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कविता

किसानी अपन करथो

सुत उठ बडे बिहनिया करम अपन करथो भुइंया के लागा छुटे बर म्हिनत मेहा करथो खुन पसिना ले सिच के धरती हरियर करथो मे किसान अव संगी किसानी अपन करथो जग ला देथो खाए बर मे घमण्ड चिटको नइ तो करो नइ रहाव ऐसो अराम मे महिनत करथो इमान ले छल नइ हे मोर मे […]