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गोठ बात

देवारी बिसेस : हमर पुरखा के चिनहा ल बचावव ग

……हमर संस्कीरिती, हमर परंपरा अउ हमर सभ्यता हमर पहिचान ये।हमर संस्कीरिती हमर आत्मा ये।छत्तीसगढ़ के लोक परब, लोक परंपरा, अउ लोक संस्कीरिती ह सबो परदेस के परंपरा ले आन किसम के हावय।जिहाँ मनखे-मनखे के परेम, मनखे के सुख-दुख अउ वोखर उमंग, उछाह ह घलो लोक परंपरा के रूप म अभिव्यक्ति पाथे। जिंनगी के दुख, पीरा […]

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कहानी

चुनावी लघुकथा : बुरा न मानो …… तिहार हे

एक – तैं कुकुर दूसर – तैं बिलई एक – तैं रोगहा दूसर – तैं किरहा एक – तैं भगोड़ा दूसर – तैं तड़ीपार एक – तैं फलाना दूसर – तैं ढेकाना ……… गांव के मनखे मन पेपर म रोज पढ़य। अचरज म पर जावय के, अइसन एक दूसर ला काबर गारी बखाना करथे। ओमन […]

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कविता

देवारी के दीया

चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो। अंधियारी ल दूर भगाके, जीवन में अंजोर लाबो।। कतको भटकत अंधियारी मे, वोला रसता देखाबो। भूखन पियासे हाबे वोला, रोटी हम खवाबो।। मत राहे कोनो अढ़हा, सबला हम पढ़ाबों। चल संगी देवारी में, जुर मिल दीया जलाबो।। छोड़ो रंग बिरंगी झालर, माटी के दीया जलाबों। भूख मरे […]

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गीत

छत्तीसगढ़ी नवगीत

चलव गीत ल गा के देखन, चलव गीत ल गा के देखन, अंतस ल भुलिया के देखन। सुख अउ दुख तो आथे-जाथे, कभू हँसाथे कभू रोवाथे। मन के पीरा ला मीत बना ले अपने अपन वो गोठियाथे। ये सब के पाछू मा का हे ? चिटिक हमू फरिया के देखन। चार दिन बर चंदा आथे […]

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कविता

बेरोजगारी के पीरा

का बतावंव संगी मोर पीरा ल,नींद चैन नइ आवत हे। सुत उठ के बड़े बिहनियाँ,एके चिंता सतावत हे। नउंकरी नइ मिलत हे,अउ बेरोजगारी ह जनावत हे। दाई ददा ह खेती किसानी करके,मोला पढ़हावत हे। फेर उही किसानी करे बर,अब्बड़ मोला सरम आवत हे। पर के नउंकरी करे बर,मन ह मोर अकुलावत हे। अँगूठा छाप मन […]

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कहानी व्यंग्य

चुनावी कथा : कंठ म जहर

समुनदर मनथन म, चऊदह परकार के रतन निकलीस। सबले पहिली, कालकूट जहर निकलीस। ओकर ताप ले, जम्मो थर्राये लगीन। भगवान सिव, अपन कंठ म, ये जहर ला धारन कर लीन। दूसर बेर म, कामधेनु गऊ बाहिर अइस, तेला देवता के रिसी मन लेगीन। तीसर म, उच्चैश्रवा घोड़ा ल, राकछस राज बलि धरके निकलगे। चउथा रतन […]

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कविता

सोंच समझ के चुनव सियान

छत्तीसगढ़ ला गजब मयारू, सेवक चाही अटल जुझारू, अड़बड़ दिन भोरहा म पोहागे, निरनय लेके बेरा आगे। पिछलग्गू झन बनव, सुजान, सोंच समझ के चुनव सियान ।। करिया गोरिया जम्मो आही, रंग रंग के सब बात सुनाही, जोगी आही भोगी आही, सत्ता लोलुप रोगी आही। कोन हितू, कोन बेंदरा मितान, सोंचा समझ के चुनव सियान।। […]

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कविता

मंय छत्तीसगढ़ बोलथंव

मंय छत्‍तीसगढ़ी बोलथंव मंय मन के गॉंठ खोलथंव छत्तीसगढ़ियामन सुनव मोर गोठ ल धियान गॉंव-गॉंव म घुघवा डेरा नंजर गड़ाहे गिधवा-लुटेरा बांॅध-छांद के रखव खेती-खार अऊ मचान एक-अकेला छरिया जाहू जुरमिल दहाड़व बघवा समान मंय छत्तीसगढ़ बोलथंव तूं सुनव देके कान चार-चिरोंजी पुरखऊती ए जंगल जिनगानी लिखाहे ते बस्तर म खून कहानी करिया कपटीमन रचाहे […]

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कविता

छत्तीसगढ़ी भासा के महत्तम

छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ ,गुरतुर बोली आय, आमा के रूख मा कोइली मीठ ,बोली अस आय. छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ….. हिदय के खलबलावत भाव ल उही रूप म लाय, फूरफूंदी अस उड़त मन के ,गीत ल गाय. छत्तीसगढ़ी भासा अब्बड़ मीठ….. जइसन बोलबे तइसन लिखबे ,भासा गुन आय, जै जोहार अउ जै जवहरिया,सब्द भासा के […]