Categories
कहानी

सोनचिरई

इंकर रोवई-धोवई ल देखके कथे- अब रोय ले कोई फायदा नइहे। नबालिग उमर म बिहाव करे ले अइसने होथे- जच्चा अउ बच्चा के मउत।
ओ न्हारी सियारी सेकलाथे ताहन किसान मन के चोला ह हरियाथे। हरियाही काबर नहीं, काबर कि इही ओन्हारी-सियारी के बदौलत तो जिनगी ल संवारना रहिथे। बने सुकाल होगे त सोचे बिचारे काम बूता ल निपटाथें। कहुं दुकाल परगे त दुब्बर बर दु असाढ़ हो जथे।
दुरदेसी कका ह बेलौदी गांव के उन्नत किसान आय। छपराही के ऊपर म ओकर पांच एकड़ जमीन हे। भगवान के दे सुन्दर मोटर पंप घलो हे। धान ल लुथे ताहन अपन बारी म रमकेलिया, चुरचुटिया ल उपजा के कांदा-भाजी कस अपन जिनगी ल हरियाथे। एसो तो कका ह आधा एकड़ के रमकेलिया म बने कमाए रीहिसे। जेब डोभरा गे रीहिसे।
फागुन के महिना म कका-काकी के दुलौरिन बेटी सोनचिरई ह आठवीं के परीक्षा देवाय बर बखरी ले निकलिस त सोनचिई नइ जानत रीहिसे के मोर जिनगी के घलो परीक्छा होवइया हे। सोनचिरई ह कका के अंगोछ म रीहिसे। तेरा-चउदा साल के उमर म सोला कस दिखथ रीहिसे। डंग-डंग ले बाढ़ गे रीहिसे। संडुवा कांड़ी कस।
कका-काकी सुख-दुख ल गोठियावत रमकलिया ल टोरत गोठियावत रीहिन हे। यहू मन नइ जानत रीहिन हे कि रमकलिया ल का टोरत हन हमन बेटी के जिनगी ल टोरत हन।
कका कथे- सुन वो सोनचिरई के दाई, एसो धान-पान ओन्हारी-सियारी बने होय हे अउ रमकलिया म घलो बने भाव पाय हन। खाय बर धान हो जही अउ खरचा बर रमकलिया के पइसा ह। ओतना म काकी कथे- त का सोचत हव? कका कथे- मेंहा सोचत हवं, सगा आतिस ते एसो सोनचिरई के हाथ ल पिंवरा देतेन…। काकी कथे- महुं ह पहाती कन सपना देखत रेहेंव के दुनो जुग-जोड़ी गांठ जोड़े सोनचिरई अउ दमांद के टिकावन टिकत हन। टिकावन के बेरा म सगा मन गावत हें:-
इही धरम ले धरम हे वो
अ वो मोर दाई फेर धरम नइ तो पाबे वो…
इही धरम ले धरम हे ग
अ गा मोर ददा फेर धरम नइ तो पाबे ग…
ठउंका ओतने बेर सोनचिरई ल देखे बर बेटा वाले मन सोमनाथ ल धर के पहुंच गे। चाहा-पानी के पीयत ले सोनचिरई ह परीक्छा देवा के आगे। सोमनाथ ह सगा मन अंखियाथे- इही नोनी आय कहिके…। सगा मन एके घांव म मन कर लिस। लड़का घलो आय रीहिसे। ओकरो नजर म सोनचिरई ह झूलगे। सोमनाथ ह कथे- बोटी, सगा मन के पलागी कर ले। सोनचिरई ह सगा मन के टुप-टुप पांव परीस अउ सगा मन सोनचिरई ल पइसा धरावत गीन। सोनचिरई नइ जानत रीहिसे। के ये ह पइसा नोहे बल्कि बंधना ये बंधना। बिल्लस अउ फुगड़ी ल बिसरे के बंधन आय, मइके ल छोड़के ससुरार जाय के बंधन आय।
रिस्ता पक्का होय के बाद मातारानी हमर मनोकामना ल पूरा कर दिस कहि के जंवारा घलो बो डरिन। एकर बाद तो पूरा परिवार जंवारा के सेवा म बिधुन होगे।
जगमग जगमग हो
जग जोत जंवारा जगमग हो…
जगमग जगमग हा
जम जोत जंवारा जगमग जगमग हो।
रामनवमी के बाद सगई के तिथि ह तय होइस सरपंच के घर हा खइरखा डाढ़ करा दमदम ले खड़े हे। उही मेर स्कूल सांस्कृतिक भवन, बोरिंग अउ पंचायत भवन। पंचायत ल आदर्श पंचायत बनाय के सपना सरपंच के। सरपंच ह इही बात ल गुनत-गुनत बाजवट म चाहा पीयत रीहिसे। ओतके बेरा दुरदेसी कका ह सोनचिरई के सगई के नेवता दे बर पहुंचथे। दुरदेसी ह सरपंच के पांव परथे। सरपंच ह असीस दे के बाद किथे- बइठ दुरदेसी, बइठ। दुरदेसी कथे- आज नइ बइठंव सरपंच जी, आन दिन बइठहूं। आज थोकिन जल्दी म हवं।
सरपंच कथे- कहां जाथस तेमा, जल्दी म हस?
