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कविता

हमर घर गाय नइए

हमर घर गाय नइए, अब्बड़ बडा बाय होगे।
द्वापर मं काहयं, लेवना-लेवना
कलजुग मं कहिथें, देवना-देवना
कोठा म गाय नहीं, अलविदा, टाटा बाय होगे।
हमर घर गाय नइए…
गिलास, लोटा धरे-धरे
मोर दिमाक आंय-बांय होगे
खोजे म दूध मिले नहीं,
लाल-लाल चाय होगे,
दूध टूटहा लइका ल जियाय बर,
बड़ा बकवाय होगे…
दूध बिन कहां बनहीं,
खोवा अउ रबड़ी
खाय बर कहां मिलही,
तसमई अउ रबड़ी
पीके लस्सी, जिए सौ साल अस्सी,
फेर अब तो तरसाय होगे…
कब वो बेरा आही
दूध-दही के नदिया बोहाही,
हे माखन चोर, सुन तो मोर
दूध-दही मं छत्तीसगढ़ ल बोर
मरत बेरा, मनखे ल, गाय के पूछी,
धराय बर, सबके आम राय होगे…
मकसूदन राम साहू ‘बरीवाला’
जागृति चौक बगदेही पारा
नवापारा राजिम