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कहानी

सेठ घर के नेवता : कहिनी

रमेसर अपन छोटे बेटी के चइत मा बिहाव बखत अड़बड़ खुस रहिस। जम्मो सगा सोदर,नत्ता गोत्ता, चिन पहिचान,अरपरा परपरा ल नेवता देय रहिस।सबो मन आय घलाव रहिस।सहर के सबले बड़े सेठ ला घलो नेवता दिस। ओकर संग बीस बच्छर पहिली जब नानकुन नवा दुकान धरिस तब ले लेन देन चलत हे। आज ओकर दुकान बीस गुना बाढ़ गे हवय। सुजी से लेके कुलर फ्रिज,कपड़ा लत्ता, बरतन अउ सोन चांदी सबो मिलथे। रमेसर के घर बिहाव के जम्मो जिनिस ओकरे दुकान ले आय रहिस। सेठ ह नेवता के मान राखिस अउ धरम टीका के दिन चार चकिया गाड़ी मा आइस अउ बेटी दमांद ल आसिरबाद दिस।बेटी बर बने बिछिया घलाव लाय रहिस। रमेसर अपन भाग ल बहुत सहुरइस।अपन समधी ,सगा सोदर ल सेठ संग भेंट कराइस। कलेवा, रोटी,भात, तसमइ जौन ओकर घर बने रहिस ,खवाइस बने मान-गउन करिस। जाय के बेरा सेठ के खांद मा एक ठन फूलपैंट कपड़ा ला डार के बिदा करिस।



एक महिना बीते पाछू करजा के पइसा पटाय बर गिस। राम रमउवा करके जतका पइसा लाय रहिस दे दिस अउ बिहाव मा आके मान बढ़ाय बर धन्यवाद करिस।बीस -पच्चीस दिन पाछु मनरेगा काम के पइसा झोंकिस। करजा के चिंता ल कम करेबर फेर सहर मा सेठ दुकान गिस। जय जोहार के पाछू पइसा जमा करेबर दे दिस। सेठ आज रमेसर डहार जादा धियान नइ देवत रहिस।ओकर आगू मा थप्पी के थप्पी नेवता पाती गंजाय रहिस। सेठ हा नांव,पता बतावय अउ मुनीम हा लिखत जाय। जब रमेसर जाय लागिस तब सेठ हा एक ठन नेवता पाती ल रमेसर कोती देवत कहिस- रमेसर..! मोर बेटा के बिहाव हे, ओकर नेवता हे। अउ बरात चलना हे ,जरुर आबे। रमेसर के छाती फूलगे , सहर के सबले बड़े सेठ हा अपन बेटा के बिहाव के नेवता दे हवय। घर जाके अपन गोसाईं ला बताइस। दूसर दिन ओकर गोसाइन तरिया मा सब अरोसिन,परोसिन मन ला बता डरिस।
लगती असाढ़ मा चउत के दिन बरात जाय बर रमेसर दस बजे घर ले बन ठन के निकल गे। सहर के सीतला मंदिर ठउर जा के देखिस ।उहाँ दस बारह ठन चार चकिया गाड़ी नम्बर लिखाय खड़े रहिस।एक झन सेठ असन मनखे हा, गाड़ी के नम्बर अउ बइठइया मन के नांव मिलाके गाड़ी ल भेजत जाय। दू बजत रहय ,कोनो पुछइया नइ रहय। पता चलिस कि दूल्हा के गाड़ी अउ परिवार मन घर तीर ले गाड़ी मा बइठ के चल दिस। तीन बजती लिखइया घलाव आखिरी गाड़ी मा बइठ के चल दिस।अब तो रमेसर के भूख अउ बाढ़गे।तुरते सायकिल धरके होटल गिस अउ एक पलेट चना भजिया खइस।एक घंटा पाछू सहर ले घर जायबर निकल गे।घर जाके गोसाइन ल सबो बात ल बताइस।
दूसर दिन टिकावन देय बर 6 बजे सहर जाय बर निकलिस।एक जोड़ी पायल बिसाइस।सहर के बीच इस्कूल के मइदान मा पंडाल सजे रहय।डीजे धमाधम बाजत रहय।अधिकारी,करमचारी,दुकानदार, पंच सरपंच, नेता मन आय रहिस।मोटर सायकिल अउ चार चकिया के गिनती नइ रहय। एक डहर बड़ेजान गेट बने रहय , ओती ले सब मन आना जाना करत रहय। हिम्मत करके रमेसर गेट कर गिस, ठउँका सेठ मिलगे। भीतरी डहर जायबर इसारा करीस अउ दुसर अवइया मन के सुवागत मा लग गे।रमेसर भीतरी के बिजली सजावट देखके खुस होगे।ये तो नवरात्रि के दुर्गा अउ देवारी के चकबक ला फेल कर दे हवय। फेर कचकच कचकच मनखे मन ल देख के अकबका गे।भीड़ मड़ई मेला ले ओ पार।साढ़े आठ बजत रहय, दूल्हा दुल्हिन के आरो नी हे।ऐती सब झन खड़े खड़े आनी बानी के मेवा मिठई पलेट मा धरके खात हे। जिंकर हाथ मा पलेट नइ हे ,ओ मन एती ओती पलेट खोजत किंजरत हे।




रमेसर टिकान दे के खाहूं कहिके खड़े रहिस।फेर भीड़ हे कि कम होय के नांव नइ लेवय। दूल्हा दुल्हिन मंच मा आइस तहान बड़े बड़े आदमी मनके लइन लगगे। फोटू खिचावत ,बिडियो सुटिंग करावत , हाथ मिलावत नीचे उतरय। सेठ हा दुलपुतरी असन बहू पाय रहय।इस्थिति ल देख के रमेसर के मंच मा जाय के हिम्मत नी होइस।अइसे तइसे करत गियारा बजगे, बेरा के पता नइ चलत रहय।फेर भूख घलो बाढ़त रहय।कोनों खाय पीये के हियाव करइया, पुछइया नइ रहय।साढ़े बारा बजे थोकिन भीड़ कम होइस तब रमेसर गमछा मा मुहुँ तोपे मंच मा चढ़िस अउ छोटे सेठ दूल्हा ल पायल धरा के तुरते नीचे उतर गे।फोटोग्राफर फोटू घलाव नइ खींच पाइस।
अब खाय के बेवस्था करे मा लगिस। धोवाय पलेट तो दिखत नइ रहय।जूठा पलेट मन गंजाम रहय।अबड़ अबड़ निकाले रहय अउ खायबर नी सके रहय।पलेट मा जूठा छोड़ दे रहय।एक ठन जूठा पलेट ल खुदे धोइस अउ कुछु निकालहूं कहिके घुमिस।जब खाय के जिनिस मन कर जाके देखिस तब आधा जगा के जिनिस सिरागे रहय।जेन जगा बाचे रहय उहां अतका भीड़ कि मिले के आस नी रहय।आखिरी डहर एक जगा थोक थोक दार अउ भात दू ठन बर बरतन मा बाँचे रहय। भगवान ल धन्यवाद देत दार भात निकाल के कोन्टा मा बइठ के खाहूं कहिके गिस।फेर भगवान ल कुछु अउ लीला करना रहिस।रमेसर एक काँवरा खाय रहिस कि हावा गरेर सुरु होगे।बिजली झप ले बुतागे।धुर्रा सबो दारभात मा भरगे।खाय के लइक नी बाँचिस।
जनरेटर ल सुरु करीस। दू चार बूँद पानी टपकिस तहान बंद होगे। परोसइया मन तब तक खाना के बरतन ल सकेल डरिस अउ मंच के खाल्हे मा टेबल कुर्सी लगाय लगिन। दूल्हा दुल्हिन ल परिवार,सगा सोदर संग बइठार के पुछ पुछ के मेवा मिठई खवाय अउ पइसा इनाम पावय।रमेसर दुरिहा मा खड़े खड़े पेट ल चपके सबो ल देखत रहय। मन मा गुनय सेठ मन घर के बिहाव अइसने होथे।तीन बजे के पारी मा सब खा पी के घर चल दिन।एती डीजे बंद होगे,पंडाल सुन्ना परगे।दू-चार झन पंडाल वाला मन बाँचिस, समान सकले बर।रमेसर अभी घर तो जा नइ सकय, दू ठन कुर्सी ला तीर के गोड़ लमा के बइठ गे। कब आँखी लटकिस ते पता नी चलिस।कुकुर के झगरा अउ भुँकई मा नींद खुलगे।झुलझुलहा मुंधियार रहिस।घर जाये बर बने बनही कहिके उठिस अउ सायकिल धरके घर चलिस।
गोसाइन उठ गे रहिस। चाय बनाय अउ कुछु खाय के जिनिस निकाले बर कहिके , रमेसर दतोन करेबर चल दिस।चाय पियत गोसाइन ला सबो किस्सा ल सुनइस अउ दूनो झन हाँस डरिस।बड़हर घर के बिहाव नेवता मा गरीब नेवतार मन ल अइसने होत होही।
दस दिन पाछू सेठ के दुकान जाय के मउका मिलिस।सेठ हा रमेसर ला देखते साट कहिस- मोर घर बिहाव मा काबर नइ आय रमेसर?
रमेसर चुप रहिगे। लेन देन आज ले चलत हे फेर सेठ ला ओ दिन के किस्सा ला बताबे नी करिस।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा, जिला-गरियाबंद