू तिर तुम रोयेन, धोयेन, अउ किसान संग जागेव, सोयेव ।
सबले बोलेव अउ गोठियायेव, जड-चेतन के भेद भुलायेव
छायावादी कबिता लायेव, पदम सिरी पदवी ला पायेव ।
ऋषि मुनि कस देखेन तुमला, नई मानेन संसारी ।
मुकुटधर तुंहर नाम हे भारी…..

छत्‍तीसगढ के नांव बढायेव, कतको बात तुंही समझायेव
तुंहर कहे इतिहास बन गईस, सब झन के इतिहास बन गईस
हिन्दी, संस्कृत, बंगला, उडिया, अगरेजी संग छत्तीसगढिया
सब भासा म तुम लिख डारेव, सत्यम शिवम सुन्‍दरम कर डारेव
कालिदास के लगथे तूमन, आव, बिमल, अवतारी
मुकुटधर तुंहर नांव हे भारी ।

आज हम उखर सुरता म अपन अंजुरी के आरूग फूल उखर चरन म अर्पित करत हन । हे सरस्ववती के यसस्‍वी पुत्र, मोर छत्तीसगढ महतारी के कोरा के मान ला पूरा जग म बगरइया छायावाद के मुकुट आप ला गुरतुर गोठ परिवार के बारंबार प्रणाम हे

संजीव तिवारी