दुरदेसी कथे- परन दिन मोर सोनचिरई के सगई के ओकरे नेवता दे बर निकले हवं। आपो मन ल, सगई के नेवता हे। अतका ल सुन के सरपंच कथे- अब तो तोला चाहा पियाय बिना बिदा नइ करवं। दुरदेसी ह सरपंच के बात ल टार नइ सकिस अउ कलेचुप हामी भर के बइठ गे। चाहा के बनत ले दुनो झन गोठ बात म लगगें।
सरपंच पूछथे- त कहां के सगा आय? दुरदेसी बताथे-झेंझरी पथरिया के। सरपंच पूछथे- लड़का का करथे? दुरदेसी कथे- कुछु नहीं। सरपंच पूछथे- का पढ़े हे लइका ह? दुरदेसी कथे- कुछु नहीं। अतना म सरपंच ह कथे- लड़का ह पढ़े ये न लिखे हे। कमाय न धमाय अइसन म हमर सोनचिरई बेटी ल कइसे पोंसही? जवाब म दुरदेसी कथे- ये तो सब भगवान के लिखाय आय सरपंच जी। ब्रह्मा ह जिंहे बेटी के भाग लिखे हे उहें जाही। सुन के सरपंच कथे- अरे, परलोखिया कहिंके बेटी-बेटा के ब्रह्मा तो दाई-ददा आय। जइसन लिखबे उंकर भाग ह ओइसन लिखाही अउ सुन तो सोनचिरई का पढ़त हे? दुरदेसी कथे- आठवीं। सरपंच पूछथे- के साल के होय होही? दुरदेसी हा बताथे- सोनचिरई ह अभी तेरा-चउदा साल के होय हे। अतका ल सुन के सरपंच द दुरदेसी ल समझाथे- ये उमर ये कोनो बर बिहाव के। सोनचिरई अभी नबालिग हे ओला पढ़न-लिखन दे, खेलन-कूदन दे। ओकर बिहाव अभी झन कर। अतेक गरू होगे हे सोनचिरई ह ते मोला दे दे। मेंहा पढ़ा-लिखा के नौकरी लगा के ओकर बिहाव करहूं। फेर दुरदेसी कहां ले मानय। ढीठ किसम के ताय दुरदेसी ह। ओहा तो सोचत रीहिसे कि अपन बड़े भाई के बेटी के बिहाव के संगे-संग सोनचिरई के बिहाव घलो एके मड़वा म निपट जातिस ते खरचा ले बांच जातेन।
टिकली, फुंदरी के जोरा करत देख के सोनचिरई ह अपन दाई ल कथे- अभी मोर सगई झनकर दाई अभी में ह पढ़हू-लिखहूं॥ दाई ह ओला समझाती कथे-ले ना बेटी सगई भर ल होवन दे ताहन बिहाव ल कभू करत रहिबोन। फेर ये सगा ल नइ छोड़न। बने आठ-दस एकड़ के जोतन दार हे अउ फेर न देरान न जेठान राज करबे राज। तभो ले दाई अभी मोर सगई झन करव। अतका काहत दुरदेसी ह सुन डरिस। सोनचिरई ल खिसियावत कथे- नहीं त समधी के आगू म मोर नाक कटवाबे। सुन के सोनचिरई ह चुप रहिगे। जानो-मानो नारी पारनी चुप रेहे बर जनम धरे हे।
सगई म अक्ती भांवर ले बर दूनो पक्ष ह राजी होगे। फेर सोनचरिई ह उदास राहय। सोनचिरई के उदासी ल देख के ओकर दाई ह कथे- काबर उदास हस बेटी? नहीं दाई अभी मेंहा बिहाव नइ करवं। ओकर दाई ह कथे- लेना बेटी अभी तो बिहाबे भर करबोन गवना थोरे देबोन। फेर एक घांव महतारी के ममता के फांदा म अरहज गे।
