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व्यंग्य

18 मई बट सावितरी पूजा विसेस : सत्यवान के खोज (बियंग)

नगर म हलाकान परेसान माईलोगिन के दुख नारद ले नी देखे गिस । जिनगी म सुख भोगे के रद्दा बतावत किहीस के, जेठ मास अमावस तिथि के बड़ रूख के पूजा करे बर लागही । त भगवान सिव जी परसन्न हो जही, अउ तोर जिनगी म सत्यवान वापिस लहुट जही, अउ जेन सुख के आस हे, ते पूरा हो जही ।
कुछ बछर पाछू, उदुप ले, उहीच माईलोगिन ले नारद के फेर भेंट होगिस । नारद ओखर ले कुछु पूछतिस तेकर ले पहिली, वो माई खुदे केहे लागिस – तेंहा अच्छा फंसाये नारद जी, सत्यवान मिल जही कहिके । सरकारी नउकरी खोजे कस पनही काए , एड़ी घला घिसागे । कोन जनी कहां लुकागे सत्यवान, हमर बिधायक ले जादा लुकव्वल में अगुआ गे । न गूगल में दिखत हे, न रडार के पकड़ में आवत हे । का ? सत्यवान दुनिया ले चल दिस, तैं मोला बताए नई बेटी । चल मिही धियान लगा के देखथंव, कतिहां हे तेला। दू चार मिनट पाछू, नारद खुसी ले कूदे लागिस, अउ किथे – सत्यवान इंहीचे हे बेटी, तैं ठीक ठाक खोजे नि सकत हाबस ………… । नारद कुछु अउ कतिस तेकर पहिलीच माईलोगिन के मुंहू चालू होगे ।
का ? सत्यवान इंहे हे । तें वो इंजीनियर सत्यवान के बात त नि करत हस । वो नोहे सत्यवान, वोहा खाथे ईंटा पथरा सिरमिट रेती, कभू कभू जम्मो सड़क, मकान अउ कुआं, फेर बताथे दार भात साग । महू, उही सत्यवान होही कहिके ओखरे तीर आगू पहुंच गे रेहेंव । अच्छा……. तेंहा डाक्टर सत्यवान ल कहत होबे, फेर ओहा ओकरो ले कम निये, नानुक बीमारी ल बढ़हा चढ़हा के , बड़े बड़े इलाज करके , मनमाने पइसा वसूलथे । मरे के डर देखाके, जिनगी भर सूजी पानी के दरद सेहे बर मजबूर कर देथे । अरे, तेंहा वो सत्यवान साहेब के बात करत होबे गा….. । फेर ओ अभू तक बिन पइसा के अऊ बिन चउखट रगड़े कोन्हो काम नि करिस, यहू नोहे मोर सत्यवान । मेंहा ये सत्यवान के बात नि……………। नारद के बात पूरा होए नि रहय, वो माई फेर सुरू हो जाए । अब जानेव गा तेंहा सत्यवान दरोगा के बात करत होबे । देस के सेवा बर मर मिटे के कसम खवइया दरोगा , खाली दारू भट्ठी अउ जुआं अड्डा ले वसूली करके, अपन परिवार के सेवा करत हे । अरे में भुला गे रेहेंव, तें खादीछाप सत्यवान भइया के बात करत हस , कस लागथे । वोहा काला सत्यवान आए, देस के कुटका कुटका करके बेंचत हे, पांच बछर म एक घांव अपन थोथना देखावत हे, सपना बुनावत हे, ओकर पाछू, लवारिस लास कस, हमर बुने सपना ल कोन जनी कते करा गड़ियावत हे, गम नि पावन देत हे । इंकर मन ले असकटा के, सत्यवान बाबा करा चल देंव में । बड़ पियार ले बईठारिस, रेहे बर जगा दिस, खाए बर रोटी, थोरकेच दिन पाछू, अपन सुते के कुरिया म बलाए लागिस, अउ नीच करम म उतरे लागिस । इहां ले बड़ मुसकिल ले परान बचा के भागेंव । सिकायत करे बर, नियाव पाए बर नियाव के मंदीर म खुसर गेंव । इंहों सत्यवान जज ले मुलाखात होगिस । फेर समझ आगिस, येहा बिन पहुंच अऊ पईसा वाला मन के मंदीर नोहे । मनखे ल मुसेट के मारे के पाछू अराम ले छूटत देखेंव – बड़का मनखे मन ला, फेर छुटका गरीब किसान मजदूर ल , मुसवा मारे म जेल म सरत । इहां सुनवई नि होइस, त अपन सियाही के सान बघरइया मन करा चल देंव , यहू मन ल गली गली बेंचावत पायेंव । मोला अइसन सत्यवान नि चाही नारद जी । तेंहा अभू घला सत्यवान जियत हे कहिके, मोर मनला झिन बहला । रो डरिस, माई ।
