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गोठ बात

हमर हरेली तिहार


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हमर हिन्दू धरम मा बच्छर भर के पबरित महीना सावन ला माने गे हे। भक्ती, अराधना, आस्था अउ बिसवास के पावन महीना सावन हा कहाथे। असाढ़ महीना हा जेठ के जउँहर जीवलेवा गरमी ले अधमरा अउ अल्लर परे जम्मों जीव जगत ला हबेड़ के उठाथे। सावन महीना धूमधाम ले आके सबो परानी मन के तन मन के पियास ला बुझाथे। सावन महीना सुग्घर रिमझिम फुहार ले खुशी के बिरवा ला पोसथे। चारो खूँट धरती दाई के कोरा हा हरियर-हरियर भर-भर दिखे ला धर लेथे।



जेठ के जबरहा घाम ले सबो परानी तन अउ मन ले लेसाय, झँउहाँय परे रथे। बरसा के चउमासा असाढ़, सावन, भादो अउ कुवाँर मा बादर जम के बरसथे। असाढ़ मनखे ला करम के पाठ पढ़ाथे। सबले जादा असाढ़ सावन के अगोरा हमर माटी के मितान अनदाता किसान मन ला होथे। बिन सावन के सरी संसार हा सुन्ना लागथे। सावन के बिना सबो के जिनगानी हा अबिरथा लागथे। हमर जिनगी के रखवार सावन महीना हा होथे। इही सुखदेवा सावन के संग मा खुशी अउ आस के बरसा हा संघरा संचरथे। एखर संगेसंग सावन के पबरित महीना मा तीज-तिहार के बहुतेच बढ़िया सुरुवात हो जाथे। इही पावन सावन महीना मा हमर छत्तीसगढ़ मा बच्छर के पहिलावँत तिहार हरेली हा घलाव हरियावत आथे। हरियर हरियर हरेली तिहार सबो झन बर खुशी के बरसात लाथे। ए हरेली तिहार हा जतका खुशी, उछाह, नवा उरजा अउ नवा जोस के तिहार हरय वोतका आस्था, बिसवास, परम्परा अउ अंधबिसवास के तिहार घलो हरय। वइसे तिहार हा मूल रुप मा मनखे के मन के खुशी अउ उछाह ला देखाय के एकठन उदिम हरय।
जब सावन के पबरित महीना मा धरती दाई के हरियर-हरियर अँचरा हा लहराथे ता सावन अमावसिया के दिन सुग्घर हरेली तिहार ला मनाथें। ए हरेली तिहार हा पुरखा के परमपरा ला पोठ करे के खाँटी देसी उदिम हरय। असाढ़ अउ सावन के आये ले जाँगर टोर कमइया कमिया किसान बर खाय-पीये के फुरसत घलाव नइ मिलय, बेरा-कुबेरा खवई-पियई चलथे। सावन के अधियावत ले खेती-किसानी के बुता-काम बोवाई-बियासी हा सिरा जाथे या फेर सिराय ला धर लेथे। अपन जाँगर अउ नाँगर संग सहमत देवइया सहजोगी मन ला मान अउ आदर दे बर हरेली तिहार ला सिरजाय गे हावय अइसन लागथे। किसानी मा काम अवइया जम्मों अउजार मन के संगे-संग भँइसा, बइला अउ गाय-गरवा मन ला नहा-धोवा के पूजा-पाठ करे के सुग्घर परंपरा हे ए तिहार मा। उँच अउ सुक्खा जघा मा मुरुम दसा के जम्मों किसानी के अउजार ला धो-पोछ सफा करके गुलाल, बंदन, चंदन-चोवा लगा के सदा संग साथ दे के आसीरबाद माँगे जाथे। संगे संग संगवारी बन के संग दे बर सादर धन्यवाद घलाव दे जाथे। हूम-धूप, अगरबत्ती जला के गुरहा गुरतुर चीला चढ़ाय के सुग्घर परमपरा हावय। नरियर फोर के परसाद बाँटे जाथे। किसान के किसानी मा सहजोगी पसुधन के मान-गउन इही दिन होथे। पसुधन ला नहा-धोवा के पूजा-पाठ करके इँखर बर जंगली जरी-बूटी, कान्दा अउ हरियर साग-भाजी ले बने खिचरी ला खवाय के परमपरा हावय। ए खिचरी हा पसुधन मन ला रोग-माँदी ले बचाय मा सहायक होथे। ए दिन इँखर रहे के ठउर कोठा के खँचवा-डीपरा ला पाट के बने बरोबर चुकचुक ले लीप बहार के साफ सुथरा कर दे जाथे। जरी बूटी ले बने खिचरी ला खवा के इही सफा जघा मा दिनभर बर बाँध के राखथें। ए दिन बाहिर भाँठा चारा चरे बर पसुधन मन ला नइ जान दँय। किसानी मा किसान के हाँथ-पाँव इँखर पसुधन अउ किसानी अउजार हा होथे। इँखर मान-गउन अउ सुरक्छा के बेवसथा ए तिहार के असल उदेश्य हरय।



