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कहानी

खूंटा म साख निही, गेरवा के का ठिकाना




तइहा तइहा के गोठ। धरमतरई तीर नानुक गांव धंवराभांठा, जेमे रामाधीन नाव के मनखे रहय। ओकर दू झिन बेटा आशा अऊ कातिक। परबतिया अऊ रामाधीन अपन दूनों लइका ल एके बरोबर पालीन पोसीन अऊ एके बरोबर सिकछा दीकछा घला दीन। काकर दई ददा जिनगी भर साथ निभाथे, रामाधीन सरग चल दीस। समे बीते ले, लइका मन के कारोबार घला अलग बिलग होगे। परबतिया अपन छोटे बेटा कातिक तीर रहिके, समे समे म सियानी रसदा सिखावत पढ़हावत बतावत रहय। कातिक घला, पूरवज के रीत रेवाज अऊ सनसकार ल, एकदमेच अंगिया डरे रहय। दूसर कोती आसाराम कुसंगत म परगे, अऊ जादा पइसा कमाये के फेर म उलटा पुलटा बूता घला करे लागीस। समे समे म दाई बरजे, फेर जेला पइसा के धुन सवार हे ते, काकर सुनही। एकरो मन के जवानी नहाक गे, बुढ़ापा हमागे। अभू न जांगर चलय न जंगरौटा। बइठे बइठे खाये के समे आगे।

दूनों भई के लइका मन घला कमाये ल धर लीन। कातिक के लइका कातिक सही अऊ आसा के लइका मन आसा सही। बलकी आसा के लइका मन तो ओकरो ले दू डेंटरा उपराहा निकलगे। एमन जुंआ चित्ती मंद मउहा ले अऊ ऊप्पर नहाकगे। दई बहिनी मन के गली खोर म निकलना अऊ रेंगना मुसकिल करदे रिहीन। एक कोती ददा आसाराम के जमा पइसा ल पानी कस बोहावत हे, त दूसर कोती उही ल बीड़ी बर तक तरसावत रहय। आसा के दुरदसा ल देख बियाकुल रहय दाई अऊ भई।

रामकुमार नाव के भागवती पनडीत के डेरा परीस धऊंराभाठा म। सांझ होत जिंहा मंद मऊहा, जुआ चित्ती के बिसात बिछय, अभू उही रामबांड़ा म गीता, रमायन अऊ भागवत के किस्सा कहिनी सुरू होगीस। गांव के माहोल सुधरे कस दिखत हे। फेर आसा के टूरा मन ल अकल नी अइस। परबतिया अपन बड़े बेटा के दुख ल महराज करा गोहनइस। आसाराम जनमजुग रमायन भगवत म नी गे रहय, महराज के भजन परबचन म जाये के हिम्मत नी करीस। ओकरे घर जाये के बिचार कर डरीस महराज। समे तिथी तय। तियारी सुरू। आसा के सुआरी सफरा लाजे काने महराज के आगमन के तियारी सुरू कर डारीस।

बड़े जिनीस अंगना , कटकटऊंवा भीड़। पहिली बेर महराज काकरो घर के दुआरी म पांव मढ़ाए रहय। बाजवट म बिछे कमरा के आसन म बिराजमन होये के पाछू , गायतरी मनतर ले महराज के परबचन सुरू होगे। महाभारत के कथा चलत रहय। कऊंरूं – पानडू के चरचा, महाभारत होये के कारन बतावत कहत रहय महराज – धिरीतरास्ट खुदे बने रितीस , त अपन लइका जुरजोधन ल बरज सकतीस। अपन पूरा बंस के सरबस नास के जुम्मेवार , खुदे उही आय। भगवान किरीस्न जम्मो बात ल जानत रहय, ऊहू जुद्ध ल छेंके रोके के बड़ परयास करीस, फेर जेकर सियान मजबूत नी रही ते काला अपन सनतान ल हरखे बरजे सकही। जे खुद अनुसासित नी रही, तेहा कइसे अपन लइका मन ल अनुसासन म राख सकही। कथा सिरागे, आरती पूजा के पाछू चहापानी घला निपटगे।




महराज चल दीस। अंगेठा तापत चरबत्ता चलत हे आसाराम, कातिक, पटीला अऊ सुंदरू नऊ के। लाल चहा देखीस, त आसा भड़कगे सफरा बर। अतका कस गाय दुहाथे , तभो लाल चहा ? अरे झिन पूछ कका, तुंहर गाय आज दुहायेच कहां हे ? कातिक कका घर ले दूध नी आतीस ते, महराज तको लाले चहा पीतीस – फिरंगी रऊत गोठियात खुसरीस। परसार म गाय अऊ बछरू अलग अलग कोठा म बंधाये रिहीस, फेर दुहे के बेर गेंव त देखेंव के, गाय बछरू एके जगा सकलागे हे। गाय अपन खूंटा ल उखान डरे रहय। वा … , बछरू तीर गाय कइसे अमरही ? बछरू कोठा के फइरका निच्चट नानुक हे। निही कका, बछरू कोठा के फइरका के आगू गाय ल खड़े देख, बछरू घला उदेली मारीस होही, उहू अपन गेरवा ल टोर टार के गाय करा पहुंचगे, अऊ पी डरीस चपर चपर दूध।

पटिला कहत रहय – खूंटा मजबूत नी रिहीस होही , तभे उखन गे। दूसर कोती खूंटा उखान के गाय ल अपन तनी आवत देखीस होही त, बछरू घला जोर मार के गेरवा ल टोर डरीस होही। वा ….. महराज किहीस तइसने कस किस्सा होगे गा – सुंदरू नऊ टप्प ले चुटकी मारीस। पटिला मुहूं फार के देखत पूछन लगीस – कइसे …? वा तहूं कहींच नी समझस पटिला भइया, खूंटा माने मुखिया, ओहा सजोर रही, त अनुसासन कायम रही, तभे परिवार बंधाये रही , परिवार समटाये रही, निही ते फजित्ता ताय गा ….. , गेरवा कस फुसकाहा उसकाहा लइका बाला मन, दई ददा के काये मान रखही, कातिक के इसारा आसा भइया तनी रहय। सही बात आय भइया …. “ जब खूंटा म साख निही, त गेरवा के काये ठिकाना “ सुंदरू नऊ के मुहूं ले निकल गे उदुपले। आसाराम समझगे, सुधरगे , लइका मन घला, भटके लइन रसदा ल छोंड़ छांड़ के, बने बने काम बूता म लगगे। फेर कमजोर, रसदा भटकइया मुखिया के सेती, बिगरत बिखरत परिवार बर, सुंदरू नऊ के येदे गोठ ठेही अऊ हाना बनके, बेरा बेरा म, गोठियात बतावत सुनत, अभू घला मिल जथे ….।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा