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कविता

सुरता लंव का दाई तोर गांव मा

सुरता लंव दाई का तोर गांव मा
सुग्घर खदर छानी छांव मा

जाना हे दूर कहिके खायेंव सटर-पटर
गांव हावय दुरिहा रेंगेव झटर-पटर
लागे हे भूख दाई खालंव का बासी पसिया
मोर ले नई सहावय जियादा तपसिया
सुरता लंव दाई का तोर गांव मा
सुग्घर खदर छानी छांव मा

बिहीनिया ले रेंगे रहेंव धरके मोटरी
मोटरी मा हावय खुरमी-ठेठरी
थकगे जांगर मोरे रेंगे नई जावय
लागाथे भूख फेर नई खवावय
सुरता लंव दाई का तोर गांव मा
सुग्घर खदर-छानी गांव मा

जरत हे भोंभरा तिपे हे भुंईया
होगे सिरतोन घाम निरदइया
जोहत होही रद्दा कौवा के कांव मा
तिपथे तरवा फोरा-परगे पांव मा
सुरता लंव दाई का तोर गांव मा
सुग्घर खदर छानी मा छांव मा

दिखत नई हे रद्दा होगे मुंधियार वो
जांगर थकगे हाबे होगे अंधियार वो
दे दे मोला ठऊर दाई मया के छांव मा
नहका दे मोला भवसागर ले नंाव मा

सुरता लंव दाई का तोर गांव मा
सुग्घर खदर छानी छांव मा

Bhola Ram Sahu

 

 

 

 

 

 

 

भोलाराम साहू