हरियर-हरियर हरेली तिहार हा छत्तीसगढ़ के रग-रग मा बसे हे, रचे हे। एखर असल रंग हमर गाँव-गँवई मा सबले जादा देखे ला मिलथे। गाँव-गँवई के रहइया, खेती-किसानी कमइया हमर किसान भाई मन बर ए तिहार हा बड़ हाँसी-खुशी, उछाह अउ सरधा, बिसवास जताय के पबरित परब हरय। हरेली तिहार के दिन बड़े फजर ले तरिया-नँदिया मा असनाँद के अपन खेती-किसानी मा मदद करइया जम्मों अउजार मन ला धोथे-माँजे जाथे। खेती-किसानी के कारन सबके घर मा चूल्हा बरथे, जम्मों जीव-जगत ला दाना-पानी हमर किसानी ले मिलथे। इही सोच-समझ के किसान अपन किसानी के संगवार नाँगर, बख्खर, कोपर, रापा, चतवार, कुदारी, हँसिया, टँगिया, बसुला, पटासी, बिंधना, साबर काँवर अउ सबो समान जौन किसानी मा काम अवइया हर जीनिस के हियाव करके ओखर उचित मान-गउन पूजा-पाठ करथे। गुर अउ चाँउर पिसान के बने चीला, चौसेला, खीर ला सबो जीनिस मन मन ला भोग लगा के नरियर फोरे जाथे। हरेली ला नाँगर तिहार घलाव कहे जाथे। पूजा-पाठ के पाछू घर के लइकामन बर बाँस के गेड़ी साजे जाथे। लइकामन हा गेड़ी चढ़हे बर लकलकात रहिथें। गेड़ी मा चढ़के लइका जवान मन हा बड़ खुश हो जाथे। लइकामन एखर सेती ए तिहार ला गेड़ी तिहार के नाँव ले जादा जानथे। गेड़ी चढ़हे के पाछू मानता हे के सावन के आये ले, बादर के बरसे ले चारो खूँट चिखला मात जाय रथे, पानी भर जाथे। इही चिखला-पानी ले अपन ला बचाय के एकठन उदिम के रुप मा गेड़ी के चलन सुरु होय हावय अइसन मोला लागथे। सवनाही चिखला ले बाँचे के साधन के रुप मा गेड़ी के खोज हरय जउन खेल अउ सउँख के जीनिस बन गे। हरेली तिहार हा नवाबच्छर के पहिलावँत तिहार होय के सेती ए दिन लइका, जवनहा अउ सियान जम्मों झन मा नवा उरजा, नवा उछाह हा जबर झलकथे। इही उमंग अउ उछाह मा हरेली के दिन आनी बानी के खेलकूद अउ मनोरंजन के अयोजन दिन भर होवत रथे। हरेली के दिन जुरमिल के गुल्ली डंडा, खो-खो, फुगड़ी, बिल्लस, कबड्डी, खुरसीदउड़, डोरी कुदउल, दउड़ अउ गेड़ी दउड़ के संगेसंग रंग-रंग के बाजी लगाके नरियर फेकउला होथे। सुमता के दरशन हरेली तिहार के खेल अउ खेलाड़ी मा देखे ला मिलथे। हरेली के दिन गाँव भर मा जम्मों झन जोश अउ उछाह ले छलकत रथें। चारो खूँट धरती दाई के अँचरा ला हरियाय देख के मनखे के तन मन हा घलो उलहा पाना सरीक हरिया जाथे। सावन के सवनाही पानी परे ले जिनगी घलो नवा जोश अउ उमंग ले भर जाथे। हरियर परकीति ला देख के मन घलो मगन हो के झूमे नाचे ला धर लेथे, खुशी मनाय ला धर लेथे अउ अपन इही खुशी ला देखाय के माधियम होथे अइसन तीज-तिहार के अयोजन।
हरेली के दिन हमर गाँव-गँवई मा सबले पहिली अपन गाँव के देबी-देवता मन के मान-मनउव्वल, पूजा-अरचना करे जाय के बिधान हावय। गाँव ला कोनो परकार के रोग-राई, अलहन अउ परसानी ले बचाय खातिर ग्राम देवता के मान-गउन गाँँव के बइगा हा करथे। खेती-किसानी मा किसान के सबो सहजोगी मन घलो हरेली के दिन अपन-अपन बुता करे मा भिड़ जाथे। गाँव के राउत भाई मन हा गाँव भर मा जम्मों घर के सिंग दुवार मा लीम डारा ला खोंचथे। संगे-संग लोहार भाई मन सिंग दुवारी के चौखट मा लोहा के खीला ला ठोंकथे। हरेली के दिन गाँव के बइगा गुनिया अउ राउत पहाटिया मन हा पानी बरसात के बेमारी ले बचाय बर मनखे अउ मवेशी मन बर दसमूल कान्दा, बनगोन्दली अउ गहूँ पिसान के लोंदी के संग खम्हार पान ला अण्डा या फेर बगरण्डा पान संग खाय अउ खवाय बर देथे। ए उदिम मनखे अउ मवेशी मन ला रोग माँदी ले सुरक्छा करे खातिर करे जाथे। हरेली आय के आगू सावन महीना मा गँवई-गाँव मा अपन-अपन घर ला कोनो अलहन अउ अहित ले बचाय खातिर घर के बाहिर भिथिया मा गोबर ले हाथ के अंगरी मन ले सोज लकीर खींचे जाथे। ए सोज लकीर खिंचई हा एक परकार के सुरक्छा घेरा माने जाथे। गोबर के सोज्झे रेखा के संगे-संग मनखे के परतिक चिन्ह, सेर, गाय, बइला अउ आनी बानी के परतिक चिन्हा ला देवाल मा लिखे जाथे। अइसन घर-परवार अउ पसुधन ला कोनो नकसान ले बचाय बर करथे।
हरेली तो हरियर-हरियर चारो मूँड़ा बगरे हरियाली ला देख के अपन खेत-खार, धनहा-डोली मा धान के हरियर नान्हे पोठ पउधा ला देख के हरसाय के तिहार आय। हरियर-हरियर परकीति मा बगरे, सँवरे हरियर रंग हा मनखे मन ला घलो खुशहाली के हरियाली मा भर देथे। आँखी अउ मन मा हरियर रंग समा जाथे। इही हरियर रंग के सुग्घराई के सेती ए तिहार के नाँव हरेली परे हावय। हरेली तिहार हा बिसेसकर गँवई-गाँव अउ जंगलिहा राज मा जादा जरी जमाय हावय, सहर मा हरेली नंदावत हावय।



