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कहानी

हमर होरी – कहिनी

काय करबे बिधाता के आघु मा काकरो थोरे चलना हे। जिनगी के मरम ला निभाना हे। तब रोवत होय ते हासत जिये बर परही। अइसने जेकर करम हा फुटहा रिथे तेहर होस संभाले तहाने जियत भर ले मुड़ धरके रोवत राह। कतको कमा ले पईसा-कौड़ी भरे-भरे परवार के रहात ले घलो जिनगी मा कोनो न कोनो भुगता ले उबरना नी होवय। अइसने कोनजनी बिचारा अतुल। येकर भाग में काय लिखाय हावे ते। अपन दाई-ददा अउ भाई-बहिनी सबो ल अपन आघु मा गंवात देखिस फेर काय कर सकत रिहिस। वोतका ला अपन बस मा कर लेतिस त काबर अइसे होतिस। पांच बछर के लईका अतुल जेनहा अपन ला सम्हाले के लईक नईहे त काय कर सकही। अपन आंखी के आघु में जेन होवत हे तेनला असहाय बरोबर देखत राह।
दाई-ददा ह तो नंगा गेहे फेर लरा-जरा मा कका-काकी, दादा-दादी एको झन तो होतिस। कथें निही जेकर कोनो नी होय तेकर देखैय्या तो भगवान होथे। ये गोठ हा अतुल ऊपर घलो उतरत हे।
अतुल के घर में एक झन सियानिन दाई रहाय। वोकर कुरिया मन बाड़ा बरोबर रहाय। बिचारी के कोनो मरे रोवैय्या नी रहाय। कोनो खवैय्या न पियैय्या। एक झन बेटा तेनहा सहर म अपन परवार धरके रहाय। एक झन बेटी ससुरार चल देहे कभू कभार किंजरे बरोबर आथे। येकरे सेती अतुल के करलई ल देखत सियानिन हा अपन तीर ओधा डरे हे। उमर के देखत चले फिरे के लईक नी रही गे हे। बईठथे तेकर ले उठन नी सके। लईका बर ये घर हा रहे अउ खाय-पिए के आधार भर आय। लईका अउ सियान दूनों एक दूसर बर असहाय बरोबर हावें। फेर काय करबे वोतका भगवान बरोबर सहारा देने वाला घलो कोनो नइहे। जिनगी के गाड़ी चलत भर हे।
लईका हा अतक सहमे हावे के मुहु ले भाखा तक बरोबर नी निकलत हे। बिचारा घर ले निकलथे त अपन घर के परछी जाके बईठ जाय। सियानिन के घर के आघु में अतुल के घर हा हावे। सियानिन हा रखवार बरोबर अपन घर के मुहाटी ले अतुल ला देखत रहाय। पारा-परोस के लईका मन खेले फेर कोनो लईका के नजर हा अतुल ऊपर नी परे। पहिली घर हा सुग्घर अकन दिखे। दाई हा रहाय त, तीज-तिहार मा लिपे-पोते। घर ला खुटियाय बिगर नी रहाय। तेकरे सेती घर ह बाराें महीना उार दिखत रहाय। अब ये घर हा उजर परछी भर बाच गे हे। येहू कब तक साथ दिही ते कोनजनी।
तिहार बार काय होये तेनला अतुल ला कभू कभार सुने ल मिल जथे फेर येकर अहसास कराने वाला घलो कोनों नइहे। इस्कुल जाय के लईक नी होय हे। थोरिक बाहरी कुछु के गियान मिलतिस दे। ददा हा अब्बड़ मया करत रिहिस अतुल ला, दाई घलो अपन छाती म ओधा के रखे रहाय। उही सुरता ला करत हो सकत हे अतुल हा अपन घर के परछी मा बईठे बर जात होही।
हर बछर सही येहू बखत होरी तिहार लठियागे। जेवन होय के बाद नौजवनहा मन फाग गाय के मजा लेवत हें। लोग लईका मन देखे बर जाथे। अतुल ला घलो फाग गीत देखे के सउख लगत हे। वोकर ले रही नी गिस त सियानिन दाई ला किथे, ‘दाई’ चलना बाजा देखे बर जाबो। दाई हा सुनथे त अईसे लगथे चल भई नानचुन लईका के मन जागिस तो। अपन मुरदा तन म जान आ जथे। चल बेटा जाबो कहिके तियार हो जथे। लहुटती खानी दूनो के खुसी के ठिकाना नी रहाय। अंधियारी रसता मा धीर-धीर आवत रिहिन।
घर के मुहाटी मा दाई के गोड़ छरन दिस त बिचारी गिरगे। खटिया मा परगे। इलाज पानी चलत हे थोरिक हात-गोड़ चलत रिहिस उहू हा जुवाब दे दिस। तिहार के एक दिन जगा-जगा होरी जलत हे, नंगारा बाजत हे, रंग गुलाल उड़त हे- सबे मगन होके नाचत-कूदत हें, अतुल घर के मुहाटी ले देखे के उदीम करत हे फेर कुछु नी दिखत हे। अउ उही कर वोकर नींद परगे। बिहनिया उठिस त देखे गली मा रंग गुलाल उड़त हे, लोग लईका पिचकारी मा रंग मारत हें, सियान मन एक दूसर ला गुलाल लगात हे, फाग गीत संग होरी खेलत नंगारा बाजत हे। लईका अतुल ला काय होवत हे तेनहा समझ ले बाहिर हे गुनत एक टक देखत हे वोला अतका समझ आ गे हे के मोर किसमत मा मर-मर के जीना लिखाय हे लोगन के जिय मा आंखी मुंदा जाय रिथे त कुछु नी दिखे। मैंहा सब कुछ देखैय्या-सुनैय्या होके कुछु देख सुन नी सको। मोर दाई-ददा ल मोर ले नगाने वाला ला का मिलिस? का येकर ले उंकर आतमा जुड़ागे? का र्इंकर कोनो देखने वाला नइहे? इही सवाल जवाब ला अपने मन करत हे भूख लगिस त दाई मेर जाथे उहू हा खटिया मा परे अपन भाखा ला सबर दिन बर थाम लिस। लईका हा जान डरिस मोर दाई हा घलो मोर संग नता टोर डरिस। मोर तो अब कोनो नइहे कहिके मनखे के अतक भीड़ मा अतुल हा कहा गंवागे तेकर आज ले कोनो हा आरो नी लिस।
दीनदयाल साहू
माडल टाऊन,
नेहरू नगर भिलाई