राजधानी म पइठ के , परभावली म बइठ के । हमर बर मया बरसाथे , हमींच ला अइंठ के । रिद्धी सिद्धी पाके , मातगे जोगी जति । ठेमना गिजगिजहा , पांच बछरिया गनपति । बड़का बुढ़हा तरिया के , करिया भुरवा बेंगवा । अनखाहा टरटरहा , देखाये सबला ठेंगवा । पुरखौती गद्दी म खुसरे […]
Day: November 6, 2018
चुनावी व्यंग्य : बूता के अपग्रेडेसन
सांझ कुन के बेरा म गुड़ाखू घंसरत, दू झिन मनखे मन तरियापार म बइठके, दुख सुख गोठियावत रहय। एक झिन डमचगहा रहय , दूसर जादूगर। दुनो पक्का संगवारी रहय। गांव गांव, गली गली किंजर किंजर के, नावा नावा खेल देखाये तब कहूं ले दे के, बपरा मन के परिवार चलय। धीरे धीरे एकर मन के […]
हमर समाज म कुछु के महत्व होवय चाहे झन होवय, तभोले चुनाव के बढ़ महत्व होथे, चुनाव अइसे चीज हे जेखर ले हमन ह कुछु भी अपन मन-पसंद चीज ल चुने के मौका मिलथे, जेखर सब ले बड़े फायदा होथे हमर समाज अउ विकास बर, नेता चुने के अधिकार हमन ल हे, त हमर इहा […]
तोरे अगोरा हे लछमी दाई
होगे घर के साफ सफाई, तोरे अगोरा हे लछमी दाई। अंगना दुवार जम्मो लिपागे, नवा अंगरक्खा घला सिलागे। लेवागे फटक्का अउ मिठाई, तोरे अगोरा हे लछमी दाई।। 1 अंधियारी म होवय अंजोर, दीया बारंव मैं ओरी ओर। हूम-धूप अउ आरती गा के, पईयां परत हंव मैं ह तोर, बांटव बतासा-नरियर,लाई, तोरे अगोरा हे लछमी दाई।। […]
कहानी : बड़का तिहार
गुरूजी पूछथे – कते तिहार सबले बड़का आय ? समझ के हिसाब से कन्हो देवारी, दसरहा अऊ होली, ईद, क्रिसमस, त कन्हो परकास परब ला बड़का बतइन। गुरूजी पूछथे – येकर अलावा ……? लइका मन नंगत सोंचीन अऊ किथे – पनदरा अगस्त अऊ छब्बीस जनवरी। कालू हा पीछू म कलेचुप बइठे रहय। गुरूजी पूछथे – […]
देवारी तिहार : देवारी के दीया
देवारी के नाम लेते साठ मन में एक प्रकार से खुशी अऊ उमंग छा जाथे। काबर देवारी तिहार खुशी मनाय के तिहार हरे। देवारी तिहार ल कातिक महीना के अमावस्या के दिन मनाय जाथे। फेर एकर तइयारी ह 15 दिन पहिली ले शुरु हो जाथे। दशहरा मनाथे ताहन देवारी के तइयारी करे लागथे। घर के […]
गरीब के देवारी
गरीब के देवारी का पूछथस ? संगवारी। जेकर कोठी म धान हे ओखर मन आन हे। पेट पोसा मजदूर बर सबर दिन अंधियारी ॥ का पूछथस संगवारी – गरीब के देवारी। उघरा नंगरा लइका के सुसवाय महतारी। जिनगी भर झेलथे – करम छंड़हा , लाचारी। का पूछथस संगवारी – गरीब के देवारी। दुख जेकर नगदी […]
सुरुज नवा उगा के देखन, अँधियारी भगा के देखन। रोवत रहिथे कतको इहाँ, उनला हम हँसा के देखन। भीतर मा सुलगत हे आगी, आँसू ले बुझा के देखन। कब तक रहहि दुरिहा-दुरिहा, संग ओला लगा के देखन। दुनिया म कतको दुखिया हे, दुख ल ग़ज़ल बना के देखन। बलदाऊ राम साहू