. गँवइहा जन जीवन के नस-नस मा लहू कस बोहावत ए हरेली तिहार हा आस्था अउ बिसवास के संगेसंग अँधबिसवास के घलो चिन्हउटा हरय। ए तिहार संग जतका मनखे मन के आस्था अउ विसवास जुरे हे ओतके टोटका, जादू-टोना अउ जन्तर-मन्तर के अँधबिसवास घलो भरे हावय। सावन अमावसिया, भादो अमावसिया, कुँवार अमावसिया अउ कातिक अमावसिया के दिन हा जन्तर-मन्तर अउ तन्तर बर बड़ शुभ माने गे हे। सावन अमावसिया के रतिहा हा सिद्धी अउ उपासना बर सबले जादा महत्तम रखथे। हरेली के दिनमान हा हाँसी-खुशी अउ खेल-तमाशा मा बित जाथे फेर रतिहा बेरा जंतर-मंतर के अनैतिक खेल हा शुरु हो जाथे। हरेली के रतिहा हा बइद, बइगा, जदुवा-टोनहा अउ टोनही जइसन साधना करइया मन बर बरदानी रतिहा माने गे हे। इही दिन कई ठन गँवई-गाँव मा नगमत साधना घलाव करे जाथे जौन हा साँप काटे के ईलाज ले संबंधित हावय। अइसन गोठ के कोनो अधार नइ रहय। जिहाँ असिक्छा अउ अगियान के अँधियारी छाहित हे उँहे अइसन अँधबिसवास हा जादा फूलथे-फरथे। गियान के अँजोर ले भरम अउ अँधबिसवास के जरी जर जाथे। एखर संगे-संग ए तिहार मा आज आधुनिकता के नाँव मा मंद-मँउहा अउ माँस के चलन भारी बाढ़ गे हे। गाँव मा तो हरेली के दिन माहोल हा मतवार मन के लायक बढ़िया रहीथे। हरेली ला गाँव मा लोगन मन हा छोटे होरी के नाँव ले घलाव जानथे। होरी जइसन पीये-खाय भकुवाय परे रथे हरेली तिहार के ओखी करके। नंदावत हरेली के परंपरा ला आज पोठ करे के जरुरत हावय। आधुनिकता के भेंट चढ़हत हमर आस्था अउ बिसवास ला बचाय के उदिम हमला अपन अवइया नवा पीढ़ी बर करना चाही। बच्छर के पहिली तिहार ला हाँसी-खुशी, सुमता-सुलाह अउ उच्छल मंगल ले मनाना चाही। खुशहाली के हरियाली मा अगियान अउ अँधबिसवास के अबरबेल हा सुग्घर समाज बर बने बात नो हे। हरेली तिहार के हरियर-हरियर, सुग्घर-उज्जर रीति-रिवाज ला पुरखा के परंपरा मान के एला पोठ करे के सरी उदिम आज समाज ला करना चाही। हरेली तिहार हा काखरो सुवारथ साधे के, कोनो के अहित करे के, कोनो ला दुख-पीरा दे के तिहार बिलकुल नो हे। टोनही-टोनही, ठुआ-टोटका मन हा सिरिफ मन के भरम आय अउ कुछू नो हे। असिक्छा, अगियान अउ अँधबिसवास हा कोनो देस अउ समाज बर कभू हितवा नइ हो सकय। हरेली हा इही संदेश देथे के हाँसी-खुशी मन मा हे ता सरी दिन हरेली होही। अंतस मा गियान के हरियाली हा असल हरेली कहाथे। इही असल हरेली ला सरी संसार भर मा बगराय के जतन करना चाही।

कन्हैया साहू “अमित”
परशुराम वार्ड-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9753322055

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