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कविता

हाय रे मोर गुरतुर बोली

मोर बोली अऊ भाखा के मय कतका करव बखान,
भाखा म मोर तीरथ बरथ हे जान ले ग अनजान।
हाय रे मोर गुरतुर बोली,
निक लागय न।
तोर हँसी अऊ ठिठोली
निक लागय न।

मोर बोली संग दया मया के,
सुग्हर हवय मिलाप रे।
मिसरी कस मिठास से येमे,
जईसे बरसे अमरीत मधुमास रे।

ईही भाखा ल गूढ़ के संगी,
होयेन सजोर,सगियान रे।
अपन भाखा अऊ चिन्हारी के,
झन लेवव तुमन परान रे।

मुड़ी चढईया भाखा ल आवव,
जुरमिर के फरियातेन।
सूत उठ के बोलतेन सबले पहिलिच
राम राम ग।
मन हरियाही,तन हरियाही,
हरियाही बोली बेवहार ग।

जय जोहर, जय छत्तीसगढ़ के,
अईसन करबो गोहार रे।
थके हारे मनखे मन के,
भगा जही पीरा संताप रे।

सिरतोन सिधवा उखरा मोर बोली,
दया मया के,
सुग्हर हयव मिलाप रे।
हाय रे मोर गुरतुर बोली,
निक लागय न।
तोर हँसी ठिठोली, निक लागय न।

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (जिला-रायपुर)