बिहाव के नेवता बंटा गे। सब सगा सोदर मन नेवतागें। सगा मन सेकलागें। घर गंजमींज-गंजमींज लागे ल धरलीस। सगा मन तो खुस होके नेंग जोग ला निभावथे फेर सोनचिरई के उड़े के दिन म पांख कटावथे। गुन-गुन के सोनचिरई उदास रहे।
सोनचिरई ला उदास देख के सोनबती भउजी केहे ल धरलीस कइसे तो सोनचिरई ह उदास-उदास रहिथे। लगथे दमांद ल मन नइ करत होही। ओतना म सुकवारो कथे- नहीं… या ओइसन नइ होही। मोला अइसे लागथे कि सोनचिरई के काकरो सन चक्कर होही। इंकर गोठ बात ल सुनके ढेड़हीन ह काकी ल बताथे- देख ना सोनबती अउ सुकवारो ह अइसन-अइसन काहत रीहिसे कहिके। अतना म काकी कथे- काहन देना कहवइया ल। हड़ियां होतिस ते मुहड़ा ल परई म तोप देतेन फेर काकरो मुंह ल कामे तोपबो।
तेलमाटी, चुरमाटी होइस। ताहन अक्ती के दिन बरात अइस। पोंगा ह बिहाव गीद झोरत रीहिसे। एती सरी मंझनिया बरात परघाय के तइयारी होइस। सामाजिक बाजा वाले मन परघौनी पार बजावत हे। पर्रा म दु:खी, चाउर ल पिंवरा के हुम, अगरबत्ती अउ नरियर धर के परघाय बर गीन। घराती माइलोगन मन बराती मन ल झूल-झूल के भड़त हें:-
करर करर तोर मेछा ए सगा
करर करर तोर मेछा…
अइंठी मुरेरी तोर मेछा, ए सगा
करर करर तोर मेछा…।
परघौनी होय के बाद गोधुलि बेला म टिकावन के सुरुआत सोनचिरई के दाई-ददा ले होइस। दुरदेसी कका अउ काकी टिकावन टिकत-टिकत बोम फार के रो डरिन। आंसू के चित्रकूट ह रूके ल नइ धरय। महतारी बेटी के रोवई ल देख के मड़वा म बइठे सबो झन के आंखी ह डबडबा गे। एक झन दुलौरिन बर भारी रोइन कका-काकी मन।
आज ले हमर बर बेटी सगा होगेस बेटी ए…हें…हें।
काकी ल टिकावन टिके के बेरा मने मन लागत रीहिसे के पहाती कन जऊन सपना देखे रेहेंव वो हा आज सच होगे। सरपंच ह दुरदेसी ल समझइस-चुप राह दुरदेसी तैं तो कन्यादान करेके जल्दी बड़े जन पुन्न कमा डरेस काबर के कन्या दान ले बड़े दान कोनो नइ होवय।
दुरदेसी ह आंसू ल पोंछिस। ताहन सगा मन के बेवस्था म लगगे। टिकावन के बाद पंगत परीस। अधरतिया बराती मन के बिदा होइस। बेटी बिहाव बने-बने निपटगे। बेटी ल लेवाय बर चउंथिया गीन। लहुटे के बखत समधी महाराज कहि दिस-एसो हमन बहू हाथ के पानी पीबोन कहिके। आठ दिन बाद तुंहर दमांद ल गवना लेवाय बर पठोहूं।
एती गवना के तइयारी म काकी लगगे। फूल वाले सन्दुक,टिकली, माहुर, साबुन-सोडा तेल-फूल, फूल्ली खिनवा।
