कउवा के काँव काँव। पठउंहा के ठउर छाँव। भुर्री आगी के ताव। सबो नदागे।। खुमरी के ओढ़इ। कथरी के सिलइ। ढेकना के चबइ। सबो नदागे।। हरेली के गेड़ी चढ़इ। रतिहा म कंडील जलइ। कागज के डोंगा चलइ। सबो नदागे।। नांगर म खेत जोतइ। बेलन म धान मिंजइ पइसा बर सीला बिनइ। सबो नदागे।। ममा दाई […]
Day: November 25, 2018
ग़ज़ल : उत्तर माढ़े हे सवाल के
हो गे चुनाव ये साल के। उत्तर माढ़े हे, सवाल के। बहुत चिकनाईस बात मा चिनहा ह दिखत हे, गाल के। आज हम कौन ल सँहरावन जम्मो हावै टेढ़ा चाल के। किस्सा सोसन के भूला के, रक्खौ लहू ला उबाल के। झन धरौ कौनो के पाँव ल, अपन ला रक्खौ सँभाल के। बलदाऊ राम साहू
तुंहर मन म का हे
तुंहर मन म का हे अपन अंतस ल बोल दव मोर मन के गोठ ल सुन लव अभी तो मान लव जो हे बात हांस के कही दव जिनगी के मया म रस घोल दव अभी तो बदलाव कर दव महुँ हंव किनारा म मझधार ल पार करा दव मया के गोठ हांस के बता […]
माटी मोर मितान
सुक्खा भुँइया ल हरियर करथंव, मय भारत के किसान । धरती दाई के सेवा करथँव, माटी मोर मितान । बड़े बिहनिया बेरा उवत, सुत के मँय ऊठ जाथंव । धरती दाई के पंइया पर के, काम बुता में लग जाथंव । कतको मेहनत करथों मेंहा, नइ लागे जी थकान । धरती दाई के सेवा करथंव, […]
कोउ नृप होउ, हमहि …
हमर राम राजा बनही, ये सपना हा आज के नोहे , तइहा तइहा के आए! त्रेताजुग म, जम्मो तियारी कर डारिन,फेर राम ल राजा नि बनाए सकिन कोन्हो, अउ दसरथ सपना देखत दुनिया ले बिदा घला होगिस! उहां के जनता के चौदा बछर, सिरिफ अगोरा म बीतगे! राम राजा बनही, त ऊंखर समसिया के निराकरन […]
तभे होही छत्तीसगढ़ी भाखा के विकास
छत्तीसगढ़िया मन ल पहली अपन भाखा ल अपनाये ल लगही तभे होही छत्तीसगढ़ी भाखा के विकास छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी भाखा बर राज भाखा आयोग त बना डारे हे फेर भाखा के विकास बर कुछु काम नइ होइस, अठरा बछर होगे छत्तीसगढ़ राज ल बने तभो ले इहा के छत्तीसगढ़ी भाखा ह जन-जन के भाखा नइ […]
जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे
बिहनिया ले उठ के दाई , चूल्हा ल जलावत हे । आगी ल बारत हे अऊ , चाहा ला बनावत हे । जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे हँसिया ला धर के दाई , खेत डाहर जावत हे । घाम म बइठे बबा , नाती ला खेलावत हे ।। जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे सेटर शाल ओढे हावय […]
बाढत नोनी के संसो म ददा के नींद भगा जाथे। कतको चतुरा रहिथे तेनो ह रिश्ता-नत्ता म ठगा जाथे। दू बीता के पेट म को जनी!! कतेक बड दाहरा खना जाथे। रात-दिन के कमई ह नी पूरय जतेक रहिथे जम्मो समा जाथे। दुब्बर बर दू असाढ करके मालिक ल घलो मजा आथे। लटपट-लटपट हमरे बर […]