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ग़ज़ल : सुकवि बुधराम यादव

Budhram_YadavGhazal_Budhram Yadav

सुर म तो सोरिया सुघर – सब लोग मन जुरिया जहंय
तैं डगर म रेंग भर तो – लोग मन ओरिया जहंय
का खड़े हस ताड़ जइसन – बर पीपर कस छितर  जा
तोर छइंहा घाम घाले – बर जमो ठोरिया जहंय
एक – दू मछरी करत हें – तरिया भर ल मतलहा
आचरन के जाल फेंकव – तौ  कहुं फरिया जहय
झन निठल्ला बइठ अइसन – माड़ी  कोहनी जोर के
तोर उद्दीम के करे – बंजर घलव हरिया जहय
देस अऊ का राज कइठन – जात अऊ जम्मो धरम
सुमत अऊ बिसवास के बिन – जब कभू छरिया जहंय
नई पराये ल तैं  जाने – अऊ न अपने ल सही
एक दिन अनजान तन ये – माटी म तरिया जहय
नाग नाथे म कन्हइया – कस भले करिया जहव
ये नगर के मनुख तो – थोरकुन गोरिया जहंय
जीये के जत्तर-खतर – अब तो जतन ‘बुध’ तियाग दे
नई तो छिन म तोर कद ह – धुर्रा म धुरिया जहय।
बुधराम यादव, बिलासपुर
09755141676