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छंद दोहा

हे गुरु घासीदास – दोहालरी

पायलगी तोला बबा, हे गुरु घासीदास।
मन अँधियारी मेट के, अंतस भरव उजास।

सतगुरु घासीदास हा, मानिन सत ला सार।
बेवहार सत आचरन, सत हे असल अधार।

भेदभाव बिरथा हवय, गुरु के गुनव गियान।
जात धरम सब एक हे, मनखे एक समान।

झूठ लबारी छोड़ के, बोलव जय सतनाम।
आडंबर हे बाहरी, अंतस गुरु के धाम।

चोरी हतिया अउ जुआ, सब जी के जंजाल।
नारी अतियाचार हा, अपन हाथ मा काल।

जउँहर जेवन माँस के, घटिया नशा शराब।
मानुस तन अनमोल हे, झनकर जनम खराब।

मुरती पूजा झन करव, पोसव बइला गाय।
पशुसेवा सत आसरा, जिनगी सफल बनाय।

एती-तेती झन भटक, सत के रद्दा सोज।
सत मारग भगवान के, हिरदे भीतर खोज।

सदा रखव सब सादगी, तन-मन के ए शान।
सादा जीवन खास अमित, गुरु के सेवा जान।

पंथी सत के बन अमित,गुरु ले कर गोहार।
भूलचूक करही छमा,सतगुरु जय जोहार।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक
भाटापारा (छ.ग.)
संपर्क – 9753322055
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