चुप करावत नारद किहीस – तैं मोला बोले के मउका देबे तभेच त बताहूं, तोर सत्यवान कते करा हे तेला । तेंहा मोर पूरा बात ल सुनेच नियस, अऊ अधरे अधर खोजे – बताए लागेस । महल अटारी मठ मंदीर आसरम म, नि मिले बेटी , सत्यवान हा । सत्यवान के ठिकाना, झोपड़ पट्टी आए, जेकर रसता चिक्कन चांदर सड़क ले निये, खब डब माटी गोटी पयडगरी ले मिलही । माईलोगिन सुकुरदुम होगे, मनेमन म सोंचे लागिस, हतरे बैरी, पहिली बताए रते गरीब मनखे मन के बीच म सत्यवान रिथे, त काबर दूसर जगा जातेंव, अइसन सत्यवान ल में काए करहूं । मन ल पढ़ डारय नारद । वोहा किहीस – सत्यवान सोज्झे गरीब नोहे बेटी, वोहा भूखहा अऊ नंगरा घला हे, फरक अतके के ओहा, तोर अउ सत्यवान कस निये, येहा पइसा के गरीब हे, दिल के निही, पेट के भूखहा हे, पइसा के निही, अउ तन के नंगरा आय, मन के निही ।
फेर नारद जी तहीं केहे रेहे, सत्यवान राजा महराजा के बेटा रिहीस ? हव बेटा , ओहा राजा के बेटा रिहीस, फेर राजा हा अपन दुसकरम के सेती, अंधरा होगिस । अंधरा राजा के लइका घला रंक बन के भटके लागिस । अभू घला अइसनेच अंधरा राजा मन के सेती, बेटा सत्यवान ( परजा), गरीब मजदूर कस जिये बर मजबूर हे, अउ बिन मउत मरत हे । फेर एक बात जरूर हे बेटी, सत्यवान चाहे कतको दिन जिए, ओहा अपन सवितरी के झोली ल खुसी ले भर देथे । काबर ये कमाथे तेमें काकरो लहू के महक निही, पछीना के सुघ्घर वास रिथे । जेला खवाथे ते कन्हो बईमानी या घोटाला के करू कऊंरा नि होय, बल्कि ईमांदारी अउ मेहनत के मिठास आय । जे पहिराथे ते, काकरो चीरहरण के लुगरा नोहे, महतारी के ओली के आसीरवाद आए । ये जेन खोली म राखथय तेमे, दुसकरम के मतलहा नरूआ के सरे के बस्सई निही, साफ सुघ्घर परेम के फूल के महक होथे । तेंहा इही सुख के कामना करे रेहे बेटी, तेकर सेती तोला सत्यवान पाए के उपाय बतायेंव मेंहा ।
माई ल फेर लकर्री छा गिस । लकर धकर फेर रेंगे लागिस । नारद जी वापिस बलाइस । फेर कहां जाथस । सत्यवान करा । इहीच त बात हे बेटी, पूरा बात ल सुनस निही । सत्यवान ल बाहिर खोजे जाय के कोन्हो जरूरत निये । ओ तोर घरे म हे । जरूरत ओला जगाए के हे । माई समझिस निही । नारद जी किहीस ‌ – तोर पति तोर सत्यवान आय । उही सत्यवान ल जगा । असन म मोर पति घला गरीब हो जही । निही बेटा ओ गरीब नि होए, ओला ये अंधरा राजा के सेती गरीबी देखे बर मिलीस । ओहा गरीब येकर सेती घला हे – काबर, ओहा अंधरा राजा कती ले चुप बइठ गिस, मिटका दिस , ओला जगाना हे तोला, अउ उही ल जगाए बर जेठ महीना के अमावस के दिन बड़ रूख के पूजा कर, भगवान सिव ल मना । सनकलप ले । तोर पूजा ले कन्हो भगवान सिव परसन्न होगे, त तोला कछु मांगे के जरूरत निये, वोहा अंन्धरा राजा के आंखी ल लहुटा दिही, अउ तोर करतब ले तोर पति सत्यवान सच बोले ल धर लिही, तब तहूं ह बांचे खुचे जिनगी के जम्मो समे ल हांस हांस के काटबे । तभू ले आज घला पूजा के करम चलत हे बिन अतरे । कोन जनी कते दाई माई के सनकलप पूरा हो जही, कोन जनी काकर ले सिव परसन्न हो जही, अऊ तब अंधरा राजा के आंखी फेर खुल जही, अउ जम्मो पति सत्यवान कस अपन सवितरी ल सुख दे पाही ।
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लेखक – हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा

2 replies on “18 मई बट सावितरी पूजा विसेस : सत्यवान के खोज (बियंग)”

बहुत बढ़िया लागिस काहनी ह
मजा आगे संगी |

ज्वलंत समस्या ऊपर सुग्घर बियंग भाई साहब

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