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कविता

होली आवत हे

आगे बसंत संगी,आमा मऊरावत हे
बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे ।

कुहू कुहू कोयली ह,बगीचा में कुहकत हे।
फूले हे सुघ्घर फूल, भंवरा रस चुहकत हे।
आनी बानी के फूल मन,अब्बड़ ममहावत हे।
बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे।

लइका मन जुर मिल के, छेना लकड़ी लावत हे।
अंडा के डांग ल,होली में गड़ियावत हे।
नाचत हे मगन होके, फाग गीत गावत हे।
बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे।

डोरी ल लमाके सबो, रसता ल छेंकत हे।
कोन आवत जावत तेला, सपट के देखत हे।
भुलक के झन जाय कोनों, जोर से चिल्लावत हे
बाजत हे नंगाड़ा अब, होली ह आवत हे।

पारा भर के लइका मन,एके जगा सकलावत हे।
रंग रंग के गाना गाके, गुलाल ल उड़ावत हे।
बबा ह बिधुन होके, होरी गीत गावत हे।
बाजत हे नंगाड़ा अब, होली ह आवत हे ।

आगे बसंत संगी ,आमा मऊरावत हे।
बाजत हे नंगाड़ा अब, होली ह आवत हे ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com