महतारी अपन बेटी बर जतना जादा हो सके ओतना जोरा म लगगे। जोरा ल देख के सोनचिरई कथे- काकर बर अतेक समान बिसावत हस दाई। काकी कथे- अउ काकर बर? तोर बर। अवइया हफ्ता तोर गवना कराय बर दमांद ह अवइया हे बेटी। सोनचिरई कथे- मेहा ससुरार नइ जांवव दाई। ओकर दाई ह मया के लेवना चुपरत कथे- लेना बेटी आठ पंदरा दिन के तो बात आय ताहन तोर ददा ह लेवाय बर आ जही। सोनचिरई ह जिद्द करथे- नहीं दाई मेंहा ससुरार नइ जांव। सोनचिरई के गोठ ल सुन के ओकर ददा ह कान म बगई खुसरे कस बगियागे। ससुरार नइ जाबे तो मोर मुंहु ल करिया करवाबे। सोनचिरई के जी ह रोनहुत होगे। सुसक-सुसकत कीहिस-तोर मुंहु ल करिया नइ करवावं ददा फेर मेहा ससुरार नइ जावंव। चाहे कुछु हो जाय। बाप-बेटी के तनातनी ल सुन के महतारी ह सोनचिरई ल ढाढस बंधाथे- राह बेटी, मेंहा तोर ददा ल समझावत हंव। अतका सुन के दुरदेसी बिफर गे। जानो मानो लाल लुगरा ल देख के गोल्लर बिफरथे तइसे। मोला समझाबे तुम दुनो समझिक समझा होवव। अउ सुन कहुं ये टूरी ह ससुरार नइ जाही त मेंहा फांसी अरो लेहूं फांसी।
सोनचिरई अपन ददा के मउत के डर ले रोवत-रोवत कहि दिस जाहूं ददा, जाहूं मेंहा ससुरार। ले दाई मोर पठौनी के तइयारी कर। आठ दिन बाद दमांद अइस अउ सोनचिरई ल उड़ा के लेगे। गांव भर के मन अपन दुलौरिन ल रुपिया दू रुपिया धरावत बिदा कर दिन।
असाढ़ म पानी पाय के बाद दुरदेसी ह अपन बेटी ल लेवा के लानिस। महतारी बेटी के सुख-दुख गोठियई म रात पहागे। बिहनिया काकी ह कका ल कथे- अब तेंहा आजा बबा बनइया हस, आजा बबा। जल्दी नाती खेलाबे। भगवान ह हमर बेटी ल जल्दी चिन्ह दिस। तीजा-पोरा मनाय के बाद बेटी ल दुरदेसी ह ओकर ससुरार पहुंचा दिस।
अइसे-तइसे अगोरा के दिन पुरगे अउ सोनचिरई ल पीरा जनाय ल धरलीस। धकर-लकर ओला दुरुग के सरकारी अस्पताल म भरती करइन। सोनचिरई ह पीरा म तालाबेली होवत राहय। जचकी निपटाय म भारी तकलीफ होवत रीहिसे। डॉक्टरीन ह पछीना -पछीना होगे रीहिसे। डॉक्टर मन घलो घबरागे। डॉक्टरीन कहिस आपरेसन के जरूरत पर सकथे। जल्दी से मुरली ले साइन करवा के डॉक्टरीन ह लेबर रूम म पहुंचीस। भारी मेहनत के बाद घलो डॉक्टरीन मन सोनचिरई अउ ओखर लइका ल नइ बचा सकिस। देखते-देखत पिंजरा ले सोनचिरई उड़ागे। डॉक्टर ह लेबर रूप ले बाहिर निकल के इंकर रोवई-धोवई ल देखके कथे- अब रोय ले कोई फायदा नइहे। नबालिग उमर म बिहाव करे ले अइसने होथे, जच्चा अउ बच्चा के मउत। लड़की के बिहाव कम से कम अठारह साल के बाद होना चाही। काबर की बालिग होय ले तन मन अउ कोख के विकास ह पूरा हो जथे।
डॉक्टरीन के बात ल सुनके सरपंच ह कथे- इही बात ल मेहा दुरदेसी ल पहिली ले समझाय रेहेंव, फेर नइ मानिस भकला।
दुरगाप्रसाद पारकर
केंवट कुंदरा, भिलाई

One reply on “सोनचिरई”

Comments are closed.