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कविता गीत

सुरता हर आथे तोर

सपना सही तैं आये चल देहे मोला छोड़,
सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर।

आके तीर म पूछे तैंहा, सीट हावै खाली,
कहाँ जाबे तैहा ग, मैं हा जाहूं पाली।
छुटटा मागें सौ के,मया ल डारे घोर,
सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर।

रंग बिरंग के चूरी पहिरे छेव छेव म सोनहा,
फूल्ली पहिरे नाक म,नग वाले तिनकोनहा।
कोहनिया के कहे उठ,खुंदागे लुगरा छोर,
सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर।

सकुचावत अनगहीन,कहे जावत हावंव,
छिन भर म का खोयेंव,पायेंव का बतावंव।
हिरदे के पूंजी जमों,ले गये बटोर,
सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर।

नाव पता नई पूछेंव,नई पूछेंव ठिकाना,
सोरियावत आतेंव कभू,करके कुछ बहाना।
भेंट लेंतेंव लगथे देतेंव,मया ल बहोर,
सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर।

मनोहर दास मानिकपुरी